राजेश बैरागी । अखिल भारतीय किसान सभा के बैनर तले क्षेत्र के अनेक किसानों ने महापड़ाव के 21 वें दिन ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण को एक बार फिर घेरा। पूर्व सांसद वृंदा करात और राष्ट्रीय किसान नेता हन्नान मुल्ला जैसी हस्तियां भी इस मौके पर प्राधिकरण पर जुटीं और प्राधिकरण को ललकारा। फिर क्या हुआ?
प्राधिकरण से किसी ने झांककर भी नहीं देखा। जिला प्रशासन का एक नुमाइंदा उपजिलाधिकारी सदर मौके पर पहुंचे और किसानों का प्राधिकरण अध्यक्ष व सरकार को संबोधित ज्ञापन लेकर अपने रोजमर्रा के काम पर रवाना हो गए। यह ऐसा ही था जैसे विक्रम और वेताल की कहानी में होता है। वेताल की शर्त है कि जैसे ही विक्रम अपना मुंह खोलेगा, वेताल वापस जाकर पेड़ पर लटक जाएगा। आखिर किसान क्या करें? क्या प्राधिकरण किसानों की उचित मांग मानने को विवश होगा? यदि ऐसा होगा भी तो उसकी समय सीमा क्या होगी?
आठ वर्ष पहले सुप्रीम कोर्ट के दिए गए आदेश को तो आज तक माना नहीं है। किसानों की आबादी की लीज बैक, उनके आवास हेतु दस प्रतिशत के भूखंड जैसी मांगें वहीं खड़ी हैं, चेयरमैन और सीईओ कई बदल गये हैं। फिलहाल तो प्राधिकरण को एक पूर्णकालिक सीईओ की ही दरकार है। हालांकि मुझे किसानों के द्वारा महापड़ाव और घेराव के बावजूद सफलता दूर दूर तक नजर नहीं आती। जबकि प्राधिकरण और जिला प्रशासन में एक मामूली लिपिक फाइल पर कुंडली मारकर बैठ सकता है और एक लेखपाल किसान की पात्रता का प्रश्न खड़ा कर उसकी पहचान को संदिग्ध बना सकता है।