कोरोना महामारी के दौरान भी स्कूलों द्वारा लगातार फीस का मांगे जाने का विवाद अब आर पार की लड़ाई में बदलता दिख रहा है । एक ओर जहां स्कूलों ने लगातार अभिभावकों को नोटिस भेजना शुरू कर दिया है जिसके अनुसार अगर वह फीस जमा नहीं करेंगे तो उनके बच्चों की क्लासेस रोक दी जाएंगी वहीं अभिभावकों की ओर से चलाए जा रहे फीस ना लेने के अभियान ने भी जोर पकड़ लिया है
ट्विटर पर नेफोमा, अभिभावक संघ जैसे नोएडा ग्रेटर नोएडा के तमाम संगठन रोजाना ही इसको लेकर मुहिम चला रहे हैं सभी की सरकार से एक ही मांग है कि जब इस कोरोना के हुए लॉकडाउन में लोगों के पास कमाई के कमाई के साधन नहीं रह गए हैं तो आखिर स्कूल किस बेसिस पर लगातार उन्हें परेशान कर रहे हैं सरकार मकान मालिकों से अपील कर रही है कि किरायेदारों से किराया ना लें । बैंकों से को सलाह दी है कि वह 3 महीने तक ईएमआई ना लें लेकिन स्कूलों को सलाह नहीं दे पा रही है कि वह इस सेशन की फीस ना लें।
वहीं स्कूल भी लगातार अपने खर्चों को लेकर आने वाली समस्याओं के मद्देनजर अभिभावकों को पत्र भेज रहे हैं कि वह फीस जल्दी जमा करें उन्हें सभी लोगों की सैलरी देनी होती हैं। हालांकि बीते दिनों स्कूलों पर वहां काम करने वाले कुछ टीचरों ने आरोप भी लगाए हैं या तो उन्हें अप्रैल से आने को मना कर दिया गया या फिर उन्हें मार्च में भी आधी सैलरी दी गई और अब अप्रैल में भी आधी सैलरी दी जाएगी
ऐसे में नोएडा में कुछ अभिभावक अब स्कूलों के नाम काटने के नोटिस के जवाब में अपने बच्चों को इस साल ना पढ़ाने का मन भी बना रहे हैं एनसीआर खबर से बातचीत में नोएडा 7x में रहने वाले जगदीश( बदला हुआ नाम ) ने कहा कि मेरे दो बेटे हैं ऐसे समय में दो बच्चों की ₹70000 की फीस देना मेरे लिए संभव नहीं है स्कूलों की ऑनलाइन क्लासेज सिर्फ दिखावा है फीस लेने के लिए क्योंकि अधिकांश समय मोबाइल पर इंटरनेट के कारण कभी टीचर जो कह रही होती हैं वह सुनाई नहीं देता है
ग्रेनो वेस्ट में रहने वाले और अभिभावक संजय मिश्रा ( बदला हुआ नाम ) साफ कहते हैं की कोरोना के चलते जैसे हालात हैं उसे लगता नहीं कि इस साल बच्चे स्कूल जा भी पाएंगे ऐसे में पूरा सेशन तो ऑनलाइन क्लासेस के बलबूते नहीं चलाया जा सकता I सरकार की एडवाइजरी है कि 10 साल से नीचे के बच्चे कोरोना से जल्दी संक्रमित हो सकते हैं ऐसे में अगर लॉक डाउन खुल भी जाएगा तो भी हम बच्चों को स्कूल किस तरह भेज पाएंगे क्योंकि बच्चे सोशल डिस्टेंसिंग कितना मेंटेन करेंगे स्कूल में यह देख पाना हमारे लिए संभव नहीं होगा स्कूल बसों में बच्चे कैसे जाएंगे यह भी बड़ा सवाल रहेगा तो इससे बेहतर यही है कि इस सेशन में हम बच्चों को ना पढ़ाएं
नोएडा में अभिवाभक संघ में जुड़े अंबुज सक्सेना साफ कहते हैं कि वैश्विक महामारी के बाद वैश्विक मंदी के जिस दौर में भारत आने वाला है उसमें मध्यम वर्ग के लिए स्कूलों को लेकर अपनी अपेक्षाओं को कम करना बहुत जरूरी हो गया है दिल्ली एनसीआर में रहने वाले लोगों के लिए आप दो ही विकल्प हैं या तो वह अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में शिफ्ट करें और सरकार से उन को बेहतर बनाने की मांग करें या फिर इस साल अपने बच्चों को घर से ही पढ़ाएं या 1 साल उनका ड्रॉप कर दो क्योंकि दो बच्चों के साथ इतनी महंगी फीस देना इस महामारी और इसके चलते आने वाली महामंदी के दौर में शायद ही संभव हो
नेफोमा की सचिव रश्मि पांडे ने भी एनसीआर खबर से इस बात पर अपनी सहमति जताई कि उनके पास भी ऐसे कुछ पेरेंट्स के लगातार फोन आ रहे हैं हालांकि उन्होंने इस बात को अभी तक इतना गंभीरता से नहीं सोचा था लेकिन अगर पेरेंट्स ऐसा सोच रहे हैं तो इसमें कुछ गलत भी नहीं है देखा जाए तो बड़ी क्लासेस को छोड़कर बाकियों के लिए 1 साल स्कूल ना भेजना कोई ऐसी प्रॉब्लम की बात भी नहीं है ऑनलाइन के जरिए जो पढ़ाई हो रही है उसमें अभिभावकों को का समय ज्यादा लगता है क्योंकि बच्चों को क्लास में क्या पढ़ाया जा रहा है उसके बाद उसे देखना मुश्किल काम हो जाता है
ऐसे में महामारी के इस दौर में अभिभावकों का बच्चों को इस साल स्कूल ना भेजने का फैसला कितना समझदारी वाला फैसला कहा जाएगा यह आने वाला समय ही बता पाएगा लेकिन स्कूलों के लोगो के सरवाइव कर पाने की जगह पर स्कूल फीस पहले देने की जिद के चलते शायद अभिभावकों के लिए यही बेहतर विकल्प भी होगा