किरण हो या अरविन्द वो जीत अन्ना की ही होगी
हर तरफ एक ही सवाल है की लोगो ने अन्ना हजारे का उपयोग करके अपनी राजनातिक महत्वाकांक्षा पूरी की , शायद अन्ना भी यही प्रदर्शित करते हो , पर मेरे हिसाब से ये अन्ना की जीत है है , जिस अन्ना हजारे और उनकी टीम को महज ३-४ साल पहले सभी राजनातिक दल खारिज कर रहे थे , उनका मजाक उड़ा रहे थी , आज भारत की राजनीती उन्ही सदस्यों के इर्दगिर्द घूम रही है , जी हाँ आप इसे अरविन्द केजरीवाल या किरण बेदी जैसे प्रतीकों के रूप मैं अलग अलग रूपों देख सकते हो
क्या आज आपको ४ साल पुराने कांग्रेस या भाजपा के वो दम्भी चेहरे याद आते है या दिखाई पड़ते है ? नहीं आज हर कोई इमानदारी , नैतिकता और शुचिता की बातें करता है , सत्ता चाहे अरविन्द केजरीवाल के हाथ हो या किरण बेदी के मगर सोच और विचार तो अन्ना के ही होंगे
यही एक शिक्षक के रूप मैं अन्ना की जीत है , याद रखये शिक्षक हमेशा स्कुलो मैं ही रहते है उनके योग्य शिष्य ही अलग अलग जाकर अपना परचम लहराते है
यही आज दिल्ली मैं हो रहा है और इस हिसाब से देखने तो अन्ना के स्कुल का प्लेसमेंट १००% है , चाहे वो अरविन्द केजरीवाल का एक राजनातिक पार्टी बनाने का हो या फिर शाजिया और किरण बेदी समेत और लोगो का बीजेपी मैं प्रमुख पदों को हासिल करना हो
इसलिए अन्ना आज शांत है और शायद संतुष्ट भी , हाँ उनके लिए उनके अगले बेच की राह ज़रूर देखनी होगी , क्योकी सिर्फ एक ही बेच से ये देश बदलने वाला नहीं है अभी हमें और अरविन्द और किरण बेदी चाह्यी होंगे