बीजिंग । अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत-चीन के संबंधों को विश्व में सबसे महत्वपूर्ण द्विपक्षीय संबंध के रूप में माना जाता है। सिनो-इंडियन संबंधों में बदलाव दुनिया के बदलते दौर और दोनों देशों के तीव्र गति के विकास के परिणाम के रुप में सामने आया है। एशिया की जीडीपी दुनिया में सबसे टॉप पर है और चीन दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। दूसरी तरफ भारत अपनी अर्थव्यवस्था के लगातार विकास में लगा हुआ है। दक्षिणपूर्वी एशिया और दक्षिण एशिया के घनी आबादी वाले देशों में सकारात्मक बदलाव मानव इतिहास में एक अहम रोल निभाएगा।
अतीत में विश्व ने चीन और भारत को हाशिए पर रख छोड़ा था। भौगोलिक सीमाओं के कारण दोनों के संपर्क बिखर गए थे, जिसके परिणामस्वरुप दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंध कमजोर होते चले गए। भारत के चीन से संबंध भारत-पाकिस्तान के संबंध से कम महत्वपूर्ण रह गए थे। उसी प्रकार चीन के भारत से संबंध अमेरिका, जापान, यूरोप, रूस से संबंध की तुलना में कम महत्वपूर्ण रह गए थे।
हालांकि बीजिंग और नई दिल्ली आज वैश्विक अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण रोल निभा रहे हैं, द्विपक्षीय वार्ता ने एक नया रूप ले लिया है। दोनों देशों के संबंध स्वतंत्र रूप से आगे बढ़ रहे हैं। सिनो-इंडियन सीमा विवाद1962 में टूट गया था। लेकिन अब भारत औऱ चीन दूसरे कूटनीतिक संबंधों के नकारात्मक प्रभाव से बचने के लिए पहले से अधिक स्वतंत्र और आत्मनिर्भर हो गए हैं।
सिनो-इंडियन संबंध विश्व में अधिक महत्वपूर्ण और प्रभावी हैं। भारत ने विश्व का ध्यान आकर्षित करने के लिए 1998 में परमाणु परीक्षण आयोजित किया था और इससे अपनी वैश्विक पहचान बनाई थी। लेकिन वर्तमान में भारत-चीन क्षेत्रीय सुरक्षा को लेकर अधिक चिंतित हैं।
20वीं सदी में भारत औऱ चीन ने व्यापार और संस्कृति के क्षेत्रों में कोई अहम रोल निभाए थे। लेकिन अब सिनो-इंडियन संबंध अपने राजनीतिक, आर्थिक और सुरक्षा के क्षेत्र में तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। दोनों का एक दूसरे को सहयोग और समर्थन विश्व में अन्य देशों को प्रभावित कर रहा है। संभावना है कि अगले 20 से 30 वर्षों में चीन-भारत संबंध दुनिया भर में सबसे महत्वपूर्ण द्विपक्षीय संबंध बन जाएंगे।