कमांडेंट प्रमोद कुमार को अंतिम विदाई, तिरंगा फहराने के एक घंटे बाद ही दो आतंकियों को मारकर हुए थे शहीद
जम्मू कश्मीर के नौहट्टा में आतंकियों से मुठभेड़ के दौरान शहीद हुए सीआरपीएफ के कमांडेट प्रमोद कुमार ने एक घंटे पहले ही तिरंगा फहराया था। 15 अगस्त को सुबह आठ बजकर 29 मिनट पर उन्होंने तिरंगा फहराया। इसके बाद जब उन्हें पता चला कि आतंकी हमला हुआ है तो वे वहां चले गए। सुबह नौ बजकर 29 मिनट पर उन्हें गोली लगी जिसमें वे शहीद हो गए। प्रमोद को गर्दन के ऊपरी हिस्से में गोली लगी। शहीद होने से पहले उन्होंने दो आतंकियों को मार गिराया था। पिछले महीने 12 जुलाई को ही उनका प्रमोश हुआ था और वे कमांडिंग ऑफिसर बने थे।
प्रमोद कुमार झारखंड के जामताड़ा के रहने वाले थे। मंगलवार को उनका पार्थिव शरीर उनके घर पहुंचा। उनका जन्म बिहार के बख्तियारपुर में 15 अक्टूबर 1972 को हुआ था। 1998 में वे सीआरपीएफ में शामिल हुए। वे तीन साल तक प्रधानमंत्री की सुरक्षा में तैनात एसपीजी में भी कार्यरत रहे। वे चार बहनों में अकेले भाई थे। उनके परिवार में अब माता-पिता, पत्नी नेहा और सात साल की बेटी आरना है। पिछले महीने वे घर जाने वाले थे लेकिन अमरनाथ यात्रा की वजह से ऐसा नहीं हो पाया। जब भी वे अपनी पत्नी से बात करते तो कहते थे, ”देश मेरी मां है। इसकी रक्षा के लिए मैं कुछ भी करूंगा और देखना एक दिन मैं शौर्य चक्र हासिल करके रहूंगा।” प्रमोद की पत्नी नेहा पेशे से इंजीनियर है।प्रमोद को साल 2014 और 2015 में सीआरपीएफ ने सर्वोच्च ऑपरेशनल कुशाग्रता से सम्मानित किया था। 18 की सर्विस के दौरान वे श्रीनगर, त्रिपुरा, असम, जम्मू, बिहार, झारखंड और आंध्र प्रदेश में तैनात रहे। ऑपरेशनल स्किल्स की वजह से ही उन्हें दो साल के लिए एसपीजी में डेपुटेशन दी गई। दो साल पहले अप्रैल 2014 में उन्हें जम्मू कश्मीर भेजा गया। प्रमोद कुमार के बारे में सीआरपीएफ के डीजी के दुर्गा प्रसाद ने कहा, ”वह बहुत बहादुर अफसर थे। वे हमारे बेहतरीन अफसरों में से एक थे।”