अब ना तो लोहिया प्रासंगिक हैं न नेहरू – राजेश श्रीवास्तव

ये अमरीका का कदम चूमने का सिलसिला नरसिम्हा राव के ज़माने से शुरू हुआ जो अब तक जारी है।सच पूछा जाये तो नेहरू का समाजबाद पूरी तरह फ़ेल हो चुका था।भारत का द्रुत विकास 90 के दसक से शुरू हुआ।जो शायद रूस के बाँहों से निकल कर अमरीका की गोद में बैठने जैसी बात के कारण हुआ।पूंजीवाद को गाली देना एक साम्यवादी फैसन सा है और सर्वहारा के हक़ में लड़ना और अंततः सर्वहारा को ही जाने अनजाने में नुकशान पहुचाना साम्यवाद की नियति बन गई थी।90 में 75लाख लोग जहाज़ का सफ़र करते थे अब 9 करोड़ लोग करते है यह पूंजीवादी नीतियों या साम्यवादियों की भाषा में अमरीका के चरण चुम्बन का परिणाम है।वक्त बदल रहा है अब ना तो लोहिया प्रासंगिक हैं न नेहरू ।उपभोक्तावाद ने घर घर ac टीवी पंहुचा दिया कार मामूली बात है।अगर 1880 ~1936 प्रेमचंद कालीन कहानियों से हम अपने अतीत में झांक सकें तो भुखमरी से हम संवृध्दि की तरफ बढ़ रहे हैं।।ये पूंजी वाद की देन है।अब निराशा से हमे आशा की और कदमताल करना है।।इसी में देश की भलाई है।