कौन ईमानदार और कौन बेईमान ? राकेश श्रीवास्तव

योगेंद्र यादव और केजरीवाल को लेकर बहस गर्म है .. साधारण जनता अपने सवाल कौन ईमानदार कौन बेईमान जैसे प्रचलित मुहावरे में पूछती है .. जनता को एड्रेस करने में केजरीवाल बढ़त ले गए .. केजरीवाल एंड टीम ने धकिया कर माहौल को कब्जे में ले लिया और अपना वर्जन सामने रख प्रचारित कर दिया .. जबकि योगेंद्र और प्रशांत जब ई.सी. से हटाए गए थे तो लोगों और कार्यकर्ताओं की पूरी सहानुभूति इन दोनों के साथ थी .. केजरीवाल एंड टीम ने बातचीत करने का बहाना कर टाईम बाई कर लिया और इस बीच योगेंद्र प्रशांत को क्रमश: बदनाम करते करते अंतत: पीएसी में इन्हें धकिया कर बाहर निकाल दिया और ईमानदार होने का तगमा खुद ओढ़ लिया .. आरोप लगाए, पर आरोप के जवाब का मौका नहीं दिया ..
केजरीवाल से कुछ सवाल बनते हैं ..
.. आप कहते हो कि आपको इन दोनों ने एक डेढ़ वर्षों से परेशान कर रखा था .. आपके लोग कहते हैं आप फूट- फूटकर रो पड़े थे .. आपके तनाव की वजहें क्या रही होंगी इस बारे में क्या आपने कभी सेकेंड थॉट दिया .. अपने तनावों के लिए आपने योगेंद्र प्रशांत पर एकतरफा दोष मढ़ा और खुद तिनका भर जवाबदेही न ली .. कहीं आपके तनावों की वजह यह तो नहीं कि मूल्यों की राजनीति को दूर तलक ले जाने के योगेंद्र- प्रशांत के जायज आग्रह से आप असुविधा में पड़ रहे थे और आपके इर्द- गिर्द जमा होते दूसरे लोग आपको दूसरी दिशा में खींच रहे थे .. कहीं आपका तनाव आपके व्यक्तित्व और आपकी सोच की सीमा तो न थी ..
आपने कहा कि स्वराज के सिद्धांतों की बात के पीछे योगेंद्र- प्रशांत की महत्वाकांक्षा थी .. आपने कह दिया, आप माई- बाप हो, सरकार हो, विधायकों के हित आपसे जुड़ते हैं इसलिए विधायकों ने ताली पीट लिया .. लेकिन अापकी बात से निकलने वाले स्वाभाविक प्रतिप्रश्न का जवाब कौन देगा .. महत्वाकांक्षी होने का सिद्धांत आप पर भी तो लागू हो सकता है, आपको क्यों न महत्वाकांक्षी माना जाए ..
आप यह चुनौती देते हो कि पहले स्वराज और आंतरिक लोकतंत्र हरियाणा में लागू करके दिखाते .. तो क्या हरियाणा या किसी राज्य में कोई नेता पार्टी के मान्य सिद्धांतों से इतर कुछ करने को स्वतंत्र था, ऐसा तो नहीं होता है .. आप कहते हो कि स्वराज बहुत मुश्किल बात है तो स्वराज के नाम पर वोट क्यों मांगा था .. स्वराज और आंतरिक लोकतंत्र मुश्किल बातें हैं, तो यह पहले समझ में क्यों नहीं आया .. लोगों ने केवल दिल्ली के लिए किए गए वायदे पर आपको वोट नहीं दिया .. पार्टी के रूप में जो नैतिक आभा बनी थी इसलिए आपके वायदों को भरोसे लायक समझा इसलिए वोट दिया .. चाहे जितनी मुश्किल रही हो नैतिकता के उस आग्रह उस चुनौती को आप कैसे छोड़ सकते हो ..
आप कहते हो कि आपने योगेंद्र- प्रशांत की सभी बातें मानी फिर- भी इन लोगों ने परेशान किया .. 49 दिन में सरकार छोड़ दी इनके कहने पर .. आप लोकसभा चुनाव लड़े मोदी से भिड़ गए इनके कहने पर .. अगर इनके कहने पर इतना कुछ किया, असफलताओं की वजह ये हैं, तो आपकी सफलताओं की वजह ये कैसे नहीं है .. पार्टी की आज जो बुूनावट और सफलता है आप उसमें योगेंद्र प्रशांत के सबसे ज्यादा योगदान से इनकार कैसे कर सकते ..
अाप कह रहे हो कि हम चुनाव लड़ रहे थे और जीतने की कोशिश ही हमारा धर्म है .. इससे कोई इनकार नहीं कि जीतना महत्वपूर्ण है .. पर आप उस वायदे को कैसे भूल सकते तो भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन को राजनीतिक दल में बदलते हुए आपने कार्यकर्ताओं और समर्थकों से किए थे, कि परिवर्तन और आंदोलन के मूल्यों को केंद्र में बनाए रखा जाएगा .. क्या आपको पता नहीं कि पार्टी का जनाधार बढ़ाने और विधायकी का उम्मीदवार चुनने में जीतने की हड़बड़ाहट में खाप मानसिकताएं घुसती चली गईं … जो जनाधार बना, वह प्रतिनिधिक नहीं है, इसे महिलाओं और दलितों की बहुत कम भागीदारी में साफ तौर पर देखा जा सकता है .. जबकि दिल्ली जैसे शहर का समकालीन समाजशास्त्रीय सच यह है कि सामान्य जीवन के नागरिक मुद्दों पर आज महिलाएं अधिक प्रो- एक्टिव हैं .. अगर आपने ‘आम- अादमी’ की आत्मा को बनाए रखा होता तो महिलाएं बहुत होतीं ..
.. केजरीवाल की ईमानदारी उनकी व्यक्तिगत जिद है जिसकी चकाचौंध में जिसके इर्द- गिर्द बेईमान लोगों के इकट्ठा हो जाने का खतरा है .. योगेंद्र यादव की ईमानदारी वह नैतिक राजनीतिक दर्शन है जो संगठन का वैज्ञानिक सिद्धांत बनकर मूल्यों को संस्था यानि पार्टी का व्यापक सच बनाना चाहती है ..
राकेश श्रीवास्तव