वैसे होता है… दर्द होता है.-Rishabh Krishna Saxena

12 साल तक जिसके ख़िलाफ़ एड़ी-चोटी का ज़ोर लगा दिया जाए, जिसे ज़लील करने का हरेक मौक़ा तलाशा जाए, जिसे गाली देने वाले चूहे को भी अपने मंचों पर शेर की मानिंद पेश किया जाए…. वही शख़्स 160+ क्लब जैसी मीडिया की बाजीगरी को बौना बना देता है और अवाम ख़ुद उसे दिल्ली दरबार में तख़्तनशीं करती है तो तक़लीफ़ लाज़िमी है…
सिंहासन पर बैठा वही शख़्स जब गंगा आरती करे.. पशुपतिनाथ के द्वार से त्रिपुंड और रुद्राक्ष धारण कर अवतरित हो तो सीने पर सांप लोटना तय हैं… तब तो गीता भेंट करने की उसकी परंपरा भी खलेगी…
लेकिन उसका जादू छह महीने बाद भी सिर चढ़कर बोले तो डर लगना लाज़िमी है कि न मालूम कितने सूबे भगवा हो जाएंगे।
ऐसे में चारा एक ही है…
जर्मन पर ऐसे विलाप करो मानो अपनी राष्ट्रभाषा पर प्रतिबंध लगा हो… संस्कृत के ख़िलाफ़ यूं मुहिम छेड़ो जैसे वह मोहनजोदड़ो-हड़प्पा की खुदाई में निकली अबूझ लिपि हो… मंत्री अगर ज्योतिषी को हाथ दिखा दे तो ऐसे चिल्लाओ जैसे भारत के सारे स्कूल भरभराकर ढहने वाले हैं…और जसोदाबेन तो भारत की पहली क्रांतिकारी महिला हैं!!
अब यही क्रांति बची है एजेंडा लेकर चल रहे मीडिया के पास….
Rishabh Krishna Saxena