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मेट्रो की दीवार पर धार छोड़ते दिल्ली के नागरिकों को कुत्ते जैसी फीलिंग नही होती क्या ? डॉ पवन विजय
ठीक मेट्रो की दीवार पर धार छोड़ते दिल्ली के नागरिकों को कुत्ते जैसी फीलिंग नही होती क्या ? पान मसाला की पीक से जगह जगह नरक फैलाते या गंदगी से भरी पालीथिन को फुटपाथ पर फेंकते हुए लोगों को शर्म नही आती क्या? दिल्ली में कोई सिविक सेन्स नामकी चीज नही है . सडको को पार्किंग में तब्दील किये हुए दृश्य दिल्ली को दो कौड़ी का शहर बनाते है . रही सही कसर अतिक्रमण पूरा कर देता है. लोग भों भों करते बड़ी तेज गाडी दौडाते हैं वो भी बिना वजह के बिना तरीके के अंधाधुंध. बात बात में गाली गलौज और नासमझी से लबरेज ये लोग दिल्ली की कौन सी सूरत को दिखाना चाहते हैं. अहंकार और शोबाजी के साथ धूर्तता नस नस में व्यापित लगती है.
अरे भईया प्यार से बोलना सीखो. ‘तू तड़ाक’ तो चक्कूबाज लोग इस्तेमाल किया करते थे तब से अब जमुना में बहुत पानी बह चुका है.
डॉ पवन विजय