ऋषियोंने कहा-सूतजी! इस विषयको पुनः विस्तारके साथ कहिये। आपके उत्तम वचनामृतोंका पान करते-करते हमें तृप्ति नहीं होती है।
सूतजी बोले–महर्षियो! इस विषयमें एक प्राचीन इतिहास कहा करते हैं, जिसमें एक ब्राह्मण और महात्मा धर्मराजके संवादका वर्णन है।
ब्राह्मणने पूछा-धर्मराज! धर्म और अधर्मके निर्णयमें आप सबके लिये प्रमाणस्वरूप हैं; अत: बताइये, मनुष्य किस कर्मसे नरकमें पड़ते हैं? तथा किस कर्मके अनुष्ठानसे वे स्वर्गमें जाते हैं? कृपा
करके इन सब बातोंका वर्णन कीजिये।
यमराज बोले-ब्रह्मन्! जो मनुष्य मन, वाणी तथा क्रियाद्वारा धर्मसे विमुख और श्रीविष्णुभक्तिसे रहित हैं; जो ब्रह्मा, शिव तथा विष्णुको भेदबुद्धिसे देखते हैं, जिनके हृदयमें विष्णु-विद्यासे विरक्ति
है; जो दूसरोंके खेत, जीविका, घर, प्रीति तथा आशाका उच्छेद करते हैं, वे नरकोंमें जाते हैं। जो मूर्ख जीविकाका कष्ट भोगनेवाले ब्राह्मणोंको भोजनकी इच्छासे दरवाजेपर आते देख उनकी परीक्षा करने लगता है उन्हें तुरंत भोजन नहीं देता, उसे नरकका अतिथि समझना चाहिये। जो मूढ़ अनाथ, वैष्णव, दीन, रोगातुर तथा वृद्ध मनुष्यपर दया नहीं करता तथा जो पहले कोई नियम लेकर पीछे अजितेन्द्रियताके कारण उसे छोड़ देता है, वह निश्चय ही नरकका पात्र है।
जो सब पापोंको हरनेवाले दिव्यस्वरूप, व्यापक, विजयी, सनातन, अजन्मा, चतुर्भुज, अच्युत, विष्णुरूप, दिव्य पुरुष श्रीनारायणदेवका पूजन, ध्यान और स्मरण करते हैं, वे श्रीहरिके परम धामको प्राप्त होते हैं-यह सनातन श्रुति है। भगवान् दामोदरके गुणोंका कीर्तन ही मङ्गलमय है, वही धनका उपार्जन है तथा वही इस जीवनका फल है। अमित तेजस्वी देवाधिदेव श्रीविष्णुके कीर्तनसे सब पाप उसी प्रकार नष्ट हो जाते हैं, जैसे दिन निकलनेपर अन्धकार। जो प्रतिदिन श्रद्धापूर्वक भगवान् श्रीविष्णुकी यशोगाथाका गान करते और सदा स्वाध्यायमें लगे रहते हैं, वे मनुष्य स्वर्गगामी होते हैं। विप्रवर! भगवान् वासुदेवके नाम-जपमें लगे हुए मनुष्य पहलेके पापी रहे हों तो भी भगवान श्री चित्रगुप्त भयानक यमदूत उनके पास भेजते । द्विजश्रेष्ठ! हरिकीर्तनको छोड़कर दूसरा कोई ऐसा साधन मैं नहीं देखता, जो जीवोंके सम्पूर्ण पापोंका नाश करनेवाला प्रायश्चित्त हो।
जो माँगनेपर प्रसन्न होते हैं, देकर प्रिय वचन बोलते हैं तथा जिन्होंने दानके फलका परित्याग कर दिया है, वे मनुष्य स्वर्गमें जाते हैं। जो दिनमें सोना छोड़ देते हैं, सब कुछ सहन करते हैं, पर्वके अवसरपर लोगोंको आश्रय देते हैं, अपनेसे द्वेष रखनेवालोंके प्रति भी कभी द्वेषवश अहितकारक वचन मँहसे नहीं निकालते अपित सबके गुणोंका ही बखान करते हैं, वे मनुष्य स्वर्गमें जाते हैं।
जो परायी स्त्रियोंकी ओरसे उदासीन होते हैं और सत्त्वगुणमें स्थित होकर मन, वाणी अथवा क्रियाद्वारा कभी उनमें रमण नहीं करते, वे मनुष्य स्वर्गगामी होते हैं।
येऽर्चयन्ति हरिं देवं विष्णुं जिष्णुं सनातनम् । नारायणमजं देवं विष्णुरूपं चतुर्भुजम्॥
ध्यायन्ति पुरुषं दिव्यमच्युतं ये स्मरन्ति च । लभन्ते ते हरिस्थानं श्रुतिरेषा सनातनी
जिस-किसी कुलमें उत्पन्न होकर भी जो दयाल. यशस्वी, उपकारी और सदाचारी होते हैं, वे मनुष्य स्वर्गमें जाते हैं। जो व्रतको क्रोधसे, लक्ष्मीको डाहसे, विद्याको मान और अपमानसे, आत्माको
