
राजेश बैरागी /आशु भटनागर। औद्योगिक विकास प्राधिकरणों (नोएडा, ग्रेटर नोएडा व यीडा) के क्रियाकलापों में जनप्रतिनिधियों, स्थानीय सामाजिक संगठनों अथवा सामाजिक कार्यकर्ताओं को जनहित के लिए दखल देने का अधिकार कैसे मिल सकता है?नोएडा प्राधिकरण के छियालिस वर्ष पूर्ण होने के बावजूद जनसमस्याओं के बने रहने पर यह प्रश्न एक बार फिर जोरशोर से उठ खड़ा हुआ है।

नोएडा और इसके साथ बने तीनो प्राधिकरण के अधिकारियों के कार्यकलापों में तानाशाही और जन आकांक्षाओं का समुचित सुनवाई ना होने को लेकर तमाम कोशिशें यहां पर होती रही हैं जिसमें लोगों ने कभी यहां नगर निगम की मांग की है तो कभी नोएडा अथॉरिटी के साथ जनप्रतिनिधियों को भी स्थान देने की बात की मांग उठाई गई है
लोगो का कहना रहा है कि उत्तर प्रदेश औद्योगिक विकास अधिनियम 1976,जिसके अंतर्गत सर्वप्रथम नोएडा का और तत्पश्चात ग्रेटर नोएडा व यीडा समेत आधा दर्जन से अधिक औद्योगिक विकास प्राधिकरणों का गठन या जन्म हुआ, में जनप्रतिनिधियों को कोई स्थान नहीं दिया गया। यदि स्थान दिया गया होता तो क्या आज तक इनमें से किसी भी प्राधिकरण के बोर्ड में कोई जनप्रतिनिधि शामिल नहीं होता?
लेकिन ये सवाल अब पूरा सच नहीं है। ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के प्रथम अध्यक्ष व उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव रहे सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी योगेन्द्र नारायण दावा करते हैं कि राज्य सरकार नोएडा समेत सभी औद्योगिक विकास प्राधिकरणों में चार चार जनप्रतिनिधियों को नामित कर सकती है।
नोएडा के 47 वे स्थापना दिवस पर एनसीआर खबर द्वारा आयोजित एक परिचर्चा में भाग लेते हुए उन्होंने यह रहस्योद्घाटन किया। आप इस चर्चा को यहां सुन सकते है
दावे के बाबजुद यह सच है कि पिछले छियालिस वर्षों में राज्य सरकार ने इन प्राधिकरणों में एक भी जनप्रतिनिधि को नामित नहीं किया है। तो क्या राज्य सरकार किसी जनप्रतिनिधि या सामाजिक संगठन अथवा स्थानीय स्तर पर सक्रिय सामाजिक कार्यकर्ताओं को इस योग्य नहीं समझती? या इसके पीछे राजनैतिक एकाधिकार ओर नोएडा मे सत्ता के खिलाफ विपक्ष का जनप्रतिनिधि होना भी एक प्रमुख कारण रहा है ?
यह उपेक्षा तब है जबकि पूर्ण विकसित होने की ओर अग्रसर नोएडा प्राधिकरण के अधिकार क्षेत्र में जनसमस्याओं की भरमार है। नोएडा नगर में आने वाले आगंतुकों, रिक्शा -ऑटो चालक, रेहड़ी पटरी वालों को बगैर खरीदे एक घूंट पेयजल की व्यवस्था नहीं है। ठहरने के लिए कोई धर्मशाला नहीं है। नये और आधुनिक तरीके से बसाए गए नगर में ये सुविधा नहीं हैं जबकि पुराने कस्बों में प्याऊ और धर्मशालाओं की सुविधा आज भी मिल जाती है।
योगेन्द्र नारायण इस सब के लिए गैर सरकारी संगठनों व सामाजिक कार्यकर्ताओं को आगे आने का आह्वान करते हैं। परंतु एक्ट के दस्तावेज में वह पन्ना ही गायब है जिसमें प्राधिकरणों के बोर्ड में जनप्रतिनिधियों को स्थान देने की बात कही गई है। ऐसे मे नोएडा मे एक बार फिर से प्राधिकरणों मे जनप्रतिनिधियों के शामिल होने के सपने को फिर से देखा जाना शुरू हो सकता है I जल्द ही नोएडा के जनप्रतिनिधि या सामाजिक संगठन अथवा स्थानीय स्तर पर सक्रिय सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा इसके लिए मुहिम शुरू की जा सकती है
राजेश बैरागी नेक दृष्टि हिंदी साप्ताहिक नौएडा के संपादक है