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अयोध्या में भगवान राम की जन्मस्थली को देवता का दर्जा, उसे बांटा नहीं जा सकता: रामलला विराजमान

(Copy/NBT) अयोध्या विवाद की सुनवाई के दौरान पक्षकार रामलला विराजमान ने सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को कहा कि भगवान राम की जन्मस्थली को देवता का दर्जा प्राप्त है और मुस्लिम 2.77 एकड़ विवादित जमीन पर अधिकार का दावा नहीं कर सकते। उनका कहना था कि संपत्ति को बांटना ईश्वर को नष्ट करने और उसके साथ तोड़फोड़ के समान होगा।

रामलला विराजमान के वकील सीजेआई रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली 5 सदस्यीय संविधान पीठ के उस सवाल का जवाब दे रहे थे, जिसमें पूछा गया था कि अगर हिंदुओं और मुसलमानों का विवादित स्थल पर संयुक्त कब्जा था, तो मुस्लिमों को कैसे बेदखल किया जा सकता है। ‘रामलला विराजमान’ के वकील ने पीठ से कहा, ‘जब संपत्ति (जन्मस्थान) खुद ही देवता है तो अवधारणा यह है कि आप उसे नष्ट नहीं कर सकते, उसे बांट नहीं सकते या उसके साथ तोड़फोड़ नहीं कर सकते।’

वकील ने आगे कहा, ‘अगर संपत्ति देवता है तो वह देवता ही बनी रहेगी और सिर्फ यह तथ्य कि वहां एक मस्जिद बन गई, उससे देवता बांटने योग्य नहीं हो जाते।’ पीठ में न्यायमूर्ति एस. ए. बोबडे़, न्यायमूर्ति डी. वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस. ए. नजीर भी शामिल हैं। ‘रामलला विराजमान’ की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता सी. एस. वैद्यनाथन ने पांचवें दिन दी,भगवान राम का जन्म स्थान लोगों की आस्था की वजह से एक देवता बन गया है। 1500 ईस्वी के आस-पास बनी 3 गुंबद वाली बाबरी मस्जिद हिंदुओं की आस्था और सम्मान को हिला नहीं पाई।’

वैद्यनाथन ने कहा कि पहुंच को हमेशा चुनौती दी गई, लेकिन हिदुओं को पूजा करने से कभी नहीं रोका गया। उन्होंने कहा, ‘देवता की कभी मृत्यु नहीं होगी और इसलिए, देवता के उत्तराधिकार का कोई सवाल नहीं है। इसके अलावा, मुसलमान यह साबित नहीं कर पाए हैं कि मस्जिद बाबर की थी।’ वैद्यनाथन ने कहा कि मूर्तियों को ‘कानूनी व्यक्ति’ का दर्जा दिया गया है, जो संपत्ति रखने और मुकदमा चलाने में सक्षम हैं और इसके अलावा, भगवान राम के जन्मस्थान को देवता का दर्जा प्राप्त है, जिन्हें समान अधिकार प्राप्त है।


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रामलला विराजमान के वकील ने एक रिपोर्ट और मुस्लिम गवाहों की गवाही का जिक्र करते हुए कहा कि अयोध्या हिंदुओं के लिए उसी तरह का धार्मिक स्थल है, जैसा मक्का मुस्लिमों के लिये और यरुशलम यहूदियों के लिए है। उनका तर्क था कि मुसलमानों को विवादित भूमि का एक तिहाई हिस्सा गलत तरीके से दिया गया है क्योंकि 1850 से 1949 तक वहां नमाज अदा करने के उनके दावे को जमीन के स्वामित्व का समर्थन नहीं हासिल है। उन्होंने कहा कि न तो मुसलमानों ने अपना मालिकाना हक साबित किया है और न ही हिंदुओं के मालिकाना हक से बेदखल होने को साबित किया गया है।

वैद्यनाथन ने संविधान पीठ के सामने अपनी बात रखते हुए दलील दी, ‘मंदिर को ध्वस्त करके मस्जिद के निर्माण के बावजूद देवता भूमि के मालिक बने रहे। निर्मोही अखाड़ा को हाई कोर्ट ने विवादित भूमि का एक तिहाई हिस्सा दिया था। शबैत (भक्त) होने और स्थान के खुद देवता होने के कारण निर्मोही अखाड़ा का जन्म स्थान पर कोई अधिकार नहीं है। पूरे जन्मस्थान (जनमस्थानम) को देवता माना जाना चाहिए और इसलिए अखाड़ा भूमि के स्वामित्व का दावा नहीं कर सकता है, क्योंकि वे देवता की सेवा में हैं।’

पीठ ने पूछा कि किस स्थान को भगवान राम की वास्तविक जन्मभूमि माना जाता है, इसपर वकील ने जवाब दिया कि हाई कोर्ट ने कहा था कि विवादित ढांचे के केंद्रीय गुंबद के नीचे का स्थान भगवान राम का जन्मस्थान माना जाता है। इससे पहले, रामलला विराजमान की ओर से वरिष्ठ वकील के परासरन ने यह कहते हुए अपनी दलीलें समाप्त कीं कि अदालत को मामले में पूरा न्याय करना चाहिए। इलाहाबाद हाई कोर्ट के 2010 के फैसले के खिलाफ शीर्ष अदालत में चौदह अपील दायर की गई हैं। हाई कोर्ट ने चार दीवानी मुकदमों पर अपने फैसले में कहा था कि अयोध्या में 2.77 एकड़ भूमि को तीनों पक्षों- सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और रामलला-के बीच समान रूप से विभाजित किया जाना चाहिए।

एन सी आर खबर ब्यूरो

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