लखनऊ, (हि.स.)। विधानसभा चुनाव को लेकर सभी प्रमुख सियासी दल अब जनता के बीच जाने की तैयारी में हैं। यूपी के लिए इस बार विधानसभा चुनाव बेहद खास है। इसमें एक ओर पिता-पुत्र के विवाद का साया जहां असर डालेगा और समाजवादी पार्टी (सपा) के पास दोबारा सत्ता में आने की चुनौती है, तो बहुजन समाज पार्टी (बसपा) को साबित करना है कि जनता से उसका मोहभंग नहीं हुआ है। कांग्रेस अपना अस्तित्व बचाने की काशिश में है, वहीं भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के लिए यह सत्ता का वनवास खत्म करने का मौका है। इसके अलावा वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव के लिहाज से भी पार्टी के लिए यहां की जीत महत्वपूर्ण होगी। इन सभी मुद्दों पर हिन्दुस्थान समाचार के यूपी प्रभारी राजेश तिवारी और सीनियर जर्नलिस्ट संजय सिंह ने भाजपा सांसद रविन्द्र किशोर सिन्हा से खास बातचीत की।
पेश है इस इन्टरव्यू के प्रमुख अंश-
हि.स. -समाजवादी पार्टी में जो हो रहा है, उससे यूपी की सियासत पर क्या असर पड़ेगा?
जबाबः -ऐसी स्थिति दुभार्ग्यपूर्ण है और राजनीति के लिए सही नहीं है। अस्थिरता किसी भी लिहाज से ठीक नहीं है। अगर यह सारा मामला स्क्रिप्टेड है तो जल्द सामने आ ही जायेगा। फिर अगर सपा का चुनाव चिन्ह साइकिल ही फ्रीज हो जाता है तो ऐसी स्क्रिप्ट का क्या फायदा?
हि.स. -नोटबन्दी के कारण चुनाव में भाजपा को नुकसान होगा?
जबाबः –नोटबन्दी की वजह से सबसे ज्यादा तकलीफ चोरों को हुई, कालाधन रखने वालों को हुई। जनता ने इसका पूरा समर्थन किया है, इसमें कोई सन्देह नहीं है।
हि.स. -विरोधी दल इसे मुद्दा बना रहे हैं?
जबाबः –हर चीज को राजनैतिक लाभ के नजरिए से नहीं देखना चाहिए। जिन्हें मुद्दा बनाना है, वह बनायें। भाजपा सबसे आगे है, उसके मुकाबले कोई रेस में है ही नहीं। फिर विरोधी दल फिनिशिंग प्वाइन्ट पर पहुंचकर कितना दम लगा लेंगे?
हि.स. -पार्टी ने सीएम के लिए कोई चेहरा फाइनल क्यों नहीं किया?
जबाबः –घोषित हो भी सकता है। वैसे चेहरे का मतलब नहीं है, जब विचारधारा की बात हो। भाजपा में कोई वंशवाद नहीं है, कोई खानदान पार्टी नहीं चला रहा है। इसलिए इन बातों का कोई आधार नहीं है।
हि.स. -फिर चुनाव में किसका चेहरा लेकर जनता के बीच जायेंगे?
जबाबः -हम दीनदयाल जी की स्मृति में गरीब कल्याण वर्ष मना रहे हैं। उन्हीं के चेहरे पर इलेक्शन लड़ेंगे। उनसे बड़ा कोई चेहरा नहीं है। वह गरीब के घर में पैदा हुए, गरीबी में जीवन गुजारा, गरीबों के लिए चिन्तन किया और अन्तिम समय में मुफलिस की तरह ही उनका देहान्त हुआ। उनसे बड़ा गरीब कौन है? हम उन्हीं के सिद्धान्तों को लेकर जनता के बीच जायेंगे।
हि.स. -मोदी सरकार पर विपक्षी दल विकास नहीं करने का आरोप लगा रहे हैं, आम जनता पर क्या असर पड़ेगा?
जबाबः –जनता बेवकूफ नहीं है। सिर्फ अंग्रेजी पढ़े लिखे लोग ही समझदार होंगे, यह पैमाना नहीं है। ज्यादा पढ़े लिखे लोग ही बेवकूफ बन जाते हैं। कम पढ़े लिखे लोग देश हित में वोट करते हैं। उनका अपना कोई स्वार्थ नहीं होता। कई बार उन्हें बरगलाने की कोशिशें होती हैं, जिससे वह भ्रम में पड़ जाते हैं, लेकिन यह ज्यादा समय तक नहीं चलता।
हि.स. -सुप्रीम कोर्ट ने धर्म और जाति के आधार पर वोट मांगने को अनुचित बताया है?
जबाबः –बहुत अच्छा फैसला है कोर्ट का। हालांकि उसके बाद भी मायावती मुसलमानों को अपने पक्ष में वोट देने जैसी बातें करती हैं। यह गलत है। सर्वोच्च अदालत के आदेश का खुलेआम उल्लंघन है।
हि.स. -यूपी में जाति-धर्म की सियासत कभी खत्म होगी?