प्रमादसे, बुद्धिको लोभसे, मनको कामसे तथा धर्मको कुसङ्गसे बचाये रखते हैं, वे मनुष्य स्वर्गगामी होते हैं। विप्र! जो शुक्ल और कृष्णपक्षमें भी एकादशीको विधिपूर्वक उपवास करते हैं, वे मानव स्वर्गमें जाते हैं। समस्त बालकोंका पालन करनेके लिये जैसे माता बनायी गयी है तथा रोगियोंकी रक्षाके लिये जैसे औषधकी रचना हुई है, उसी प्रकार सम्पूर्ण लोकोंकी रक्षाके निमित्त एकादशी तिथिका निर्माण हुआ है। एकादशीके व्रतके समान पापसे रक्षा करनेवाला दूसरा कोई साधन नहीं है। अत: एकादशीको विधिपूर्वक उपवास करनेसे मनुष्य स्वर्गलोकमें जाते हैं।
इदमेव हि माङ्गल्यमिदमेव धनार्जनम् । जीवितस्य फलं चैतद् यद्दामोदरकीर्तनम् ॥
कीर्तनाद् देवदेवस्य विष्णोरमिततेजसः । दुरितानि विलीयन्ते तमांसीव दिनोदये।
गाथां गायन्ति ये नित्यं वैष्णवों श्रद्धयान्विताः । स्वाध्यायनिरता नित्यं ते नराः स्वर्गगामिनः॥
वासुदेवजपासक्तानपि पापकृतो जनान् । नोपसर्पन्ति तान् विप्र यमदूताः सुदारुणाः॥
नान्यत्पश्यामि जन्न विहाय हरिकीर्तनम् । सर्वपापप्रशमनं प्रायश्चित्तं द्विजोतम ॥
(९२११०-१६)
यस्मिन् कस्मिन् कुले जाता दयावन्तो यशस्विनः। सानुक्रोशः सदाचारास्ते नरा: स्वर्गगामिनः॥
व्रतं रक्षन्ति ये कोपाच्छ्रियं रक्षन्ति मत्सरात् । विद्यां मानापम
ह्यात्मानं तु प्रमादतः॥
पतिं रक्षन्ति ये लोभान्मनो रक्षन्ति कामतः । धर्म रक्षन्ति दुःसङ्गाते नराः स्वर्गगामिनः॥
(९२।२१-२३)
। अखिल विश्वके नायक भगवान श्रीनारायणमें जिनकी भक्ति है, वे सत्यसे हीन और रजोगुणसे युक्त होनेपर भी अनन्त पुण्यशाली हैं तथा अन्तमें वे नारायण भक्ति के पुण्य से भगवान चित्रगुप्त उन्हें वैकुण्ठधाम में भेजते हैं। जो वेतसी, यमुना, सीता (गङ्गा) तथा पुण्यसलिला गोदावरीका सेवन और सदाचारका पालन करते हैं; जिनकी स्नान और दानमें सदा प्रवृत्ति है, वे मनुष्य कभी नरकके मार्गका दर्शन नहीं करते। जो कल्याणदायिनी नर्मदा नदीमें गोते लगाते तथा उसके दर्शनसे प्रसन्न होते हैं, वे पापरहित हो महादेवजीके लोकमें जाते और चिरकालतक वहाँ आनन्द भोगते हैं। जो मनुष्य चर्मण्वती (चम्बल) नदीमें स्नान करके शौचसंतोषादि नियमोंका पालन करते हुए उसके तटपर-विशेषतः व्यासाश्रममें तीन रात निवास करते हैं, वे स्वर्गलोकके अधिकारी माने गये हैं। जो
गङ्गाजीके जलमें अथवा प्रयाग, केदारखण्ड, पुष्कर, व्यासाश्रम या प्रभासक्षेत्रमें मृत्युको प्राप्त होते हैं, वे विष्णुलोकमें जाते हैं। जिनकी द्वारका या कुरुक्षेत्रमें मृत्यु हुई है अथवा जो योगाभ्याससे मृत्युको
प्राप्त हुए हैं अथवा मृत्युकालमें जिनके मुखसे ‘हरि’ इन दो अक्षरोंका उच्चारण हुआ है, वे सभी भगवान् श्रीहरिके प्रिय हैं।
विप्र! जो द्वारकापुरीमें तीन रात भी ठहर जाता है, वह अपनी ग्यारह इन्द्रियोंद्वारा किये हुए सारे पापोंको नष्ट करके स्वर्गमें जाता है- ऐसी वहाँकी मर्यादा है। वैष्णवव्रत (एकादशी) के पालनसे होनेवाला धर्म तथा यज्ञादिके अनुष्ठानसे उत्पन्न होनेवाला धर्म-इन दोनोंको
ये भक्तिमन्तो मधुसूदनस्य नारायणस्याखिलनायकस्य।
सत्येन हीना रजसापि युक्ता गच्छन्ति ते नाकमनन्तपुण्याः॥ (९२ । २७)
