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नोएडा बहलोलपुर झुग्गी आग हादसा: झुग्गियां बसना, जलना अवैध प्लॉटिंग, भू माफिया, लापरवाह पुलिस, गैर जिम्मेदार प्रशासन, और हाई राइज सोसाइटी में नौकरानियां ढूंढते लोग ये सब है उन बच्चो की मौत के जिम्मेदार

आशु भटनागर । नोएडा को पेंटिंग और लाइट्स के बलबूते रंग देने वाली और इसको देश के टॉप 10 स्वच्छ शहरो में लाने की मुहिम चलाने वाली नोएडा की सीईओ ऋतु माहेश्वरी ने बीते महीने नोएडा की झुग्गी वालो को सेक्टर 122 में बने फ्लैट का वितरण करने को कहा था। मगर उनके आदेश पर अमल हो, इससे पहले एक बार फिर से बहलोलपुर में बनी झुग्गियों में आग लग गई। और एक परिवार की 2 मासूम बच्चियां जल गई। 2 और 5 वर्ष की बच्चियां इतनी छोटी रही कि शायद इस आग से निकल ही नही पाई। कोई ये भी नहीं जानता कि उस योजना में इन झुग्गियों के लोगो का नाम भी था या ये गिनती में ही नही थे। आग कैसे लगी इसका किसी को नही पता अभी तक आ रही जानकारी के अनुसार आग सिलेंडर से लगी है या फिर यूं कहे कि ऐसे कई कारण आने वाले दिनों में प्रशासन की रिपोर्ट में लिख कर केस को बंद कर दिया जाएगा। तेज रफ्तार जिंदगी में खबरे अखबार की तरह रद्दी में चली जाती है

प्रशासन ने देर शाम प्रति मृतक 4 लाख का मुआवजा भी तय कर दिया । इसके साथ ही तय कर दी उनके झुग्गी के 4000 रुपए, बर्तनों और कपड़ो के 2000-2000 रुपए। मगर प्रशासन ये नही बता पाया कि इन झुग्गियों में फायर सेफ्टी की अनुमति किसने दी या फिर फायर अधिकारी कभी यहां तक पहुंचे भी या नहीं । या फिर सरकार का फायर सेफ्टी विभाग सिर्फ एनओसी देता है कागजों पर।

आज से शुरू हो जाएगा नेताओ का झुग्गी पर्यटन

देर शाम नोएडा के लोकप्रिय विधायक पंकज सिंह और सांसद डा महेश शर्मा दोनो ने भी ट्विटर पर झुग्गियों में लगी आग और उसमे मारी गई बच्चियों के प्रति अपनी संवेदना भी व्यक्त कर दी। ( सोशल मीडिया के दौर में ये सबसे आसान काम हो गया है) और आज से इन झुग्गी वालो को कुछ दिन तक खाना खिलाने वाले या कपड़े बर्तन देने वाले समाज सेवियों का पर्यटन भी शुरू हो जाएगा। कुछ एनजीओ के लोग इनके साथ फोटो खिंचवा कर मीडिया को देंगे और सबका काम हों जाएगा । बड़े शहरों में झुग्गी की यही कहानी है ये सबको काम और सम्मान का मौका दे देती है

आखिर कौन है इन झुग्गियों का जिम्मेदार ?

बंद ऐसी कमरे में चाय पीते हुए ऐसी खबरों के बीच आखिर फिर से वो सवाल कहीं खो जायेंगे जहां एक औधोगिक शहर में पूछा जाना चहिए कि इतने बड़े बड़े प्लान के बीच आखिर ये झुग्गियां बस कैसे जाती है। आखिर पुलिस, प्रशासन, समाज सेवियों, नेताओं और गांव के दबंगों के होते हुए कौन इनको यहां ले आता है ।

जिस नोएडा में जमीन की कीमत 150000रुपए मीटर से शुरू होती है आखिर पुलिस प्रशासन इन गरीब मजदूरों को यहां बसने कैसे देता है । सामाजिक सेवी और नेता शहर के किसी एक किनारे पर इनको लेकर कभी कोई आंदोलन क्यूं नही करते ? और आप और हम इनको जानते हुए भी अंजान क्यों हो जाते है?

तो इसका जवाब है हम सब की जरूरत और स्वार्थ। शहर में ये झुग्गियां ना हो तो समाज सेवियों को सेवा करने के लिए गरीब नारायण ना मिले, नेताओं को वोटर ना मिले। फ्लैट में रहने वाले लोगो को गार्ड, काम करने वाली नौकरानियां ना मिले और सबसे बड़ी बात प्रशासन को आपके फ्लैट बनाने के लिए मजदूर ना मिले ( बीते साल कोरोना के कारण गांव गए इन्ही मजदूरों को वापस न लाने के कारण सरकार और बिल्डर काम ना होने की दुहाई देते रहे है) और गांव में रहने वाले लोगो को उनकी आबादी की जमीनों पर ऐसे लोग ना मिले। पूरे जिले में आपको ऐसी जमीनों पर ही झुग्गियां अवैध बिल्डर फ्लोर ( शाहबेरी में बिल्डर फ्लोर गिरने से हुई मौत हम भूल चुके है) और अवैध दुकानें ( शाहबेरी और बिसरख में बनी ऐसी दुकानों में लगी आग भी अब आम किस्सा है ) मिल जाएगी जहां आप और हम ही पहुंचते है

भारत की जनता का दुर्भाग्य ये है कि हमारे अधिकारी शहर तो प्लान करते है बड़े बड़े उद्योग तो प्लान करते है मगर उसमे गरीब आदमी कहां रहेगा उसको सोचना भूल जाते है । बीते 40 सालो में नोएडा ग्रेटर नोएडा जैसे बड़े शहर बनाने वाले अधिकारियों ने कभी शहर में सोचा ही नहीं की गरीब मजदूर को भी पक्का मकान मिलना चाहिए । आखिर बड़े फ्लैट से पहले कहीं ऐसे भी फ्लैट हो जहां मजदूर रहे या जहां वो आपने मकान बनाएगा मगर अपने परिवार को कहीं रखेगा। मगर ठेके पर चलते शहरीकरण अधिकारियों को ये सोचने का मौका नहीं देती। बड़े बड़े घोटाले के पैसों की चमक उनको गरीब का सोचने नहीं देती सरकार आखिरी व्यक्ति के उत्थान की बातें करती है मगर उन तक पहुंचती नहीं ।

ऐसे में वो गरीब यहां गांव की जमीनों पर दबंगों को महीने के 1000 /2000 रुपए देकर बसा लेता है झुग्गियां और यही से शुरू होता है झुग्गी माफिया, पुलिस प्रशासन और सामाजिक नेताओ का खेल। सबको इसी सिंडीकेट से पैसे का बंटवारा होता है । सबको पता है ये शहर के मखमल में टाट का पैबंद है मगर इतने बड़े शहर में पैसे के चमक के आगे ये सब पीछे रह जाता है । और हमेशा ऐसे ही रह जाती है कुछ महीनों में जलने वाली झुग्गियों की कहानियां।

लेकिन इस सब के बीच सवाल वही रह जाता है कि बड़े औधोगिक शहर में इन मजदूरों के लिए कब जनता फ्लैट दुबारा बनने शुरू होंगे ? कब प्रशासन इन झुग्गियों को बसने ना देने या ऐसे बसाने वाले भू माफिया नेता या फिर ठेकेदारों पर कार्यवाही करना शुरू करेगा ताकि फिर से किसी गरीब को 2 और 5 साल की बच्चियां ना जल कर मर जाए।

NCRKhabar Mobile Desk

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