लखनऊ। उप्र में लगातार पत्रकारों पर हो रहे हमले को लेकर लखनऊ श्रमजीवी पत्रकार यूनियन सहित अनेक संगठनों ने सोमवार को हजरतगंज स्थित जीपीओं पर धरना दिया। इस दौरान मौजूद पत्रकारों ने कहा कि ”पत्रकारों पर हमला होना चिन्ता की बात है। इसे रोकने में सरकारें रुचि नहीं ले रहीं हैं। अगर ऐसा ही होता रहा तो लोकतंत्र का चौथा स्तंभ खतरे में होगा। इस प्रकार की घटनाओं और हमलों को रोकने के लिए सरकारों को कड़ा कानून बनाना होगा।”
इस मौके पर मौजूद उत्तर प्रदेश श्रमजीवी पत्रकार यूनियन के महामंत्री जेपी तिवारी ने कहा पत्रकारों पर जिस प्रकार की घटनाएं हो रही है उससे चौथे खम्भे पर सीधा हमला करने जैसा है। कल जिस प्रकार से न्यूयार्क में बड़े पत्रकार के साथ बदसलूकी हुई उससे पूरे देश के सम्मान को ठेस पहुंची है। इस कृत्य की निंदा करते हुए पत्रकरों का एक समूह न्यूयार्क सरकार को एक फैक्स कर इसके बारे में संदेश देगा। साथ ही पीएम कार्यालय की तरफ से भी इस पर कड़ी प्रतिक्रिया दर्ज कराई जानी चाहिए। इस पूरे मामले की जांच भी होनी चाहिए।
लखनऊ श्रमजीवी पत्रकार यूनियन के अध्यक्ष सिद्धार्थ कलहंस ने कहा जिस प्रकार से पिछले दिनों से पत्रकारों पर हमला हो रहा है। उसकी निंदा की जानी चाहिए। इस पर ठोस कानून बनाने की अवश्यकता है,जिससे पत्रकारों पर होने वाले हमले बंद हो सके। उन्होने कहा जिस प्रकार से न्यूयार्क में जो घटना बड़े पत्रकार के साथ हुई है। इससे उनके साथ पूरे पत्रकार बिरादरी को भी ठेस पहुंची है। उन्होने कहा जल्द ही एक कमेटी बनाकर राज्य सरकार और केन्द्र सरकार से कड़ा कानून बनाने की मांग करेगें।
आईएफ डबल्यूजे से जुड़े पत्रकार के.विश्वदेव राव का कहना है कि इस प्रकार के हमले लगभग रोज हो रहे है। इस पर कोई सरकार कार्रवाई न करके मौन साधे हुए है। उन्होने कहा जिस प्रकार मध्यप्रदेश में कानून बना है कि किसी भी पत्रकार पर एफआईआर होने पर उस मामले की जांच के बाद गिरफ्तारी होगी ऐसा ही कानून बनाने की अवश्यकता है।
जिला मान्यता प्राप्त पत्रकार संघ के अध्यक्ष अब्दुल वहीद ने प्रदेश और केंद्र सरकारों से पत्रकारों का उत्पीडऩ रोकने की मांग करते हुए कड़े कानूनों की वकालत की। मानवाधिकार संगठन पीयूसीएल लखनऊ के महामंत्री रामकिशोर ने कहा कि फासीवादी ताकतें अभिव्यक्ति की आजादी के लिए खतरा बनती जा रही हैं। ऊर्दू दैनिक कौमी खबरें के संपादक ओबैदुल्लाह नासिर ने राजदीप सरदेसाई पर हुए हमले के विरोध को यूएन में दर्ज कराने पर जोर दिया। इस मौके पर हरिओम शर्मा, आशीष अवस्थी, उत्कर्ष सिन्हा, प्रभात त्रिपाठी ने भी अपने विचार व्यक्त किए।