भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह और विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को मंच पर जगह नहीं मिली। बीते कुछ वर्षों में यह पहला मौका था जब इन दोनों वरिष्ठ नेताओं को मंच से वंचित होना पड़ा।
पिछले साल गोवा में हुई पार्टी कार्यकारिणी की बैठक में तत्कालीन अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने वयोवृद्ध नेता लालकृष्ण आडवाणी की नाराजगी के बावजूद नरेंद्र मोदी को पीएम उम्मीदवार घोषित किया था, लेकिन राजनाथ आज खुद ‘आडवाणी फॉर्मूले’ के बहाने मोदी-शाह की भाजपा में महत्व के मंच से नीचे दिख रहे हैं।
दरअसल, नब्बे के दशक में अध्यक्ष पद से डॉ मुरली मनोहर जोशी के हटने के बाद आडवाणी ने कार्यकारिणी की बैठक में मंच पर बैठने का नया फॉर्मूला तैयार किया था। इसके तहत मंच पर संसद के दोनों सदनों में पार्टी के नेता, सर्वाधिक वरिष्ठ नेता और अध्यक्ष को ही जगह देने की व्यवस्था लागू की गई।
चूंकि इस बार राजनाथ और सुषमा इस फॉर्मूले पर फिट नहीं बैठ रहे थे, इसलिए उन्हें इस बार मंच से नीचे बैठने पड़ा।कहा जाता है कि तब आडवाणी ने जोशी को मंच से दूर रखने के लिए ही यह फॉर्मूला बनाया था।
इस फॉर्मूले के तहत लोकसभा के नेता पीएम नरेंद्र मोदी, अध्यक्ष अमित शाह, वरिष्ठतम नेता आडवाणी और राज्यसभा के नेता अरुण जेटली को ही मंच पर बैठने की जगह मिली।
बताते हैं कि इस दौरान मंच पर वरिष्ठ नेताओं को जगह देने के लिए फॉर्मूले में तय प्रावधानों में थोड़ी ढील दी गई। इसलिए अध्यक्ष या किसी भी सदन का नेता न रहने के बावजूद राजनाथ को मंच पर जगह मिलती रही। मगर इस बार नई भाजपा में आडवाणी फॉर्मूले को अक्षरश: लागू किया।
अपने दम पर सत्ता में काबिज होने के बाद भाजपा की पहली राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक का नजारा कुछ बदला-बदला सा था। खासतौर पर मंच पर बैठने की व्यवस्था सबका ध्यान खींच रही थी।बीते करीब एक दशक से हमेशा मंच पर आसीन होने वाले राजनाथ इस बार मंच पर नहीं थे जबकि वर्ष 2009 से लगातार मंच पर जगह पाने वाली सुषमा को भी मंच पर जगह नहीं दी गई थी।
दरअसल, जिन्ना विवाद पर आडवाणी के इस्तीफे के बाद अध्यक्ष बनने वाले राजनाथ उसके बाद हुई कार्यकारिणी की सभी बैठकों में विराजमान दिखे थे। यहां तक कि इस दौरान नितिन गडकरी के अध्यक्ष बनने के बाद भी उन्हें आडवाणी फॉर्मूले को दरकिनार कर मंच पर जगह दी गई थी।
2009 से 2014 तक लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष की भूमिका निभाने के कारण सुषमा भी इस दौरान मंच पर दिखाई पड़ती थीं। मगर इस बार ये दोनों ही नेता इस बार मंच पर नहीं दिखे। इसके लिए न तो फार्मूले में ढील देने दी गई और न ही इसकी जरूरत ही समझी गई।
इस बारे में केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर महज इतना ही कहा कि कार्यकारिणी में तय व्यवस्था के तहत नेताओं को जगह दी गई। जेटली राज्यसभा में पार्टी का नेता होने के कारण मंच पर थे।उद्घाटन भाषण में भावी चुनौतियों से बेपरवाह पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने सरकार के कामकाज पर पीएम मोदी की शान में कसीदे गढ़ने के साथ पार्टी के 10-20 साल तक सत्ता में बने रहने की भविष्यवाणी भी कर डाली।
उन्होंने वर्ष 2014 को पार्टी के लिए विजय वर्ष करार देते हुए इस साल बिहार विधानसभा चुनाव में भी हर हाल में स्पष्ट बहुमत मिलने की बात कही।
शाह ने भूमि अधिग्रहण बिल पर सरकार और पार्टी को निशाना बना रही कांग्रेस पर तीखा सियासी पलटवार किया। उन्होंने कहा कि कांग्रेस को सरकार के खिलाफ कोई मुद्दा नहीं मिल रहा।
हताश हो कर पार्टी उस विषय को मुद्दा बना रही है जो कि मुद्दा ही नहीं है। कांग्रेस को चाहिए कि वह भाजपा और सरकार पर हमला करने से पहले अपने नेता को ढूंढे। उल्लेखनीय है कि कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी करीब एक महीने से छुट्टी पर हैं।
भाजपा के वयोवृद्ध नेता लालकृष्ण आडवाणी का भाषण होगा या नहीं, इसकी गुत्थी शुक्रवार को भी नहीं सुलझ पाई। शनिवार के वक्ताओं की सूची में उनका नाम नहीं है।
कहा जा रहा है कि वक्ताओं की सूची में नाम नहीं होने के कारण आडवाणी अब खुद भाषण देने के इच्छुक नहीं हैं। शुक्रवार को बैठक शुरू होने से पहले शाह ने आडवाणी से अलग से बात भी की।