ब्रह्मपुत्र व्यवसायिक कॉम्प्लेक्स से वसूली घटी तो धंधा बंद: नोएडा प्राधिकरण के हजार धंधे (भाग-२)

राजेश बैरागी I नोएडा का सेक्टर 29 यूं तो सेना के लोगों को आवंटित किया गया था परंतु यहां अब सभी प्रकार के लोग रहते हैं। नगर का यह प्रमुख तो नहीं परंतु महत्वपूर्ण सेक्टर है। इसी के एक कोने पर ब्रह्मपुत्र व्यवसायिक कॉम्प्लेक्स है। बॉटेनिकल गार्डन मेट्रो स्टेशन के सामने से आने वाली मुख्य सड़क पर स्थित इस कॉम्प्लेक्स में दिनभर के अलावा शाम को काफी भीड़ भाड़ होती है। इसी कॉम्प्लेक्स के बरामदे में पिछले दस बीस बरस से काउंटर, पटरी लगाकर चाट, कपड़े और सौंदर्य प्रसाधन बेचने वाले पचास साठ परिवार आजकल सड़क पर हैं।

इन्हें प्राधिकरण ने गत 27 अक्टूबर और 15 नवंबर को दो बार में पूरी तरह उखाड़ फेंका। प्राधिकरण ने यह कार्रवाई अतिक्रमण मानकर की है। दुकानदार दावा करते हैं कि उनके पास इलाहाबाद उच्च न्यायालय का 2015 का स्थगनादेश है। दोनों पक्षों के अपने दावे हैं। दुकानदार बताते हैं कि यहां पिछले दो दशकों से दुकान लगाने वाले दुकानदारों की संख्या 101 है।ये सभी तीन हजार रुपए प्रतिमाह के हिसाब से तीन लाख तीन हजार रुपए मंथली प्राधिकरण के संबंधित वर्क सर्किल को देते थे।

कोरोना के दो वर्षों में यह दशकों की व्यवस्था बिगड़ गई। फिर से जिंदगी पटरी पर लौटी परंतु पचपन लोग ही दुकान लगाने पहुंचे। प्राधिकरण के अधिकारियों की वसूली आधी रह गई तो उनकी भृकुटी टेढ़ी हो गई। लिहाजा महफिल उजाड़ दी गई। हालांकि इन आरोपों की पुष्टि किया जाना संभव नहीं है।

परंतु वर्षों से अस्थाई तौर पर दुकान लगा कर रोजी रोटी का प्रबंध करने वाले पचपन परिवार फिलहाल बेरोजगार हैं। किसी की बेटी का इलाज लटक गया है तो किसी के समक्ष पेट भरने की समस्या ही खड़ी हो गई है। दुकानदार उच्च न्यायालय से उसके स्थगनादेश की अवमानना पर कार्रवाई की गुहार लगा रहे हैं।वे मुख्यमंत्री बाबा के यहां भी हो आए हैं। उन्हें प्राधिकरण के उच्च अधिकारियों से न्याय की प्रतीक्षा है। परंतु पुरानी वसूली के अभाव में पुरानी व्यवस्था बहाल हो तो कैसे?

लेखक नेक दृष्टि हिंदी साप्ताहिक नौएडा के संपादक हैं