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बैरागी की नेक दृष्टि : क्या भाजपा में कोई ऐसा जिला, मंडल अध्यक्ष नहीं जो निकाय चुनाव लड़ पाता, चुनाव में आयतित प्रत्याशी पर उठते भाजपा पर प्रश्न

लोकतंत्र में चुनाव और चुनाव में जीत सर्वाधिक अनिवार्य तत्व हैं। ‘हर हाल में जीतना’ मुहावरा भी हो सकता है और मंत्र भी। केंद्र और देश के अनेक राज्यों में सत्तारूढ़ भाजपा इसी मंत्र की सिद्धि के लिए हरसंभव प्रयास कर रही है। उत्तर प्रदेश के वर्तमान नगर निकाय चुनावों में अधिकतम विजय प्राप्त करने के लिए भाजपा ने हाल ही में दूसरे दलों को छोड़कर आए नेताओं को प्रत्याशी बनाने में कोई हिचक नहीं दिखाई है। नगरीय पार्टी मानी जाने वाली भाजपा में क्या संगठन स्तर पर लोकप्रिय कार्यकर्ताओं का टोटा है? इस प्रश्न के साथ यह महत्वपूर्ण प्रश्न प्रश्न भी उठ खड़ा हुआ है कि क्या सत्तारूढ़ होने के कारण भाजपा कार्यकर्ता लोकप्रियता प्राप्त करने के स्थान पर धन कमाने के धंधे में अधिक लिप्त हो गये हैं? तैंतालीस वर्ष और 19 दिन पहले अस्तित्व में आई भाजपा आज न केवल सत्ता के शिखर पर है बल्कि पिछले 9 वर्षों से उसकी विजय पताका निरन्तर फहर रही है। इसके लिए उसने ‘पार्टी विद डिफरेंट’ का राग अलापने के बावजूद पूरी तरह विरोधी विचारधारा के लोगों को अपनाने और उन्हें अपने निष्ठावान कार्यकर्ताओं पर महत्व देने से भी गुरेज नहीं किया है।असम में सर्वानंद सोनोवाल और हिमंत बिस्वा सरमा इसके श्रेष्ठ उदाहरण हैं। सत्ता प्राप्त करने और उसे अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए भाजपा न केवल अपनी विचारधारा बल्कि अपने सिद्धांतों से भी समझौता करने के लिए तत्पर दिखाई पड़ती है। वर्तमान में उत्तर प्रदेश के नगर निकाय चुनावों में महापौर और अध्यक्ष पदों के लिए पार्टी के प्रत्याशियों में ऐसे लोगों की बड़ी संख्या है जो हाल ही में दूसरे दलों से आकर भाजपा में शामिल हुए हैं। अकेले गौतमबुद्धनगर जनपद में एकमात्र नगर पालिका परिषद के अध्यक्ष पद की प्रत्याशी को छोड़कर शेष चार नगर पंचायतों के अध्यक्ष पदों के लिए ऐसे ही लोगों को प्रत्याशी बनाया गया है जो मूलतः भाजपा के नहीं हैं। ‘आत्मनिर्भर भारत’ के इस अमृत काल में सत्तारूढ़ पार्टी के लिए यह स्थिति चिंताजनक है। इससे यह प्रश्न उत्पन्न होता है कि क्या भाजपा अपने संगठन में जीतने योग्य कार्यकर्ताओं की अनदेखी कर रही है या वास्तव में संगठन की नर्सरी ऐसे जिताऊ कार्यकर्ताओं को पैदा करने में विफल है। इसके साथ ही यह प्रश्न भी उत्तर की अपेक्षा करता है कि क्या भाजपा भी पूर्ववर्ती सत्तारूढ़ पार्टियों की भांति सांगठनिक स्तर पर केवल धन कमाने की बीमारी की चपेट में आ गई है। भाजपा के अधिकांश मंडल, महानगर और जिला अध्यक्ष चुनाव लड़ने और जीतने के योग्य नहीं हैं। उनकी कोई लोकप्रियता कहीं नजर नहीं आती। दिलचस्प यह है कि संगठन के अतिरिक्त उनकी कहीं कोई पहचान नहीं है। यदि शीर्ष स्तर पर नरेंद्र मोदी और योगी आदित्यनाथ नामक चेहरे न हों तो पार्टी कोई चुनाव जीतने की स्थिति में नहीं रहेगी। क्या इन चेहरों की उपलब्धता सदैव रहेगी? इस प्रश्न की उपेक्षा भाजपा को कभी भी कांग्रेस जैसे हाल में पहुंचा सकती है।(साभार:नेक दृष्टि हिंदी साप्ताहिक नौएडा)

राजेश बैरागी

राजेश बैरागी बीते ३५ वर्षो से क्षेत्रीय पत्रकारिता में अपना विशिस्थ स्थान बनाये हुए है l जन समावेश से करियर शुरू करके पंजाब केसरी और हिंदुस्तान तक सेवाए देने के बाद नेक दृष्टि हिंदी साप्ताहिक नौएडा के संपादक और सञ्चालन कर्ता है l वर्तमान में एनसीआर खबर के साथ सलाहकार संपादक के तोर पर जुड़े है l सामायिक विषयों पर उनकी तीखी मगर सधी हुई बेबाक प्रतिक्रिया के लिए आप एनसीआर खबर से जुड़े रहे l हम आपके भरोसे ही स्वतंत्र ओर निर्भीक ओर दबाबमुक्त पत्रकारिता करते है I इसको जारी रखने के लिए हमे आपका सहयोग ज़रूरी है I एनसीआर खबर पर समाचार और विज्ञापन के लिए हमे संपर्क करे । हमारे लेख/समाचार ऐसे ही सीधे आपके व्हाट्सएप पर प्राप्त करने के लिए वार्षिक मूल्य(501) हमे 9654531723 पर PayTM/ GogglePay /PhonePe या फिर UPI : ashu.319@oksbi के जरिये देकर उसकी डिटेल हमे व्हाट्सएप अवश्य करे

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