कश्मीर बदल रहा है : महसूस किया आपने ? अवनीश पी एन शर्मा
“कश्मीर हमारा अटूट-अभिन्न अंग है”। कानों में उतरता यह नारा आज़ादी के बाद पैदा हुए हर हिंदुस्तानी ने राजनीतिक लोरी की तरह सुना है। इनमे से तमाम ने इतिहास के पन्नों पर घुटनों के बल सरकते हुए यह भी जाना कि पचास के दशक तक उसी अटूट-अभिन्न अंग में एक आम हिंदुस्तानी परमिट लेकर जाने की हैसियत रखता था। जरा बड़े होकर उसे यह भी पता चलता है कि उसके उसी अटूट-अभिन्न अंग का मालिक कोई दूसरा भी था, कश्मीर का प्रधान यानी अपना प्रधानमंत्री। हद तो तब हुई जब उसने यह जाना कि उसके अटूट-अभिन्न अंग का रंग भी उसके बाकी शरीर जैसा तिरंगा न होकर कुछ और था, यानी कश्मीर का अलग झंडा, निशान। उसे अब यकीन हो चला था कि अपने जिस शरीर को वह जमाने भर से ऊपर मानता है वो सामान्य नहीं। उसे एक विकृत शरीर मिला था पैदाइशी इसका सच उसके सामने था।
उसे इतिहास के बीते पन्नों ने आगे बताया कि कैसे एक श्यामा प्रसाद मुखर्जी नाम के बंगाली राष्ट्रवादी राजनेता ने इस विकृत शरीर के सामान्यीकरण के लिए आज़ाद भारत में पहली आवाज ” एक देश में दो प्रधान, दो निशान, दो विधान…. नहीं चलेगा-नहीं चलेगा कहते हुए उठाया और उसके उसी अटूट-अभिन्न अंग के इलाज के लिए कूच कर दिया। आगे वो बीते पन्ने पढ़ कर तनिक खौफ में आ जाता है यह जान कर कि उसके अटूट-अभिन्न अंग की विकृति में कितने घातक और रहस्यमयी कीटाणु थे। 47 में शरीर जन्मने के बाद विकृत अंग के इस पहले इलाज के दरम्यान ही चिकित्सक और सर्जक श्यामा प्रसाद मुखर्जी जी की मौत हो गयी। विकृति के कीटाणु इतने घातक और रहस्यमयी कि तबके देश प्रधान पंडित नेहरू ने उनके परिवार को भी शरीर से मिलने न दिया और अंतिम संस्कार कर दिया गया।
लेकिन उन्ही बीते पन्नों ने उसे यह भी बताया कि डॉक्टर के इस पहले इलाज के डोज ने अपना काम किया और उसका असर था कि उसके अटूट-अभिन्न अंग कश्मीर ने एक प्रधान और एक निशान पाया। पन्ने अफ़सोस की एक बात भी दर्ज करते हैं कि पहले इलाज से एक विकृति बच गयी। एक विधान यानी कश्मीर में देश का संविधान लागू होना।
47 के बाद पैदा हुए उस आम हिंदुस्तानी ने पचास के दशक के इस इलाज के बाद एक बार फिर अपने अटूट-अभिन्न अंग की बची रह गयी एक विकृति गैर समान विधान के साथ 60 के दशक से लगायत आज तलक जीने को मजबूर रहा। लोरियां हर पैदा होने वाले के लिए यूँ ही चलती रहीं : कश्मीर हमारा अटूट और अभिन्न अंग है।
साल 2014 आज़ाद शरीर की 70 साला उम्र लेकर आया और देश का राजनितिक कैलेंडर बदल के बताता है कि उसने शरीर में एक बदलाव के साथ-साथ उस अटूट-अभिन्न अंग में भी पहली बार एक चौंकाने वाला बदलाव देखा है। यानी जम्मू-कश्मीर में भाजपा और पीडीपी का गठबंधन और साझा सरकार। वह चौंक जाता है और अटूट-अभिन्न अंग के इस बदलाव से अचक सा जाता है। फिर धीरे धीरे उसे शेष शरीर के साथ इस अंग के बदले साझेपन का अहसास होने लगता है। दो सालों तक पीडीपी-भाजपा गठबंधन की सरकार में उसके अटूट-अभिन्न अंग ने बाढ़ जैसी त्रासदी ही नहीं, विकास और लगभग शांति के साथ विकृत कीटाणुओं के काबू का अच्छा काम किया था।
