
चुनावी वर्ष में बिजली की आंच भले ही उपभोक्ताओं पर नहीं आई हो, लेकिन नए वित्त वर्ष 2015-16 में बिजली की बढ़ी हुई कीमत की तपिश महसूस करने के लिए तैयार रहना होगा।
देश के लगभग दर्जन भर राज्यों की तरफ से बिजली की दरों में बढ़ोतरी के लिए राज्य विद्युत नियामक आयोग (एसईआरसी) के समक्ष आवेदन कर दिया गया है।
इसकी मुख्य वजह यह है कि राज्यों की बिजली वितरण कंपनियों (डिस्कॉम) का राजस्व अंतर काफी अधिक हो चला है। यानी कि बिजली की खरीद कीमत और बिक्री कीमत में अंतर काफी बढ़ गया है।
रेटिंग एजेंसी इक्रा की रिपोर्ट के मुताबिक देश के 11 राज्यों की डिस्कॉम के राजस्व का अंतर 253 अरब डॉलर हो गया है। चालू वित्त वर्ष 2014-15 में देश भर की बिजली की दरों में औसतन छह फीसदी की बढ़ोतरी हुई है।
राज्य सरकार के सूत्रों के अनुसार उत्तर प्रदेश ने भी बिजली की दरों में बढ़ोतरी के लिए एसईआरसी के समक्ष आवेदन कर दिया गया है जिसमें 10 फीसदी से नीचे बढ़ोतरी किए जाने की बात बताई गई है।इक्रा की रिपोर्ट के मुताबिक वित्त वर्ष 2015-16 में बिजली की दरों में बढ़ोतरी के लिए सिर्फ 15 राज्यों ने एसईआरसी के पास आवेदन किए हैं, जबकि बिजली की दरों से जुड़े नियम के मुताबिक राज्यों को नए वित्त वर्ष के लिए 30 नवंबर तक आवेदन करना होता है।
हरियाणा, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश व बिहार की डिस्कॉम ने तो आगामी वित्त वर्ष में बिजली की दरों में 15-26 फीसदी बढ़ोतरी की सिफारिश की है।
वहीं आंध्र प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र व तेलंगाना ने 3-8 फीसदी की बढ़ोतरी का प्रस्ताव रखा है। छत्तीसगढ़, पंजाब व उड़ीसा की तरफ से बिजली की दरों में बदलाव की कोई सिफारिश नहीं की गई है।इक्रा के मुताबिक आंध्र प्रदेश, बिहार, हरियाणा, पंजाब, उड़ीसा व तेलंगाना जैसे राज्यों की डिस्कॉम के राजस्व का अंतर काफी अधिक बढ़ गया है।
ऐसे में इन राज्यों में 9 से 52 पैसे प्रति यूनिट तक दरें बढ़ाने की आवश्यकता है। केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय पहले ही राज्यों की बिजली वितरण कंपनियों की वित्तीय सेहत पर गहरी चिंता जाहिर कर चुका है।
दो साल पहले आठ राज्यों की डिस्कॉम के वित्तीय पुनर्गठन का काम शुरू किया गया था, लेकिन वह सफल नहीं रहा। नई सरकार फिर से इन राज्यों की डिस्कॉम की वित्तीय हालत में सुधार का कार्यक्रम शुरू करना चाहती है।
चालू वित्त वर्ष 2014-15 के दौरान 24 राज्यों की डिस्कॉम ने बिजली की दरों में बदलाव के आदेश जारी किए गए थे। हालांकि कई राज्यों में चुनाव की वजह से ऐसा इसमें देरी हुई।