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स्वरा भास्कर की शादी पर छिड़ा विवाद,मौलाना शहाबुद्दीन रजवी ने शादी को बताया नाजायज, भारत में स्पेशल मैरिज एक्ट को लेकर लोगो को है कम जानकारी

बॉलीवुड अभिनेत्री स्वरा भास्कर (Swara Bhasker) ने फहद अहमद को अपना हमसफर चुन लिया है, तो वहीं दरगाह आला हजरत से जुड़े संगठन ऑल इंडिया मुस्लिम जमात के अध्यक्ष मौलाना शहाबुद्दीन रजवी ने स्वरा भास्कर की शादी को नाजायज करार दिया है l स्वरा भास्कर ने फहद अहमद के साथ कोर्ट मैरिज की हैl फहद यूपी के बरेली जिले के बहेड़ी के रहने वाले हैं और उनका परिवार आज भी यहीं पर रहता हैl

मौलाना ने आगे कहा की शादी विवाह के लिए इस्लाम मजहब को ढाल के तौर पर इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है। उन्होंने कहा, ‘लोग अपनी खुशहसाद को पूरा करने के लिए इस्लाम का इस्तेमाल करते हैं यह नाजायज है अपनी ख्वाहिश और ऐस इसरत की जिंदगी गुजारने के लिए इस्लाम को ढाल ना बनाएं।’ मौलाना शहाबुद्दीन रजवी बरेलवी ने कहा कि लड़की या लड़का अगर दोनों मुसलमान है तो ही शादी जाएज होगी अगर लड़का मुसलमान है और लड़की हिंदू है और उसने इस्लाम धर्म कबूल नहीं किया है तो ऐसी सूरत में दोनों का निकाह नहीं होगा और यह शादी शरीयत की रोशनी में नाजायज होगी दोनों का रिश्ता नाजायज रिश्ता होगा लड़का मुसलमान गुनहगार होगा।

कुछ दिन पहले की थी कोर्ट मैरिज

आपको बता दें कि ‘वीरे दी वेडिंग’ की अभिनेत्री स्वरा ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट्स पर अहमद को टैग करते हुए इस बात की जानकारी साझा की। फहद अहमद समाजवादी पार्टी की युवा शाखा ‘समाजवादी युवजन सभा’ के प्रदेश अध्यक्ष हैं। अभिनेत्री के पोस्ट को साझा करते हुए 31 वर्षीय अहमद ने लिखा, ‘मुझे कभी नहीं पता था कि हलचल इतनी खूबसूरत हो सकती है स्वरा भास्कर।

स्पेशल मैरिज एक्ट 1954 क्या है? जिसके तहत एक्ट्रेस स्वरा भास्कर और फहद अहमद ने रचाई शादी

स्वरा ने फहद से कोर्ट मैरिज की हैं और ये शादी स्पेशल मैरिज एक्ट 1954 के तहत की हैं। स्पेशल मैरिज एक्ट 1954 में दो धर्म के लोग बिना धर्म बदले एक दूसरे से शादी कर सकते है। इसके तहत ना सिर्फ अलग-अलग धर्म बल्कि अलग-अलग जाति के लोग भी एक दूसरे से शादी कर सकते है। स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत कपल को शादी की तय तारीख से 30 दिन पहले संबंधित दस्तावेजों के साथ मैरिज ऑफिसर को आवेदन देना होता है। यह आवेदन ऑनलाइन भी हो सकता है।

विशेष विवाह अधिनियम, 1954 भारत की संसद का एक अधिनियम है जो भारत के लोगों और विदेशी देशों में सभी भारतीय नागरिकों के लिए विवाह का विशेष रूप प्रदान करता है, भले ही किसी भी पार्टी के बाद धर्म या विश्वास के बावजूद। यह अधिनियम 1 9वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में प्रस्तावित कानून के एक टुकड़े से हुआ था। विशेष विवाह अधिनियम के तहत गंभीर विवाह व्यक्तिगत कानूनों द्वारा शासित नहीं होते हैं।

1872 अधिनियम III में, 1872 को अधिनियमित किया गया था लेकिन बाद में इसे कुछ वांछित सुधारों के लिए अपर्याप्त पाया गया, और संसद ने एक नया कानून बनाया। हेनरी सुमनेर मेन ने पहली बार 1872 के एक्ट III की शुरुआत की, जो कि किसी भी असंतोषियों से शादी करने की इजाजत देगी, जिसे उन्होंने एक नए सिविल विवाह कानून के तहत चुना है। अंतिम शब्द में, कानून ने अपने विश्वास के पेशे को त्यागने के इच्छुक लोगों के लिए विवाह को वैध बनाने की मांग की (“मैं हिंदू, ईसाई, यहूदी, आदि धर्म का दावा नहीं करता हूं”)। यह अंतर जाति और अंतर-धर्म विवाह में लागू हो सकता है। कुल मिलाकर, स्थानीय सरकारों और प्रशासकों की प्रतिक्रिया यह थी कि वे सर्वसम्मति से मेन के विधेयक का विरोध करते थे और मानते थे कि कानून ने वासना के आधार पर विवाह को प्रोत्साहित किया था, जो अनिवार्य रूप से अनैतिकता का कारण बनता था। स्पेशल विवाह अधिनियम, 1954 में पुराने अधिनियम III, 1872 को बदल दिया गया।

एन सी आर खबर ब्यूरो

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