पिछले कई सालों से डाक विभाग के रिटर्न लेटर ऑफिस (आरएलओ) में करीब 33,000 ऐसी चीजें हैं, जो पड़ी धूल खा रही हैं। इनके लिए कोई भी क्लेम नहीं कर रहा है।
पीटीआई की तरफ से दायर की गई एक आरटीआई के जवाब में डाक विभाग ने कहा है कि 2012 में करीब 8070 मेल ऐसे हैं, जो अभी तक डिलिवर नहीं हुए हैं।
2013 में यह आंकड़ा 11,938 और 2014 में यह आंकड़ा 13,075 रहा। ऐसे में यह संख्या कुल मिलाकर 33,083 पर पहुंच गई है। डाक विभाग के अनुसार इन सभी की नीलामी करने की योजना बनाई जा रही है।इन मेल/पार्सल में ज्वैलरी, घड़ियां, मोबाइल फोन, कैमरे और किताबों जैसी चीजें हैं। आरटीआई के जवाब में डाक विभाग ने यह भी बताया कि उसने 2010 में दो बार और 2011 में 5 बार ऐसी चीजों की नीलामी की है।
इस तरह कुल मिलाकर 7 नीलामियों से डाक विभाग को करीब 1.11 लाख रुपए की कमाई हुई थी। पोस्टल मैन्युअल के नियम 435 के अनुसार पोस्ट ऑफिस के अधिकारियों की सहमति से ऐसी चीजों की नीलामी की जा सकती है जिसका किसी ने क्लेम नहीं किया है।आज के समय में एक दूसरे से जुड़े रहने और बातचीत के लिए आयी मॉडर्न टेक्नोलॉजी ने पहले के समय की चीजों को जैसे खत्म ही कर दिया है।
आज के समय में पोस्टकार्ड और अंतर्देशीय पत्र का इस्तेमाल इतना कम हो गया है कि सरकार को इन पर काफी बड़ा नुकसान झेलना पड़ रहा है।
डाक विभाग को हर पोस्टकार्ड पर 7 रुपए से भी अधिक का नुकसान हो रहा है। वहीं दूसरी ओर हर अंतर्देशीय पत्र पर करीब 5 रुपए का नुकसान हो रहा है।2013-14 में डाक विभाग की पोस्टकार्ड पर लगने वाली औसत लागत 753.37 पैसे है, जबकि हर पोस्टकार्ड की औसत आय सिर्फ 50 पैसे ही रह गई है।
वहीं दूसरी ओर, अंतर्देशीय पत्र पर लगने वाली लागत 748.39 पैसे है, जबकि इससे होने वाली आय 250 पैसे है। डाक विभाग की अधिकतर सेवाओं को आधुनिक सुविधाओं के चलते काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
डाक विभाग की सालाना रिपोर्ट के मुताबिक, 2013-14 में डाक विभाग का घाटा 5,473.10 करोड़ रुपए का था। इससे पिछले साल यह घाटा 5,425.89 करोड़ रुपए था, जो 2013-14 में करीब 0.87 प्रतिशत बढ़ गया।