इस बार होलाष्टक 21- 22 मार्च को लगेगा और यह 28 मार्च तक रहेगा। होलाष्टक के दौरान किसी भी तरह के शुभ और मांगलिक कार्य वर्जित होते हैं। समझिये होलाष्टक किस क्षेत्र में मान्य है,
प्रमाण देखिये :-
विपाशा (व्यास) , इरावती (रावी), शुतुद्री (सतलज) नदियों के निकटवर्ती दोनों ओर स्थित नगर, ग्राम , क्षेत्र में तथा त्रिपुष्कर (पुष्कर) क्षेत्र में होलाष्टक दोष फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा (होलिका दहन) तिथि के आठ दिन पूर्व में विवाह, यज्ञोपवीत आदि शुभ कार्य वर्जित हैं ।
इस प्रकार लगभग सम्पूर्ण पंजाब प्रान्त में हिमांचल प्रदेश का कुछ भू-भाग तथा राजस्थान में अजमेर (पुष्कर) के समीपवर्ती आसपास के स्थानों (सम्पूर्ण राजस्थान नहीं) में ही विशेष सावधानी के लिए होलाष्टक दोष को मानना शास्त्र सम्मत है।
देश के अन्य शेष भू-भागों में होलाष्टक दोष विचार का नियम लागू नहीं करना चाहिए, ऐसा शास्त्र सम्मत निर्णय है।
‘‘विपाशैरावतीतीरे शुतुद्रयाश्च त्रिपुष्करे।
विवाहादिशुभे नेष्टं होलिकाप्राग्दिनाष्टकम्।।’’
(मुहूर्तचिन्तामणि श्लोक सं. 40)
‘‘ऐरावत्यां विपाशायां शतद्रौ पुष्करत्रये।
होलिका प्राग्दिनान्यष्टौ विवाहादौ शुभे त्यजेत्।।’’
(मुहूर्त गणपति श्लोक सं. 204)
सोलह संस्कार नही होते हैं
होली आने की पूर्व सूचना होलाष्टक से प्राप्त होती है। इसी दिन से होली उत्सव के साथ-साथ होलिका दहन की तैयारियां भी शुरू हो जाती है। होलाष्टक के दौरान सभी ग्रह उग्र स्वभाव में रहते हैं जिसके कारण शुभ कार्यों का अच्छा फल नहीं मिल पाता है। होलाष्टक प्रारंभ होते ही प्राचीन काल में होलिका दहन वाले स्थान की गोबर, गंगाजल आदि से लिपाई की जाती थी। साथ ही वहां पर होलिका का डंडा लगा दिया जाता था जिनमें एक को होलिका और दूसरे को प्रह्लाद माना जाता है।
फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि रहेगी। इस तिथि पर चंद्रमा मिथुन राशि में विराजमान रहेंगे। आद्र्रा नक्षत्र रहेगा। वृष राशि में राहु और मंगल, वृश्चिक राशि में केतु, मकर राशि में गुरू और शनि, कुंभ राशि में बुध और मीन राशि में सूर्य व शुक्र विराजमान रहेंगे।
होलाष्टक के दौरान अष्टमी को चंद्रमा, नवमी को सूर्य, दशमी को शनि, एकादशी को शुक्र, द्वादशी को गुरु, त्रयोदशी को बुध, चतुर्दशी को मंगल और पूर्णिमा को राहू उग्र स्वभाव में रहते हैं। इन ग्रहों के उग्र होने के कारण मनुष्य के निर्णय लेने की क्षमता कमजोर हो जाती है जिसके कारण कई बार उससे गलत निर्णय भी हो जाते हैं जिसके कारण हानि की आशंका बढ़ जाती है। जिनकी कुंडली में नीच राशि के चंद्रमा और वृश्चिक राशि के जातक या चंद्र छठे या आठवें भाव में हैं उन्हें इन दिनों अधिक सतर्क रहना चाहिए।
जानिए होलाष्टक के समय क्या करें और क्या नहीं
फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी से लेकर पूर्णिमा तिथि तक होलाष्टक माना जाता है। होलाष्टक होली दहन से पहले के 8 दिनों को कहा जाता है। इस बार 22 मार्च 2021 से 28 मार्च 2021 तक होलाष्टक रहेगा। इस वर्ष होलिका दहन 28 मार्च को किया जाएगा और इसके बाद अगले दिन रंगों वाली होली खेली जाएगी।
