हंसी मज़ाक अलग बात है लेकिन ये समय कश्मीरी लोगों के लिए आत्म-विश्लेषण का है….कौन अपना और कौन पराया है ये उनके लिए जान लेना बहुत ज़रूरी है…..फौज के रवैये पर सवाल उठाने की जहां तक बात है उस पर एक बात शेयर करना चाहता हूँ…..
.
मेरे परिवार में भी आर्मी अफसर हैं…मेरा छोटा साढू भाई भी आर्मी में है….बात तब की है जब वो लद्दाख में लेफ्टिनेंट कर्नल के पद पर तैनात था… ….मैं उसके पास गया हुआ था छुट्टियां बिताने…मैं दिन भर खाली रहता था सो उसके ऑफिस में चला जाता था समय बिताने….वहाँ अनुशासन के नाम पर एक सिविलियन होने के नाते मुझे लगता था कि वो अपने जवानों और अपने अधीन अफसरों पर ज्यादती करता है….एक दिन मैंने पूछ ही लिया कि यार तुझे नहीं लगता कि अनुशासन के नाम पर तुम लोग इन सबका खून पी जाते हो ???
.
उसका जवाब था — भाई साहब…आर्मी सिर्फ एक चीज पर चलती है…और वो है अनुशासन..जिस दिन ये ख़त्म हो गया हम लोग आपस में ही मर कटेंगे….आपको क्या लगता है ये सब करके हमें मजा आता है ??? हमें भी पता है कि ये इंसानियत के लिहाज से ठीक नहीं है….इसी तरह बॉर्डर पर भी वहाँ के रहने वालों को हमें कंट्रोल में रखना पड़ता है क्योंकि वो संवेदनशील इलाके हैं…ज़रा सी लापरवाही देश के लिए घातक है……..जैसे आर्मी की अपनी जिम्मेदारी है वैसे ही बॉर्डर पर रहने वाले आम लोगों की जिम्मेदारी देश के अन्य लोगों से अधिक होती है…एक तरह से वो भी देश के सिपाही जैसे ही हैं…..जो कष्ट सहकर भी देश के हित पर आंच नहीं आने देते…इसके एवज में उन्हें सरकार से कई ऐसी सुविधाएं भी मिलती हैं जो अन्य देशवासिओं को नसीब नहीं हैं….लेकिन दुर्भाग्य ये है कि कश्मीर एक मुस्लिम बहुल इलाका है सो पाकिस्तानी इन्हें आसानी से बरगला लेते हैं……कभी मानवाधिकार के नाम पर कभी धर्म के नाम पर….अब कंट्रोल करना है तो हमें कई बार एक्शन भी लेने पड़ते हैं जो कि इन्हें लगता है कि इनके साथ ज्यादती हो रही है….अब लगता है तो लगा करे लेकिन देश से ऊपर किसी की निजी सोच नहीं है सो हम परवाह नहीं करते……. हकीकत ये है कि आर्मी वाले ना तो आपस में धर्म की बात करते हैं ना जिसकी मदद कर रहे हैं उसका धर्म पूछते हैं….
.
ये बात कश्मीरी जितनी जल्दी समझ जाएँ अच्छा है…..राजेश भट्ट