आप के वादे इस सीरीज मैं मैं हम दिल्ली चुनावों मैं आम आदमी पार्टी के किये हुए वादों और उनके पुरे होने और उसके सच का विश्लेषण प्रस्तुत कर रहे , इसी कड़ी मैं आज हम बिजली के आधे दाम और फ्री पानी के मुद्दे पर बात करेंगे
सस्ती बिजली और मुफ्त पानी के वादे पर AAP का स्टैंड भले ही कुछ भी हो उनके प्रवक्ता भले ही कोई भी दलील दे रहे हो पर सच यही है की इस पर आधिकारिक माथापच्ची शुरू हो गई है। सूत्रों के अनुसार अधिकारियों का कहना है किफिलहाल बिजली दरों में 50 पर्सेंट कटौती और हर महीने 20 हजार लीटर पानी फ्री देने के लिए सब्सिडी ही एकमात्र रास्ता है
अधिकारिओ ने आफ थे रिकार्ड बातचीत मैं माना है की फिलहाल इस पर सालाना करीब 1950 करोड़ रुपये का खर्च आएगा, जो दिल्ली मैं विकास कार्यों के लिए मंजूर बजट का 11 पर्सेंट है। वित्त विभाग के एक शीर्ष अधिकारी ने बताया, ‘फिलहाल सब्सिडी ही रास्ता है। अगस्त में 31 मार्च तक के लिए केंद्र से 260 करोड़ की सब्सिडी मिली थी, जिस पर 200 यूनिट तक के बिल पर 30 पर्सेंट और 400 यूनिट तक के बिल पर 15 पर्सेंट की छूट दी जा रही है। 400 यूनिट तक 50 पर्सेंट छूट देने के लिए करीब 1400 करोड़ रुपये की जरूरत होगी। कंपनियां पहले ही डीईआरसी से रेट में 10 से 15 पर्सेंट बढ़ोतरी की गुहार लगा चुकी हैं। अगर यह बढ़ोतरी हुई तो सालाना खर्च 1600 करोड़ तक पहुंच जाएगा। रोजाना 600 लीटर फ्री पानी के लिए 350 करोड़ रुपये की जरूरत होगी। कुल 1950 करोड़ खर्च होंगे, जो दिल्ली सरकार के योजनागत या विकास खर्चों का 11 पर्सेंट होगा।’
अधिकारी इस बात से भी डरे हुए है की कहीं AAP खर्चो मैं कटोती के नाम कर्मचारियो की सलरी ना काट दे , जाहिर है विकास योजनाओं की दूसरी मदों में होने वाले खर्च इधर शिफ्ट होंगे। सरकार को कहीं न कहीं समझौता करना ही पड़ेगा।’
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बिजली सप्लाई और पानी सप्लाई बढ़ाने की नयी योजनाओं के को लाने और उन्हें लागू करने के पीछे सबसे बड़ी दिक्कत ये भी है वह लंबी अवधि की होगी। महीने दो महीने में कुछ भी नहीं होने वाला। फिलहाल कंपनियां भी बिजली खरीदकर ला रही हैं।
ये भी एक बड़ा सच है की कम्पनिया बिना लाभ के काम करने को तैयार नहीं होंगी , हम ये एअरपोर्ट मेट्रो के परिचालन मैं हुए खेल से सीख सकते है की कैसे रिलायंस ने उसे लाभ मैं ना आ पाने की स्तिथि मैं बीच मैं ही छोड़ दिया था
आम आदमी पार्टी के सामने बड़ा चैलंज ये भी होगा की अब तक वो कम्नियो को धमकाते रहे है ऐसे मैं अगर स्थापित कम्पनियो ने सब्सिडी के ना मिलने पर या लाभ ना होने पर या रोज़ रोज़ की सरकारी धमकियो के चलते अचानक हाथ खड़े कर दिए तो नयी सरकार के पास क्या विकल्प होगा
अभी तक के पुराने अनुभव के आधार पर ये भी कहा जा सकता है की नयी सरकार सिर्फ लोक लुभावन फैसले की खातिर कहीं विकास के बाकी कामो को तिलांजलि तो नहीं देगी , ऐसे मैं वर्ल्ड क्लास दिल्ली के सपने को कहीं ठेस तो नहीं लगेने वाली है जिसकी सच्चाई बस कुछ ही दिनों मैं हमारे सामने भी हो सकती है