राजेश बैरागी । सरकारी अधिकारी या कर्मचारी रिश्वत की व्यवस्था कैसे करते हैं? ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण में नियुक्त एक लेखपाल ने इस अति महत्वपूर्ण कार्य को करने के लिए बहुत सरल तरीका विकसित किया है।वह अपने कार्यों से उसके पास आने वाले दुखी लोगों को रिश्वत देने के लिए शिक्षित करता है। इसके लिए वह अपने साथ बीती कथित घटनाओं को सिलसिलेवार सुनाता है और निष्कर्ष स्वरूप बताता है कि कैसे उसने रिश्वत देकर अपना काम आसानी से सिद्ध कर लिया था।
ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के भूलेख विभाग में कार्यरत लेखपाल की आजकल हर ओर चर्चा है। यह लेखपाल अपने दायित्व को निभाने के लिए नहीं बल्कि लोगों के काम को येन केन प्रकारेण उलझाने में सिद्धहस्त है। उदाहरण के लिए किसान आबादी के आवंटित और हस्तांतरित भूखंड का खसरा संख्या पूछने पर लेखपाल उसकी पात्रता की जांच करने लगता है। पीड़ित व्यक्ति जब उसके समक्ष पेश होता है तो वह बताता है कि उसने अपना वेतन प्राप्त करने के लिए अठारह हजार रुपए रिश्वत दी है, तो वह किसी के प्रति सहानुभूति कैसे रख सकता है। फिर वह घूस के लाभ गिनाने लगता है।वह बताता है कि रसोई गैस का सिलेंडर ग्यारह सौ रुपए का आता है।सौ रुपए अतिरिक्त देने पर सिलेंडर ससम्मान घर पहुंच जाता है, कोई झंझट नहीं, कोई तनाव नहीं। इस दौरान लेखपाल दार्शनिक भाव में आ जाता है। वह कहता है, भ्रष्टाचार बुरा नहीं है
विकास की नींव भ्रष्टाचार की गोद में ही मजबूत होती है। यहां सौदा दस्त बदस्ती है, इस हाथ ले उस हाथ दे का सिद्धांत ही शाश्वत है। वह अपनी रौ में कहता रहता है, पीड़ित जन अपने भाग्य और भविष्य को लेकर आशंकित होता चला जाता है।उसे लेखपाल के स्थान पर एक भयानक आकृति दिखाई देने लगती है।उसे अपना भूखंड ओझल होता दिखने लगता है। भूखंड के स्थान पर कुंडली मारे बैठा लेखपाल विशाल और डरावना होता जाता है। एक उपजिलाधिकारी का आशीर्वाद लेखपाल के लिए कवच और कुंडल का काम करता है।