3 दिन पहले जब प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने देशभर में लोग डाउन की घोषणा की और लोगों से सोशल डिस्टेंसटिंग की अपील की तो ऐसा लगा कि भारत को स्टेज टू से स्टेज 3 में जाने से रोका जा सकेगा लेकिन प्रधानमंत्री की अपील के बाद जिस तरीके से लोगो में रात को ही सब कुछ खरीदने की होड़ में सोशल डिस्टेंसिंग के फार्मूले को ही बिगाड़ दिया जिसके बाद उससे प्रधानमंत्री मोदी के फैसले से पहले देशभर में प्रशासनिक तैयारियों पर सवाल उठे
सवाल इसलिए भी उठे कि गैर भाजपा शासित प्रदेशों की अगर छोड़ भी दें तो भाजपा शासित प्रदेशों में भी केंद्र का इस आने वाले लॉकडाउन को लेकर कोई समन्वय अपनी राज्य सरकारों से नहीं दिखा इसके बाद अगले दिन से जिस तरीके से लोगों को बाहर आने पर मारा पीटा गया बात तो तब ऑर बिगड़ी लोग उसके बावजूद जब शहरों को छोड़कर पैदल ही गांव के लिए निकलने लगे हैं यह स्थिति बेहतर होने की जगह बदतर हो गई है लोग सड़कों पर आए तो समाज सेवा करने वाले लोगों ने उनके लिए खाने के इंतजाम करने शुरू करें लेकिन आज होते होते यह समाज सेवा राजनीति में बदल गई
खुद भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ए कहते नजर आए कि भाजपा के संगठन के कार्यकर्ता देशभर में लोगों को खाने का इंतजाम करेंगे समस्या यह है कि जिस लॉक डाउन को आपने पुलिस और प्रशासन के जरिए साधने की कोशिश की थी ब्लॉक डाउन को आपने अपने ही कार्यकर्ताओं के हाथ में लेकर तहस-नहस कर दिया है
पैदल चलने वालो को लोगों को खाना खिलाने के नाम पर जिस तरीके से नेतागिरी शुरू हो गई है उससे लग ही नहीं रहा है कि इनमें से किसी को भी कोरोना का डर है सबको ऐसा लग रहा है कि उनको तो कोरोना हो ही नहीं सकता है यही लापरवाही भारत को स्टेज 3 में ले जाकर खड़ा कर देगी
प्रशासनिक लेवल पर निश्चित तौर पर ये बड़ा चैलेंज है , यह भी माना जा रहा है की मजदूरों का पलायन एक जरूरी हिस्सा है लेकिन उसको इस तरीके से लागू करना सरकारों की दूरदर्शिता को दर्शा रहा है सरकार के पास अभी भी समय है अगर वह इन सभी गतिविधियों को रोककर पुलिस, स्काउट, रिटायर सैन्य कर्मी , सेना और अपने कर्मचारियों को साथ में लेकर कंट्रोल वे में इसको लागू करें नहीं तो प्रधानमंत्री द्वारा उठाया गया एक बेहतर कदम त्रासदी में बदल जाएगा