47 के बाद वाले उस आम हिंदुस्तानी को अब समझ आने लगा था कि पचास के दशक के बाद एक बार फिर शरीर की विकृति का इलाज करने वाला जरूरत के मुताबिक सर्जन आया है। जिसके साथ उसके अटूट-अभिन्न अंग की विकृति और उसे करने वाले कीटाणुओं के अच्छे पहचान वाली डॉक्टर तैनात है। यानी महबूबा मुफ्ती का मुख्यमंत्री बनना।
मेडिसिनल-सर्जिकल इलाज देख उसके अटूट-अभिन्न अंग की विकृति के जिम्मेदार वायरस सक्रिय हुए और पैदा हुआ कीटाणु ‘बुरहान’। लेकिन इलाज को तत्पर सर्जन की टीम ने उससे ऑपरेशन थियेटर में निपटा और इधर डॉक्टर ने घूम-घूम कर वार्डों से लेकर सड़कों, मुहल्लों तक इस प्रजाति के जन्मते कीटाणुओं को उनकी पहचान… पत्थरों के सामने, प्लस पोलियो खुराक की मानिंद छोटी-छोटी मीठी गोलियों से बखूबी कंट्रोल करना शुरू किया।
अब उस 47 के बाद पैदा हुए आम हिंदुस्तानी के पास उसके अटूट और अभिन्न अंग पर पूछने के लिए सवाल था। वो पूछना चाहता है :
– क्या यह सच नहीं कि आज सत्ता में बैठी सरकार और उसकी पार्टी के प्रणेता डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ही आज़ाद भारत के वह पहले राजनेता थे जिनके निर्णायक पहल, संघर्षों और अंततः बलिदान के बाद कश्मीर की दो विकृतियां (प्रधान और निशान) दूर हुईं ? और उसका अटूट-अभिन्न अंग पहली बार बदला ?
– क्या यह सच नहीं है कि घाटी में अलगवाववाद से मुलायम रिश्ता रखने वाली पीडीपी पिछले 2 सालों से यूँ काम कर रही है जैसे वो खुद के इतिहास को भूले बैठी हो ? क्या यह कश्मीर के बदलने की आहट नहीं है कि केंद्र के कंधे से कंधा मिला कर महबूबा की सरकार इन भाड़ों पर पैदा होते विषाणुओं, कीटाणुओं से सख्ती से निपट रही हैं ? क्या आपको पीडीपी को मिले घाटी के जनमत की सहमति नहीं दिखाई देती महबूबा के स्टैंड में ?
आज़ाद भारत में पैदाइशी विकृत कश्मीर में पहले बदलाव का काम भी आज की सत्ता के दार्शनिक शिखर पुरुष श्री मुखर्जी के हाथों हुआ तो भरोसा हो गया है उस आम हिंदुस्तानी को कि एक विधान यानी 370 का खात्मा कर बाकी इलाज भी उन्हीं के आशीर्वादों वाली राजनैतिक सत्ता कर सकेगी।
आपने कश्मीर पर अटूट और अभिन्न की बस लोरियां सुनाईं, इन्होंने 50 के दशक से शुरू हो कर कश्मीर को बदला है। इस दावे की बुनियाद पर आपको मानना होगा कि कश्मीर में अगर कुछ भी स्थाई बदलेगा तो तो वो इन्ही से, तारीखें गवाह है, जांच आइये और आप भी भरोसा करिये। शेख अब्दुल्ला से महबूबा मुफ्ती तक…. कश्मीर बदल रहा है।
अवनीश पी एन शर्मा