वेतसी यमुनां सीतां पुण्यां गोदावरीनदीम्।
सेवन्ते ये शुभाचाराः स्नानदानपरायणाः॥
न ते पश्यन्ति पन्थानं नरकस्य कदाचन ॥ (९२। २८-२९)
भाग्य विधाता चित्रगुप्त ने तराजूपर रखकर तोला था, उस समय इनमेंसे पहलेका ही पलड़ा भारी रहा। ब्रह्मन्! जो एकादशीका सेवन करते हैं तथा जो ‘अच्युत-अच्युत’ कहकर भगवन्नामका कीर्तन करते हैं, उनपर मेरा शासन नहीं चलता। मैं तो स्वयं ही उनसे बहुत डरता हूँ।
जो मनुष्य प्रत्येक मासमें एक दिन-अमावास्याको श्राद्धके नियमका पालन करते हैं और ऐसा करनेके कारण जिनके पितर सदा तृप्त रहते हैं, वे धन्य हैं। वे स्वर्गगामी होते हैं। भोजन तैयार होनेपर जो आदरपूर्वक उसे दूसरोंको परोसते हैं और भोजन देते समय जिनके चेहरेके रंगमें परिवर्तन नहीं होता, वे शिष्ट पुरुष स्वर्गलोकमें जाते हैं। जो मर्त्यलोकके भीतर भगवान् श्रीनर-नारायण के आवासस्थान बदरिकाश्रममें और नन्दा (सरस्वती)के तटपर तीन रात निवास करते हैं, वे धन्यवादके पात्र और भगवान् श्रीविष्णुके प्रिय हैं। ब्रह्मन्! जो भगवान् पुरुषोत्तमके समीप (जगन्नाथपुरीमें) छ:
मासतक निवास कर चुके हैं, वे अच्युतस्वरूप हैं और दर्शनमात्रसे समस्त पापोंको हर लेनेवाले हैं।
जो अनेक जन्मोंमें उपार्जित पुण्यके प्रभावसे काशीपुरीमें जाकर मणिकर्णिकाके जलमें गोते लगाते और श्रीविश्वनाथजीके चरणोंमें मस्तक झकाते हैं, वे भी इस लोकमें आनेपर मेरे वन्दनीय होते
हैं। जो श्रीहरिकी पूजा करके पृथ्वीपर कुश और तिल बिछाकर चारोंओर तिल बिखेरते और लोहा तथा दूध देनेवाली गौ दान करके विधिपूर्वक मृत्युको प्राप्त होते हैं, वे मनुष्य स्वर्गमें जाते हैं। जो पुत्रोंको उत्पन्न करके उन्हें पिता-पितामहोंके पदपर बिठाकर ममता और अहंकार से रहित होकर मरते हैं, वे भी स्वर्गलोकके अधिकारी होते हैं। जो चोरी- डकैतीसे दूर रहकर सदा अपने ही धनसे संतुष्ट रहते हैं अथवा अपने भाग्यपर ही निर्भर रहकर जीविका चलाते हैं, वे मनुष्य स्वर्गगामी
होते हैं। जो स्वागत करते हुए शुद्ध पीडारहित मधुर तथा पापरहित वाणीका प्रयोग करते हैं, वे लोग स्वर्गमें जाते हैं। जो दान-धर्ममें प्रवृत्त तथा धर्ममार्गके अनुयायी पुरुषोंका उत्साह बढ़ाते हैं, वे चिरकालतक स्वर्गमें आनन्द भोगते हैं। जो हेमन्त-ऋतु (शीतकाल)-में सूखी लकड़ी, गर्मी में शीतल जल तथा वर्षामें आश्रय प्रदान करता है, वह स्वर्गलोकमें सम्मानित होता है। जो नित्य-नैमित्तिक आदि समस्त पुण्यकालोंमें भक्तिपूर्वक श्राद्ध करता है, वह निश्चय ही देवलोकका भागी होता है। दरिंद्रका दान, सामर्थ्यशालीकी क्षमा, नौजवानोंकी तपस्या, ज्ञानियोंका मौन, सुख भोगनेके योग्य पुरुषोंकी सुखेच्छा-निवृत्ति तथा सम्पूर्ण प्राणियोंपर दया ये सद्गुण स्वर्गमें ले जाते हैं।
ध्यानयुक्त तप भवसागरसे तारनेवाला है और पापको पतनका कारण बताया गया है; यह बिलकुल सत्य है, इसमें संदेहकी गुंजाइश नहीं है। । ब्रह्मन्! स्वर्गकी राहपर ले जानेवाले समस्त साधनोंका मैंने यहाँ संक्षेपसे वर्णन किया है; जो वैष्णव भक्त नारायण का भजन करते है उन्हें यमलोक के स्वामी भगवान श्रीचित्रगुप्तजी विष्णु लोक भेजते है अब तुम और क्या सुनना चाहते हो?
रविशराय गौड़
ज्योतिर्विद
अध्यात्मचिन्तक