प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चीन यात्रा से पहले अमेरिका ने भारत सरकार को आगाह किया है।
हिंद महासागर में चीन की लंबे समय तक मौजूदगी की योजना को रेखांकित करते हुए सामरिक मामलों के प्रख्यात अमेरिकी जानकार एशले जे टेलिस ने कहा है कि भारत को आगे नए तरह के खतरों का सामना करना होगा इसलिए यह जरूरी है कि वह अपनी नौसेना की क्षमता बढ़ाए और उसे मजबूत करे।
भारत और अमेरिका के संबंधों में हाल में आए बदलाव की ओर इशारा करते हुए टेलिस ने कहा कि यह सुनिश्चित करने में अमेरिका की सामरिक रुचि है कि भारतीय नौसेना शीर्ष पर रहे और हिंद महासागर में उसकी पकड़ बनी रहे।टेलिस का भारत से पुराना रिश्ता है। वे नई दिल्ली स्थित अमेरिकी दूतावास में भी अपनी सेवाएं दे चुके हैं।
भारत की नौसैन्य क्षमता और अगली पीढ़ी के विमान वाहक पोतों को विकसित करने को लेकर दोनों देशों के बीच साझेदारी की वकालत करते हुए टेलिस ने कहा कि इस तरह के पोत ‘प्रभावशाली असर’ डालते हैं और अपने आप में बड़ा स्टेटमेंट होते हैं।
भारत के दौरे पर आए टेलिस ने अपने नवीनतम पेपर ‘मेकिंग वेब्स: एडिंग इंडियाज नेक्स्ट जनरेशन एयरक्राफ्ट कैरियर’ पर भी बात की। उन्होंने कहा कि 2012 में ही साफ हो गया था कि चीन हिंद महासागर में गतिविधियां बढ़ा रहा है।टेलिस का कहना है कि चीन फारस की खाड़ी से गुजरने वाले एनर्जी ट्रैफिक को सुरक्षा देने के लिए हिंद महासागर में लंबे समय तक अपनी मौजूदगी बढ़ाना चाहता है। दोनों देश भारत के अगली पीढ़ी के एयरक्राफ्ट कैरियर का संयुक्त विकास करने के लिए एक कार्य समूह गठित करने पर सहमत हुए हैं, जबकि भारतीय नौसेना ने इसके डिजायन पर काम करना शुरू कर दिया है।
टेलिस ने ये बातें अनंत एस्पेन सेंटर द्वारा आयोजित चर्चा के दौरान कहीं।
पूर्व नौसेना प्रमुख एडमिरल अरुण प्रकाश ने कहा कि ‘भारत को पहला विमानवाहक पोत आईएनएस विक्रांत 1961, जबकि आईएनएस विराट 1980 में मिला था। इस समयावधि में हमने कुछ युद्धपोत बनाए हैं लेकिन विमानवाहक पोत के चुनाव को लेकर दुविधा बनी हुई है। हमें न तो अमेरिका से कल्टपुल्ट मैकेनिज्म मिलने की उम्मीद है और न ही पश्चिमी लड़ाकू विमानों के इस्तेमाल की। हालांकि एक मौका है जिसे भुनाया जा सकता है।’