तो भूमि सुधार अध्यादेश के विरोध का अभियान अन्ना हजारे की घोषणा के विपरीत राजनीतिक मंच बन गया। पहले उनकी घोषणा थी कि मंच पर कोई नेता नहीं आयेगा। कल दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल एवं उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया से मुलाकात के बाद उनका बयान हुआ कि मुख्यमंत्री का सम्मान करेंगे। यानी अरविन्द मंच पर रहेंगे।
लेकिन अरविन्द के वहां पहुंचने के पूर्व ही कई नेता आ गए और उन्हें बाजाब्ता अन्ना हजारे ने हाथ मिलाकर स्वागत कियां तो इसका अर्थ क्या है? इसका परिणाम यह हुआ कि कल संख्या की कमी का शिकार धरने में आज संख्याबल देखा गया। यह स्वाभाविक भी है।
मैं निजी तौर पर किसी भी आंदोलन में नेताओं की उपस्थिति को गलत नहीं मानता। राजनीति का इस तरह त्याज्य मानना संसदीय लोकतंत्र के लिए अनुपयुक्त सोच है। लेकिन अगर आप घोषणा करते हैं तो आपको उसके पहले सोचना चाहिए।
हालांकि बड़ी विचित्र स्थिति है। विरोध एक विषय का और मंच चार। अन्ना का मंच अलग, एकता परिषद का अलग, मेघापाटेकर का अलग……। यह कैसी एकता है! जिस मंच पर अन्ना बैठे हैं, उनके साथ राजनीतिक दल के नेता है वह अन्ना का मंच नहीं है। मेधा पाटेकर का मंच है। कहीं ऐसा तो नहीं कि इसके लिए रास्ता निकाला गया। हालांकि इससे सरकार को राहत मिलेगी, क्योंकि इस पर वो ही चेहरे हैं जो लंबे समय से नरेन्द्र मोदी और भाजपा का विरोध करते रहे हैं।
अवधेष कुमार