जबाबः – जाति यथार्थ है, इसे झुठलाया नहीं जा सकता, लेकिन जाति रोटी नहीं देती है। जाति में बेटी दे सकते हैं, भात खा सकते हैं। रोटी तो विकास ही देता है।
हि.स. -जातिवादी राजनीति का असर कुछ कम हो रहा है?
जबाबः –उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में लोकसभा चुनाव के दौरान जनता ने इसका सबूत दिया है। युवा वर्ग अब बहकावे में नहीं आयेगा। उसे रोजगार चाहिए, जातिवादी माहौल नहीं। जिस देश की आधे से ज्यादा आबादी रोटी के लिए संघर्ष कर रही हो, वहां विकास ही जातिवादी राजनीति को जड़ से खत्म करने का मुख्य जरिया है।
हि.स. -मौलाना कल्बे सादिक ने हाल ही में कहा कि मुसलमानों को मदरसों की नहीं आधुनिक तालीम की जरूरत है?
जबाबः –शत प्रतिशत सही कहा है। पढ़े-लिखे और सम्पन्न मुसलमान दीनी तालीम के साथ आधुनिक शिक्षा पर भी जोर देते हैं और अपने बच्चों को वह ऐसी शिक्षा दे रहे हैं। जबकि गरीब मुसलमान मजबूरीवश अपने बच्चों को मदरसे में ही पढ़ा रहा है। ऐसे में उसके बच्चे कैसे डॉक्टर, इंजीनियर या बड़े अफसर बनेंगे? आतंकवाद को भी शिक्षित और जागरूक होकर ही खत्म किया जा सकता है।
हि.स. -उवैशी ने मुस्लिम इलाकों में बैंक और एटीएम नहीं होने के आरोप लगाए?
जबाबः –भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है। यह आरोप सही होते तो इसे हिन्दू राष्ट्र नहीं कहा जाता? अगर मान लिया जाए हिन्दुआें की आबादी 85 प्रतिशत और मुसलमानों की 15 प्रतिशत है, तो किसी समस्या से परेशान होने वाले हिन्दू भी तो 85 फीसदी होंगे। फिर कैसे कहा जा सकता है मुसलमानों को खास मकसद से परेशान किया जा रहा है? जिसकी आबादी जितनी ज्यादा होगी, उसकी परेशानी भी अनुपात में उतनी ज्यादा होगी। यह वोट के लिए मुसलमानों को बरगलाने की कोशिश है।
हि.स. -राष्ट्र के निर्माण में कई नेताओं का योगदान है, लेकिन उन पर चर्चा नहीं होती?
जबाबः –दरअसल कांग्रेस ने एक सोची समझी रणनीति के तहत राष्ट्रवादी विचारधारा को भुलाने का काम किया, जिससे परिवारवाद को बढ़ावा मिले और आने वाली पीढ़ी एक ही परिवार का योगदान आज़ादी में समझे। नेता सुभाष चन्द्र बोस, सरदार पटेल, राजेन्द्र प्रसाद, लाल बहादुर शास्त्री, डॉ. लोहिया, विवेकानन्द सहित कई बड़े नेताओं के साथ ऐसा किया गया। यहां तक कि शास्त्री जैसे बड़े नेता की मृत्यु के बाद उन्हें राजघाट में जगह नहीं दी गई।
हि.स. -कई बड़े नेताओं की मौत पर आज तक रहस्य बना हुआ है ?
जबाबः –देखिए नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, लाल बहादुर शास्त्री, श्यामा प्रसाद मुखर्जी, डॉ. लोहिया सहित जितने भी ऐसे नेता हैं, जिनकी मौत संदिग्ध परिस्थतियों में हुई है और इसके पीछे षड़यन्त्र के आरोप लगते रहे हैं, उनका खुलासा होना चाहिए। जनता को सच्चाई जानने का हक़ है। मेरी केन्द्र सरकार से अपील है कि वह इस दिशा में पहल करे।
हि.स. -उप्र. भाजपा में नए नेताओं को तरजीह मिल रही है?
जबाबः –यह तो बहुत अच्छी बात है। प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य को ही देख लीजिए। युवा हैं, ऊर्जावान हैं। पार्टी में और भी कई युवा नेता है। नौजवान आगे और भी अच्छा काम करेंगे। यह भाजपा के लिए शुभ संकेत है।
हि.स. -महिलाओं को टिकट देने में पार्टी अभी भी पीछे है?
जबाबः –ऐसा नहीं है। मुश्किल यह है कि चुनाव के दौरान टिकट के लिए पुरूष और महिला दोनों के बहुत आवेदन आते हैं। अगर महिलाओं की बात करें तो अधिकांश सिर्फ इलेक्शन के दौरान सामने आती हैं। सिर्फ एक दिन आने से तो उन्हें प्रत्याशी नहीं बनाया जा सकता? उन्हें साल के 364 दिन भी पार्टी के लिए मेहनत करनी होगी। फिर भी जो जुझारू और जिताऊ महिला प्रत्याशी हैं, पार्टी उन्हें बिना किसी हिचक के टिकट देती है।