होलाष्टक 2021 में वर्जित कार्य :
विवाह करना, वाहन खरीदना, घर खरीदना, भूमि पूजन, गृह प्रवेश, कोई नया कार्य प्रारंभ करना एवं अन्य प्रकार के मांगलिक कार्य नहीं किए जाते हैं।
क्या करना चाहिए
होलाष्टक में पूजा-पाठ करने और भगवान का स्मरण भजन करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि होलाष्टक में कुछ विशेष उपाय करने से कई प्रकार के लाभ प्राप्त किए जा सकते हैं। होलाष्टक के दौरान श्रीसूक्त व मंगल ऋण मोचन स्त्रोत का पाठ करना चाहिए जिससे आर्थिक संकट समाप्त होकर कर्ज मुक्ति मिलती है। इस दौरान भगवान नृसिंह और हनुमानजी की पूजा का भी महत्व है।
होलाष्टक के प्रारंभ होने वाले दिन एक स्थान पर दो डंडे स्थापित किए जाते हैं। जिनमें से एक डंडा होलिका का प्रतीक तो दूसरा डंडा प्रहलाद का प्रतीक माना जाता है। इसके बाद इन डंडों को गंगाजल से शुद्ध करके के बाद इन डंडों के इर्द-गिर्द गोबर के उपले, लकड़ियां, घास और जलाने वाली अन्य चीजें इकट्ठा की जाती है और इन्हें धीरे-धीरे बड़ा किया जाता है और अंत में होलिका दहन वाले दिन इसे जला दिया जाता है।
होलाष्टक की पौराणिक कथा
होलाष्टक के संबंध में 2 कथाएं प्रचलित है। पहली कथा भक्त प्रहलाद से जुड़ी है और दूसरी कथा कामदेव से।
पहली कथा के अनुसार
भक्त प्रहलाद को उसके पिता ने हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र की भक्ति को भंग करने और उनका ध्यान अपनी और करने के लिए लगातार 8 दिनों तक उन्हें तमाम तरह की यातनाएं और कष्ट दिए थे। इसलिए कहा जाता है कि, होलाष्टक के इन 8 दिनों में किसी भी तरह का कोई शुभ कार्य नहीं करना चाहिए। यह 8 दिन वहीं होलाष्टक के दिन है। होलिका दहन के बाद ही जब प्रहलाद जीवित बच जाता है तो उसकी जान बच जाने की खुशी में ही दूसरे दिन रंगों की होली मनाई जाती है।
दूसरी कथा के अनुसार
देवताओं के कहने पर शिवजी की तपस्या भंग करने के कारण जब कामदेव को शिवजी अपने तीसरे नेत्र से भस्म कर देते हैं तब कामदेव की पत्नि शिवजी से उन्हें पुनर्जीवित करने की प्रार्थना करती है। रति की भक्ति को देखकर शिवजी इस दिन कामदेव को दूसरा जन्म में उन्हें फिर से रति मिलन का वचन दे देते हैं। कामदेव बाद में श्रीकृष्ण के यहां प्रद्युम्न रूप में जन्म लेते हैं।
मौसम में बदलाव के साथ शरीर मेंं हार्मोंस और एंजाइम्स में भी परिवर्तन होते हैं। दिमाग, सेक्सुअल हार्मोंस, हार्ट, लीवर आदि पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। होली पूर्व के ये आठ दिन संकेत देते हैं कि जीवनचर्या में बदलाव कर लिया जाया।
पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ – मार्च 28, 2021 को 03:27 बजे
पूर्णिमा तिथि समाप्त – मार्च 29, 2021 को 00:17 बजे
होलिका दहन रविवार, मार्च 28, 2021 को
होलिका दहन मुहूर्त – 18:37 से 20:56
अवधि – 02 घंटे 20 मिनट
रविशराय गौड़
ज्योतिर्विद