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क्या सविधान ने ही प्रदान किया जातिवाद फैलाने का लाइसेंस !!! कडवा सच- मनोज पंडित

आरक्षण एक ऐसा मुद्दा है जिसके खिलाफ बोलते ही आपको दलित विरोधी करार दिया जायेगा। और आपको आजादी के पहले दलितों के हालत पर लंबा चौड़ा भाषण सुना दिया जायेगा। आपको रूढ़िवादी, सामंतवादी और पिछड़ी मानसिकता वाले शब्दों से नवाज दिया जायेगा। पर मैं आज कुछ कहना चाहता हूँ। क्या किसी गरीब का विकास करने के लिए उसे जाति का नाम देना जरूरी है।

क्या उसे धर्म मे बाँधना उचित है?

oma-adमैंने देखा है कइयों नेताओं को जो जाति और धर्म के नाम पर, क्षेत्रवाद के नाम पर वोट मांगते दिखाई पड़ जाते है । वो कहते है फलां जाति काफी गरीब है और फलाँ धर्म के लोग काफी मुश्किल में है। इनके लिए अलग से योजना शुरू करनी होगी। मैं पूछता हूँ आखिर में किसी को अलग से सुविधा देकर ऊपर कैसे उठाया सकता है। यह योजनाओं ना कभी सफल हुयी है और ना कभी सफल होगी। मेरा सवाल बुद्धिजीवी, मीडिया, अभिनेताओं और क्राइम पेट्रोल, सावधान इंडिया जैसे कार्यक्रम चलाने वाले लोगो से है जो हमेशा जातिवाद का विरोध करते दिखाई देते है। जाति के नाम पर होने वाले कत्लों की भर्तसना करते है। उच्च जाति के लोगो की बुराई करते नहीं थकते। मेरा सवाल है कि वो कभी आरक्षण का विरोध क्यों नही करते। वे कभी जाति के नाम पर आने वाले योजनाओं का विरोध क्यों नही करते। कभी आरक्षण विरोधी अभियान का साथ क्यों नही देते। संविधान में जातियो का खुलेआम उल्लेख है। क्या वो कभी उसका विरोध अपने कार्यक्रमों में करेगे। संविधान कहता है कि जाति के आधार पर भेदभाव नहीं होना चाहिए। अगर आप जाति सूचक शब्दों का यूज करते है तो आपको जेल भी जाना पड़ सकता है। पर खुद आरक्षण के जरिए वह खुद भेदभाव करता दिखाई पड़ता है।कैसे ये जानने के लिए जरा एक प्रवेश परीक्षा के फार्म को भरने के निर्देश पढ़ ले।

फार्म की कीमत- सामान्य वर्ग-1000 रू  एससी एसटी- 300 रू

योग्यता- स्नातक उत्तीर्ण या समक्षक सामान्य- 60 प्रतिशत ओबीसी- 50 प्रतिशत एससी एसटी- केवल पास(33 प्रतिशत)

यह नम्बर आपको स्नातक में लाना होता है। अब यहाँ पर तो भेदभाव करते है तो किस मुँह से समाज के भेदभाव को मिटाने की बात करते है। शर्म नहीं आती। जब कोई विशिष्ट हो गया है तो उसके लिए विशिष्ट इन्तजाम तो समाज वाले करेगे ही। जातिगत आरक्षण बिल्कुल गलत है। आप एक तरफ तो समानता की बात फिर ये विशिष्टता कहाँ से आ गयी है। सब जाति समान है तो फिर सरकार भेदभाव कैसे कर सकते है। एक तरफ तो सरकार बच्चो को पढ़ाती है सभी जाति समान है। जाति के आधार पर भेदभाव नहीं करना चाहिए। हम सब भारतीय है। फिर जातिवाद से सम्बधिन्त आरक्षण देती है,
क्या यह समानता के अधिकार का उल्लघंन नहीं ?

क्या इससे जातिवाद नहीं फैलता ?

क्या इससे जातिगत राजनीति की रास्ता नहीं खुलता ?

मैं पूछता हूँ आखिर साथ खाना खाने में शादी में मन्दिर जाने में सभी जातियाँ समान है पर विद्या के मन्दिर जाने में समान नहीं है क्यों। हाथ में बैशाखी थमा दो आगे बढ़ा दो और बोलो की दलित आगे बढ़ रहा है। अरे पहले पैसा में छूट दो, फिर योग्यता में, फिर सीट भी आरक्षित कर दो। मतलब एक जन साइकिल पे और दूसरा जन को फेरारी पर सवार कर दो और बोलो देखो वो आदमी फेरारी वाला आगे पहुँच गया। क्या मजाक है । आरक्षण कुछ नहीं सिर्फ वोट बैंक की राजनीति है।।और इसमें मासूम जनता फँसती है। आजकल गुजरात के विकास की काफी चर्चा हो रही है। आप जानते है यह आगे क्यों है। क्योंकि वहाँ की मुख्यमंत्री ये नहीं कहता कि मैंने फलां काम हिन्दुओं के लिए किया या मैंने फंला कार्य दलितों के लिए किया या ब्राह्मणों के लिया । उन्होनें सबको एक ही तराजू में तोलते हुए कहा- मैनें जो किया वो 6 करोड़ गुजरातियों के लिए किया। और यहीं है असली विकास की परिपाटी। मोदी जी ने कुछ अलग नहीं किया । उन्होनें सिर्फ लोगों की बुनियादी जरुरते को पूरा कर दिया। उन्होने इसे स्वीकारा भी। शिक्षा, स्वास्थय, रोजगार, सड़के, पानी, सुरक्षा,बिजली आदि मनुष्य की बुनियादी जरूरते है। उन्होने इन कार्यों पर कार्य किया और नतीजा आपके सामने है। जबकि अन्य राज्य इन बुनियादी जरुरतों की ओऱ ध्यान न देकर जाति, धर्म के उत्थान पर काम कर रही है और विफल हो रही है। कुछ नेताओं को छोड़कर सभी नेता इन प्रपंच में पड़े है और मोटी कमाई कर रहे है। करोड़ों रु खर्च करने के बाद भी कई राज्यों में विकास का ना दिखाई पड़ना या सुरक्षा की कमी लोगों का मोहभंग अन्य राज्यों से कर रही है औऱ सभी गुजरात की औऱ मुड़ रही है।

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बेबाक राय के साथ मनोज पंडित

NCR Khabar Internet Desk

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