
हाईकोर्ट ने नर्सरी दाखिलों में निजी स्कूलों को दिशा-निर्देश बनाने की छूट देने के फैसले पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि प्रथम दृष्टया इस फैसले में कोई खामी नजर नहीं आती और शैक्षणिक सत्र 2015 में दाखिले जल्द ही शुरू होने वाले हैं। फिलहाल अदालत ने चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई 15 जनवरी तय कर दी। आज के फैसले से स्पष्ट हो गया कि इस सत्र में दाखिले स्कूलों के दिशा-निर्देश पर ही होंगे।
मुख्य न्यायाधीश जी.रोहिणी और न्यायमूर्ति राजीव सहाय एंडलॉ की खंडपीठ ने दिल्ली सरकार के शिक्षा निदेशालय और एनजीओ सोशल ज्यूरिस्ट के उस आवेदन को खारिज कर दिया जिसमें एकल पीठ द्वारा दिए 28 नवंबर के फैसले पर तुरंत प्रभाव से रोक लगाने का आग्रह किया था। कोर्ट ने कहा कि वर्ष 2013 में एकल जज के फैसले को चुनौती दी गई थी और दो सदस्यीय खंडपीठ ने 20 जनवरी 2014 को उस पर रोक लगाने से इनकार कर दिया।
खंडपीठ ने कहा कि वर्तमान में भी वही स्थिति है, ऐसे में वे महसूस करते हैं कि तुरंत प्रभाव से फैसले पर रोक लगाने का कोई औचित्य नहीं है। एकल जज ने 28 नवंबर को दिए फैसले से पहले सभी पक्षों के विस्तृत तर्क सुने थे और उसके बाद फैसला दिया था। उन्होंने विस्तृत विचार के बाद ही कहा था कि निजी स्कूलों को स्कूल बनाने, उसे चलाने और प्रशासनिक कार्य का दाखिले प्रदान करने सहित पूरे अधिकार है।खंडपीठ ने कहा कि फैसले में निजी स्कूलों के स्वायत्तता के अलावा यह भी स्पष्ट किया गया है कि इनके खिलाफ ऐसा कोई साक्ष्य नहीं है कि नियमों का उल्लंघन किया और दाखिलों में मनमानी की।
अभिभावकों को भी स्कूल चुनने का पूरा अधिकार है। खंडपीठ ने कहा कि यह मुद्दा काफी बड़ा है कि और इस पर विस्तृत जिरह की जरूरत है। अत: फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर वे 15 जनवरी को सुनवाई शुरू करेंगे।
सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता पीपी मल्होत्रा और एनजीओ की ओर से अधिवक्ता अशोक अग्रवाल ने तर्क रखा था कि 28 नवंबर का फैसला आधारहीन है, इससे निजी स्कूलों की मनमानी बढे़गी।
नर्सरी कक्षा में तीन साल के बच्चे को दाखिला देने के मामले में किसी प्रकार का भेदभाव और स्वायत्तता का सवाल नहीं हो सकता।
सिंगल जज फैसले में इस पर विचार करने में विफल रहे हैं कि समाज के कल्याण के लिए शिक्षा सर्वाधिक महत्वपूर्ण है और इसके कई पहलू भी हैं। सरकार ने कहा है कि यह कहना पूरी तरह से अनुचित है कि यदि माता-पिता को स्कूल का चयन करने की स्वतंत्रता होगी तो अच्छे स्कूलों में और अधिक बच्चे जाएंगे और कुछ खास नहीं माने जाने वाले स्कूलों को छात्रों से हाथ धोना पड़ेगा।