बड़ा सवाल : नरेंद्र मोदी जी आखिर मज़बूरी क्या है ? – आशु भटनागर
मई २०१४ में जबरदस्त बहुमत से आये सत्ता में आये नरेंद्र मोदी सरकार के २ साल भी पुरे नहीं हुए है पर हाँफते दिखाई देने लगे है I विरोधियो की जगह उन पर समर्थको का दबाब अब हर तरफ से बढ़ने लगा है I कल तक जो लोग आगे बढ़ कर मोदी के लिए लड़ने मरने को तैयार रहते थे वो अब सवाल पूछने लगे है I पार्टी में भी मोदी की लकीर को अंतिम बात मानने वालो की संख्या कम होती जा रही है I हाशिये पर पड़े लोग मार्गदर्शक मंडल से बाहर आकर अब सरकार की नीतियों पर सवाल उठा रहे है I आर के सिंह , शत्रुघ्न सिन्हा और यशवंत सिन्हा जैसे पुराने नेता तो अब तक चुप थे अब आलोचना करने लगे है
पिछले २० महीनो में दिल्ली और बिहार को हारने के बाद जहाँ उनके राजनैतिक कौशल को लोग चुका हुआ मानने लगे है I लगातार हुई इन हार के कारण चाहे जो भी रहे हो मगर कभी उनके करिश्मे के सहारे अपनी नैया पार लगाने वाले लोग भी अब उन पर सवाल उठाने लगे है I देश की विकास योजनाओं पर खुद मोदी ही अकेले कई मोर्चो पर इस तरह लगे दिखाई दे रहे है जैसे या तो वो अपने साथ खड़े नेताओं पर विश्वाश नहीं कर पा रहे है या बढ़ी हुई अपेक्षाओं के बोझ से मोदी तय नहीं कर पा रहे है की किसको साथ ले किसको नहीं I पिछले कई महीनो में ऐसी बातें कई बार सामने आयी है जब पता लगा की मोदी को उनकी गति साथ में चलने वाले लोग नहीं मिल पा रहे है शायद इसीलिए मंत्रिमंडल का विस्तार और फेरबदल के कार्य टालते ही जा रहे है I
देश को विकास के पथ पर आगे ले जाने के मोदी के सभी योजनाओं के दूरगामी परिणाम चाहे जो पर आम आदमी के रोज मर्रा की बातों में इसका प्रभाव ना दिखाना अब युवा समर्थको को भी बेचेन कर रहा है I विदेशी निवेश आ रहा है मगर उसके परिणाम कब तक लोगो को रोजगार की शक्ल में दिखेंगे ये तय नहीं है I पैट्रोल और डीजल के दामो को अंतररास्ट्रीय स्तर के अनुरूप भी कम ना होना आम जनता में भावनात्मक तोर पर उन पर सवाल उठा ही रहा है I कमजोर विपक्ष या ना के बराबर रहा विपक्ष संसद में जिस तरह सरकार को बंधक बनाए हुए है उससे भी मोदी की मजबूत नेता वाली छवि कमज़ोर हो रही है I
इसमें कोई शक नहीं की मोदी जितनी मेहनत कर रहे है उतनी शायद ही किसी और प्रधान मंत्री ने की हो I २० महीनो से बिना रुके उनके काम करने के जस्बे को कोई भी इनकार नहीं कर सकता I भारत को विश्वस्तर पर एक सफल ब्रांड बनाने की उनकी सफल निति को भी भारत में स्वीकार करना ही होगा I विश्वस्तरीय मोर्चे पर इतनी सफल भूमिका शायद ही किसी ने आज तक भारत के लिए निभाई हो लेकिन पाकिस्तान के मोर्चे पर जिस तरह मोदी ने चुप्पी साधी है वो अब उनके समर्थको के भी सब्र का इम्तिहान लेने के लिए बहुत हैं
पाकिस्तान के मुद्दे पर मोदी की अब तक की बनाई मजबूत भारत की छवि देश के अंदर भी बिखरती दिखाई दे रही है I देश के लोग तय ही नहीं कर पा रहे है की अगर पाकिस्तान के साथ मोदी भी मनमोहन सिंह वाली पालिसी ही जारी रखेंगे तो वो मोदी से क्या मांगे ?
कट्टर राष्ट्रवाद और अखंडता के जिस लहर पर सवार हो कर मोदी इतने प्रचंड बहुमत से आये थे अब वही समर्थक ये सवाल पूछ रहे है की आखिर पाकिस्तान से भारत मोदी की अगुआई में भी वही सबुत पेश करने और उन आतंकियों पर कार्यवाही करने जैसे मांगे रख कर क्या हासिल कर रहे है ?
भारत भावना प्रधान देश है और भारत की जनता ने मोदी को उनके दबंग छवि के चलते ही चुना था और शायद उन्ही लोगो को मोदी का डिप्लोमैटिक रूप शायद नहीं स्वीकार हो पा रहा वो आज भी मोदी से वही दबंग व्यक्तित्व की उम्मीद कर रहे है I देश मोदी से विकास और सुरक्षा दोनों ही मुद्दो पर समझोता करने को तैयार नहीं दिखाई दे रहा है और अब नरेंद्र मोदी को भी दोनों ही मामलो पर जल्द ही अपनी मजबूती साबित करनी ही होगी I नहीं तो इस बार टूटी उम्मीद भारत के लोगो को कहाँ ले जा कर छोड़ेगी इसका आंकलन खुद मोदी भी समझ रहे होंगे
आशु भटनागर