दिल्ली पुलिस आयुक्त भीमसेन बस्सी सोमवार को कुछ ज्यादा ही बदले हुए अंदाज में दिखे। एक सधे हुए राजनेता की तरह रह-रहकर वह दिल्ली सरकार पर हमला बोलते रहे और घड़ियाली आंसू बहाने वालों पर तंज कसते हुए कड़वे सच का सामना कराते रहे। अगली पारी के रूप में राजनैतिक दल में शामिल होने या सेवा विस्तार के सवाल पर सच का सामना करते हुए कहा कि 29 फरवरी तक का इंतजार करें।
दिल्ली पुलिस को दिल्ली सरकार के अधीन देने की मांग व दिल्ली सरकार से टकराव ने इस वर्ष दिल्ली पुलिस को सुर्खियों में बनाए रखा। आम आदमी पार्टी की सरकार पुलिस आयुक्त को एक भाजपा नेता की तरह काम करने का आरोप लगाते हुए घेरे रही। आरोप लगे कि आप नेताओं पर कार्रवाई के इनाम के रूप में केंद्र की भाजपा सरकार बस्सी को सेवा विस्तार देने के बारे में सोच रही है। आप नेताओं ने उन पर भ्रष्टाचार के आरोप भी लगाए।
बतौर पुलिस कमिश्नर कार्यकाल की आखिरी सालाना पत्रकार वार्ता में बस्सी ने पुलिस के आंकड़ों पर तो ज्यादा चर्चा नहीं की, लेकिन गपशप करने के नाम पर वे दिल्ली सरकार को कठघरे में खड़े किए रहे।
इस पर सीपी ने कहा कि वह सिर्फ दिल्ली के बारे में बोल सकते हैं। दिल्ली पुलिस राज्य सरकार के अंतर्गत होती तो स्थानीय मामलों के दबाव झेलने होते जबकि प्रधानमंत्री या गृहमंत्री को स्थानीय राजनीति से कोई लेना देना नहीं होता।
दरअसल, पुलिस आयुक्त का राजनेताओं की तरह बोलना संकेत दे रहा है कि वे 29 फरवरी को सेवानिवृत्त होने के बाद किसी प्लेटफॉर्म पर खड़े हो सकते हैं। राजनीति या किसी अन्य सेवा के सवाल पर उन्होंने कहा कि इसका जवाब 29 फरवरी के बाद मिलेगा।
उन्होंने कहा कि दिल्ली हमेशा आतंकियों के निशाने पर रही है। पुलिस आतंकी वारदात के लिए सजग है। इसका का हर जिला व पुलिसकर्मी आतंकियों से निपटने में सक्षम है। पठानकोट में आतंकियों का सेना की वर्दी में हमला और पुलिस की वर्दी आसानी से मिल जाने के सवाल पर पुलिस आयुक्त ने कहा कि वर्दी एक समस्या रहती है। पुलिस हर जगह शत-प्रतिशत चेकिंग नहीं कर सकती। संवेदनशील जगहों पर ज्यादा सुरक्षा की जाती है।