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वामपंथियों की देशभक्ति को लेकर नफरत है की वो JNU में देश विरोधी नारे के रूप में प्रकट हुई।- शरद श्रीवास्तव

वामपंथ का मूल समानता है। हर तरह के भेदभाव के खिलाफ सभी की समानता का सिद्धांत।

और राष्ट्र इसी समानता के सिद्धांत में बाधक है। देशप्रेम इस समानता में बाधा उत्पन्न करता है। वामपंथ देश की सीमाओं तक सिमटा हुआ नहीं है। ये वैश्विक है। ये पूरे विश्व में समानता की बात करता है।

भारत के किसान और मजदूर वही समस्या झेलते हैं, वैसा ही शोषण झेलते हैं, जैसे पाकिस्तान के या दुनिया के किसी और देश के। लेकिन भारत और पाकिस्तान के गरीब मजदूर किसान एक दुसरे देश के गरीब मजदूर किसान से नफरत करते हैं।

ये नफरत वामपंथ के सिद्धांत के मुताबिक देशप्रेम की भावना की वजह से आई है। वर्ना दोनों एकजुट होकर अपने हितों के लिए लड़ते। शोषण को ख़तम करने में एक दुसरे के सहायक होते।

अच्छा सिद्धांत है। सैद्धांतिक रूप से सभी सहमत होंगे। लेकिन वामपंथ अलग है वामपंथी अलग हैं।

वामपंथियों ने कैसे इस सिद्धांत को प्रस्तुत किया।

मैंने कभी किसी वामपंथी को ये सिद्धांत लोगों को समझाते नहीं देखा। यूँ भी वामपंथी प्रेम प्यार की भावना में विश्वास नहीं करते। कभी किसी ने देखा है की कोई वामपंथी देश में एकता की अपील कर रहा हो। सभी धर्मो के लोगों से मिल जुल कर रहने की सिफारिश कर रहा हो। फिर वो कैसे दो देशों की जनता से ये कह सकता है की आपसी नफरत छोड़ दो और प्रेम से रहो।

दिक्कत ये भी है की समानता आ गयी या प्रेम प्यार फ़ैल गया तो वामपंथी भी तो अप्रासंगिक हो जायेगा। फिर उसकी उपयोगिता क्या रहेगी।

तो फिर वामपंथी कैसे काम करते हैं।

वामपंथी ऐसी किसी भी बात, या व्यक्ति की तीखी आलोचना, निंदा करते हैं जो देशप्रेम की भावना को बढ़ावा देती है। कुछ उदाहरण …

दो साल पहले सचिन तेंदुलकर को भारत रत्न मिला था। पूरा देश खुश था। लोग धर्म जाति से आगे बढ़कर देश प्रेम में रंगते हुए सचिन को इस उपाधि मिलने पर एक दुसरे को बधाई दे रहे थे। याद कीजिये तमाम वामपंथियों के फिर क्या किया था। कैसे सचिन की तीखी आलोचना की। उनके ऊपर उनके चरित्र के ऊपर कैसे कैसे सवाल उठाये।

ऐसे ही जब भी अमिताभ की बात आती है तो उनके गुजरात कनेक्शन पर उनके ऊपर सवाल उठाते हैं। देश की समस्याओ पर उनकी चुप्पी को लेकर उनके ऊपर तंज करते हैं।

सचिन और अमिताभ की आलोचना एक बार को सहज स्वीकार्य हो सकती है। लेकिन याद कीजिये जब कलाम साहब की दुखद मृत्यु हु। जब पूरा देश उनकी याद में दुखी हो रहा था , एकजुट हो रहा था। लोग हिन्दू मुस्लिम से ऊपर उठकर उनको याद कर रहे थे। तब इन्हीं वामपंथियों ने क्या किया ?

कलाम साहब की आलोचना शुरू की। मिसाइल और न्यूक्लियर प्रोग्राम में उनके शामिल होने के नाते उनकी उपलब्धियों पर पानी फेरने के प्रयास किया। बीजेपी से उनके जुड़ाव को रेखांकित किया। सोचिये क्यों, क्यों वामपंथियों को ऐसी आग लगती है।

जब पूरा देश सियाचीन से बचाकर दिल्ली लाये हनुमंथप्पा के जीवन के लिए दुआएं मांग रहा था, तब उसी समय JNU में भारत के खिलाफ नारे लग रहे थे। ऐसे समय कोई कैसे ऐसा काम कर सकता है। कैसे किसी की देशभक्ति शुन्य पर पहुँच सकती है।

पूरे भारत के लिए देशभक्ति का सबसे बड़ा प्रतीक सेना है. जिसमे हर धर्म हर जाति प्रदेश से लोग शामिल होते हैं कुर्बानी देकर अपने देश का नाम ऊँचा करते हैं।

वाम पंथियों के लिए सबसे कष्टकारी भारतीय सेना है। वामपंथियों ने हमेशा भारतीय सेना को टारगेट किया है। इनकी टाइम लाइन देखिये। आपको समय समय पर देश की सेना के ऊपर पोस्ट मिलेंगी।

ये भारतीय सेना को सरकारी हत्यारे कहते हैं। यूँ इनका तर्क है की 5-10 छात्रों की नारेबाजी से पूरे JNU का आकलन नहीं किया जा सकता, उसको देश द्रोही नहीं कहा जा सकता। लेकिन कुछेक घटनाओं की वजह से ये पूरी सेना को बदनाम कर सकते हैं।

एकाध ही महीने पहले एक ट्रेन की मिलिट्री बोगी में एक लड़की से बलात्कार की खबर आई थी, जिसकी वजह से इन्हीं लोगों ने पूरी सेना को बदनाम किया। कश्मीर और मणिपुर में हुई ऐसी घटनाओ पर पूरी सेना को कठघरे में खड़ा किया। बाद में जब पता चला की घटना में सेना का नहीं BSF के जवान थे तो इन लोगों ने एक खेद प्रकाश भी लिखना जरूरी न समझा।

समझने की कोशिश कीजिये वामपंथियों की चालबाजियो को। ये देश को दीमक की तरह चाट रहे हैं खोखला कर रहे हैं। देशभक्ति को लेकर इनकी नफरत इतनी बढ़ चुकी है की वो JNU में देश विरोधी नारे के रूप में प्रकट हुई।

बहुत से पेड़ इस दुनिया में ऐसे होते हैं जो अपनी सुन्दरता दिखाकर अपनी ओर खींचते हैं और फिर अपना शिकार बना लेते हैं। सावधान रहिये अगर आपको वामपंथ रुचिकर लगता है

शरद श्रीवास्तव

एन सी आर खबर ब्यूरो

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