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यदि आज मेहनतकश अवाम के साथ नहीं खड़े हो रहे हैं तो कल पेट के बल रेंगने के लिए तैयार रहें। – कविता कृष्णा पल्लवी

बहुत सारे प्रगतिशील महा‍महिम लोग और युवा अगियाबैताल विमर्शकार, जो मेरी मित्र सूची में भी हैं, उन्‍होंने एक फोन करके या मैसेज देकर वस्‍तुस्थिति जानने की भी ज़रूरत नहीं समझी, जबकि उनमें से कई आज फेसबुक पर मौजूद थे। कुछ प्रगतिशील लोग क्रिकेट में मस्‍त थे, कुछ ठिठोली कर रहे थे और कुछ क्‍लासिकी पेंटिंग्‍स और संगीत को सराहने में व्‍यस्‍त थे। इस बेरहम बेसरोकारी का सामना हम पहले भी कर चुके हैं। मुद्दा यह भी है कि मामला मज़दूरों का था। उनके लिए सफेदपोश प्रगतिशीलों के ललाट पर चिन्‍ता की शिकन नहीं पड़ती। वे तो पिटते ही रहते हैं, उनका भला क्‍या जनवादी अधिकार?
किसी बुद्धिजीवी पर जब फासिस्‍ट हमला बोलते हैं, तो सब वामपंथी आन्‍दोलन को कोसते हैं कि वह इतना कमज़ोर क्‍यों हैं कि फासिस्‍टों को रोक नहीं पाया, लेकिन वे यह नहीं सोचते कि वामपंथी आन्‍दोलन को कमज़ोर करने में मध्‍यवर्गीय बुद्धिजीवियों की मौक़ापरस्‍ती, सुविधाजीविता और कायरता की कितनी भूमिका है। एक वामपंथी कवि हैं, साम्‍प्रदायिक फासीवाद को लेकर बहुत खिन्‍न रहते हैं, चित्रकार हुसैन के साथ हुए सलूक जैसे मसलों को उठाते भी रहे हैं, पर अपनी सुरक्षित कुलीनता की चौहद्दी से बाहर निकलकर सड़क पर उतरने का जोखिम कभी नहीं उठाते, ग़म ग़लत करने के लिए क्‍लासिकी संगीत में डूबे रहते हैं और कविता में भ्रिनभिनाते-पिनपिनाते रहते हैं।
इन बुद्धिजीवियों को इनकी कायरता का दण्‍ड इतिहास देगा। आग इनके घरों तक भी पहुँचेगी। अगर चेते नहीं तो पास्‍टर निमोलर की कविता की हकीकत एक बार फिर दुहराई जायेगी।
आने वाला समय कठिन है। संगठित मज़दूर आन्‍दोलन पर, अल्‍पसंख्‍यकों पर और स्त्रियों पर लगातार उग्र से उग्रतर हमले करने वाले फासिस्‍ट और नवउदारवाद के पैरोकार अन्‍य दक्षिणपंथी ताकतें आने वाले दिनों में ”नरमदिल” सफेदपोश वामपंथियों को भी नहीं बख्‍शने वाली हैं।
ऐसे लोग यदि आज मेहनतकश अवाम के साथ नहीं खड़े हो रहे हैं तो कल हत्‍यारों के सामने घुटने टेकने और फिर पेट के बल रेंगने के लिए तैयार रहें।

कविता कृष्णा पल्लवी 

NCR Khabar Internet Desk

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