राजेश बैरागी l नोएडा प्राधिकरण पर अपनी मांगों को लेकर चल रहा किसानों का धरना दिनों के हिसाब से दो दिन बाद अर्धशतक पूरा कर लेगा। इस दौरान पुलिस द्वारा बलपूर्वक धरना उखाड़ने और 33 किसानों को जेल भेजे जाने को भी छः दिन हो चुके हैं।
आखिर इस धरना प्रदर्शन की नौबत क्यों आई? इस प्रश्न का उत्तर जानने से पहले 33 किसानों को बंदी बनाकर जेल भेजने और 1100 अज्ञात किसानों के विरुद्ध उस दिन रपट दर्ज कराने के लिए हुई मैराथन कसरत के बारे में जानें।
मैंने अपनी पूर्व की पोस्ट में लिखा था कि धरना उखाड़ने की योजना संभवतः पहले से तैयार थी परंतु योजना को अमलीजामा पहनाने का तरीका शायद तैयार नहीं था। इसलिए शाम 5 बजे 33 किसानों को हिरासत में लेने और धरना उखाड़ने के बाद एक अदद् एफआईआर की आवश्यकता अनुभव हुई। एफआईआर कैसी हो और उसे कौन दर्ज कराए, इस पर शाम से लेकर रात आठ बजे तक विचार विमर्श होता रहा। अंततः रिपोर्ट लिखाने की जिम्मेदारी प्राधिकरण के भूलेख विभाग को दी गई। भूलेख विभाग के दोनों एसडीएम और तीन लेखपाल थाना सूरजपुर पहुंचे। रिपोर्ट के स्वरूप को लेकर घंटों चले मंथन के बाद तीन लेखपालों की ओर से एक एफआईआर रात्रि 23 बजकर 49 मिनट पर दर्ज कराई गई।
क्या एक लेखपाल रिपोर्ट दर्ज नहीं करा सकता था?खैर, दिलचस्प तथ्य यह है कि किसानों का जो धरना आज 48 दिन का हो गया है, उसके जन्म लेने के पीछे प्राधिकरण का यही भूलेख विभाग मुख्य तौर पर जिम्मेदार है। इस विभाग में तैनात लेखपालों और एसडीएम (क्योंकि इस विभाग में तहसीलदार और नायब तहसीलदार हैं ही नहीं) ने किसानों को लूटने के लिए ऐसी साजिशें रच रखी हैं कि उनके पास धरना प्रदर्शन के अलावा कोई रास्ता बचा ही नहीं है। प्रतिनियुक्ति पर तैनात एक लेखपाल तो अतीक और मुख्तयार माफिया सरीखा व्यवहार करने के लिए कुख्यात हो चुका है। क्रमशः