अलविदा महामानव वो आप ही हो जो हमारे अंदर कविता बन कर हमेशा जियोगे।आप अमर हैं नीरज जी अंतर बस इतना है पहले आप शरीर थे अब शब्द हो गए हैं- ‎राजेश कुमार

मेरी और नीरज जी की पहली मुलाकात इलाहाबाद अल्लाहपुर रामलीला मैदान के कवि सम्मेलन में हुई थी, यह मेरे कविता लिखने का शुरुआती दौर था इलाहाबाद के स्टार कवि जानता हूँ मेरी कविता नही मुझे पसंद करने लगे थे,जनकवि कैलाश गौतम जी यश मालवीय, शुधांशु उपाधयाय जी,बुद्धिसेन शर्मा जी,एहतराम भाई मुझे नाम से जानने लगे थे और इससे मेरा घड़क खुल गई थी और मैं छोटे, बड़े कवियों से बेझिझक मिल लेता था,
रात के दो बजे होंगे नीरज जी का कविता पाठ हो चुका था वो स्टेज से उठ कर जाने वाले थे मैं उनके पीछे लग गया,वो बीड़ी का कस खींच रहे थे पर बीड़ी जाम थी कुछ निकल नही रहा था। एकाएक नीरज जी बोले सिगरेट है,शायद मैं काफी नजदीक था उनके वो मेरे मुह से निकलते सिगरेट के भभके को महसूस कर रहे होंगे खैर मैंने सिगरेट निकाल कर दिया गहरे कशों के साथ वो पूरी सिगरेट खींच गए फिर बोले स्टेशन छोड़ दोगे, यह मेरे लिए महत्वपूर्ण बात थी मैं तुरन्त सहर्ष तैयार हो गया उनको साथ साथ कार तक ले गया डर था कि मैं कार लेने गया तो कहीं वो किसी और के साथ न निकल लें लेकिन इस बीच उन्होंने कंधे पर हाथ रख कर मुझे आस्वस्त कर दिया।रास्ते मे उनके लिए सिगरेट खरीदा उनके इसरार पर बीड़ी भी ,अदरक वाली चाय और बंद मख्खन खाया गया तब मेरी गाड़ी में बोतल हमेशा होती थी वो भी नीरज जी के बैग में डाल कर उन्हें स्टेशन पहुचा आया।कुछ ही समय मे ट्रेन उन्हें दूर ले गई,तब यह पता नही था वो शायद हमेशा के लिए दूर जा रहे हैं यह मेरी उनसे पहली मुलाकात थी काश यह आखिरी मुलाकात न होती
‎नमन प्रणाम अलविदा महामानव वो आप ही हो जो हमारे अंदर कविता बन कर हमेशा जियोगे।आप अमर हैं नीरज जी अंतर बस इतना है पहले आप शरीर थे अब शब्द हो गए हैं।
‎पुनः प्रणाम

‎राजेश कुमार