एक चुनी गई सरकार का फेक एनकाउंटर- नीरज बधवार

अरणब गोस्वामी आतंकी देश पाकिस्तान को गरियाते हैं तो युद्धोन्माद फैलाते हैं, NDTV को संवदेनशील जानकारी लीक करने पर लताड़ लगती है तो पूरी पत्रकारिता की स्वतंत्रता ख़तरे में पड़ जाती है। एनडीटीवी को 2 परसेंट लोग देखते हैं तो क्या हुआ तुम उसका सम्मान करो, मगर हम मोदी को देश का प्रधानमंत्री कैसे मान लें उसे तो 31 % वोट ही मिले हैं। एनकाउंटर में आतंकी मारे जाते हैं तो अल्पसंख्यक के मानवाधिकारों का हनन हो जाता है, तीन तलाक का विरोध कर सरकार मानवाधिकारों के हनन का मुद्दा उठाती है तो वो अल्पसंख्यकों के धर्म में दखल देती है। केजरीवाल को काम न करने देकर परेशान कर प्रधानमंत्री चुनी गई सरकार का अपमान करते हैं, मगर प्रधानमंत्री के हाथों एक पत्रकार का सम्मान न लेना महान घटना है, क्योंकि मोदी चुने हुए प्रधानमंत्री थोड़ा हैं, उन्हें तो पेप्सी का स्क्रैच कार्ड छीलने पर पीएम की कुर्सी मिली है।

बीफ खाने पर अख़लाक को उन्मादी भीड़ मार देती है तो पूरे देश में असहिष्णुता बढ़ जाती है और बंगाल के बीरभूम में मोहर्रम का चंदा न देने पर इंद्रजीत दत्ता की हत्या हो जाती है तो कुछ नहीं होता। होगा भी कैसे, हमें तो पता ही नहीं कि ऐसी कोई घटना हुई है! केरल में वामपंथी संघ कार्यकर्ताओं की हत्या कर देते हैं तब भी साम्प्रदायिक सौहार्द्र पर आंच नहीं आती, कर्नाटक में आए दिन संघ कार्यकर्ता कत्ल किए जा रहे हैं तब भी सद्भाव बना हुआ है। मनमोहन के वक्त सलमान रुश्दी को जयपुर लिटरेचल फेस्टिवल अटैंड नहीं करने दिया तब भी स्क्रीन काली नहीं हुई, यूपीए ने 2012 में दसियों ट्विटर अकाउंट बंद कर दिए तब भी आपतकाल नहीं आया। औवेसी के गुंडों ने तसमीना नसरीन पह हैदराबाद में हमला कर दिया तब भी देश में गंगा जमनी संस्कृति कायम रही और सिब्बल 66 ए लाकर जब कार्टूनिस्टों को जब जेल में ठूंस रहे थे, Twitter अकाउंट, ब्लागस्पॉट बैन करवा रहे थे तब भी भारत JOURNALISTIC FREEDOM की अंतर्राष्ट्रीय मिसाल बना हुआ था। और तो और बंगाल में दस सालों से मुस्लिम बहुल इलाकों में खौफ के मारे हिंदू दर्गा पूजा नहीं मना पा रहे थे और दुनिया में एक धर्मनिरपेक्ष देश का मुंह काला हो रहा था, तब भी इसके विरोध में कोई स्क्रीन काली नहीं हुई, क्योंकि तब हवा में पीएम 2.5 का स्तर इतना ज़्यादा था कि किसी को दिखाई नहीं दिया। मगर आज जब पीएम 2.5 का स्तर कम हुआ और 2.5 सालों से पीएम बदला है तो झुनझुनिया टाइम्स में छपी ख़बर में प्रूफ की गलती ढूंढ लेने पर पूरे देश की मीडिया पर आपातकाल लागू हो जाता है। दरअसल हर शह में आपातकाल और असिहष्णुता ढूंढने वाली ये वो कौम है जो मोदी के पीएम बनने पर देश छोड़ने की बात कहा करती थी और उनके तमाम प्रपंचों के बाद जब वो पीएम बन गए तो उन्हें लगता है कि देश में होने वाली हर घटना पर तिल का ताड़ बनाया जाए और ताड़ के उस पहाड़ पर चढ़कर इतनी ज़ोर से चिल्लाया जाए, इतनी भीड़ इकट्ठा कर ली जाए कि वो एक चुनी हुई सरकार का फेक एनकाउंटर कर दे। क्योंकि भागे हुए आतंकियों के साथ न्याय करने का हक भले ही अदालत को हो मगर दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में एक चुनी सरकार का फैसला तो 2 परसेंट टीआरपी वाले चैनल को स्टूडियों में 2 जोकरों को बिठाकर ही करना है।

नीरज बधवार