प्राइवेट स्कूल सेवा नहीं दे रहे, बच्चों के पैरंट्स को लूट रहे हैं ये बड़ा बयान उच्च न्यायालय ने दिया है । कमर्शल ऐक्टिविटीज के मुद्दे पर हाई कोर्ट ने स्कूलों और वेंडर असोसिएशंस का यह तर्क मानने से इनकार कर दिया कि वे बच्चों को एक ही छत के नीचे पढ़ाई के लिए जरूरी चीजें उपलब्ध कराने की सेवा दे रहे हैं।
जस्टिस इंद्रमीत कौर ने यह टिप्पणी पैरंट्स ऐंड स्टूडेंट्स वेलफेयर असोसिएशन की याचिका पर सुनवाई के दौरान की। उन्होंने दिल्ली सरकार को निर्देश दिया कि वह तय करे कि स्कूलों में मुनाफा कमाने के इरादे से कोई व्यावसायिक गतिविधि न चल रही हो। मामले में अगली सुनवाई 30 जनवरी को होगी।
असोसिएशन की ओर से हाई कोर्ट के सामने दो प्राइवेट स्कूलों की ओर से कैंटीन, बुक शॉप और स्कूल ड्रेस आदि के लिए जारी टेंडर से जुड़े कुछ दस्तावेज पेश किए गए थे। असोसिएशन के जनरल सेक्रटरी रमेश वशिष्ठ ने बताया कि एक स्कूल ने एक वेंडर को 23 लाख रुपये एक साल का टेंडर दे रखा था तो दूसरे ने 11 लाख रुपये में। टेंडर को लेकर संबंधित स्कूलों के मैनेजमेंट की ओर से तर्क दिया गया कि वे बच्चों को पढ़ाई के जिए जरूरी सभी चीजें एक ही छत के नीचे उपलब्ध करवाने की सर्विस दे रहे हैं।
वशिष्ठ के मुताबिक, इस पर सिंगल बेंच ने स्कूल प्रतिनिधियों से कहा कि वे सेवा नहीं दे रहे, बच्चों के पैरंट्स को लूट रहे हैं। सबूत के तौर पर 30 लाख रुपये से ज्यादा के टेंडर कोर्ट के सामने हैं। वेंडर असोसिएशन की दलील तो कोर्ट ने सुनने से भी मना कर दिया।
सीबीएसई की ओर से दलील दी गई कि उसने इसी साल 24 अगस्त को जो सर्कुलर निकाला था उसमें साफ कहा था कि स्कूल सिर्फ एनसीईआरटी किताबों की सप्लाई के लिए ही छोटे आउटलेट खोल सकते हैं। किसी और पब्लिशर की किताबों को नहीं बेच सकते। हालांकि, स्कूलों को स्टेशनरी बेचने की छूट दे दी गई। बोर्ड के सर्कुलर के मुताबिक किसी और पब्लिशर की किताबों को बेचना अफिलिएशन नियमों के खिलाफ माना जाएगा। इसके लिए स्कूल के खिलाफ कार्रवाई भी हो सकती है।