बच्ची कई दिन से जिद कर रही थी सो कल उसे फिल्म दिखाने ले गया….मैरी कॉम….साथ में उसकी दो सहेलिया भी चल दी…..
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छोटी किन्तु अच्छी,साफ़ सुथरी और प्रेरणादायक फिल्म है…बच्चों को जरूर दिखानी चाहिए…हर पात्र अपने किरदार पर पूरी तरह फिट…..प्रियंका की संभवतः ये सबसे अच्छी फिल्म है आज तक की…
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ये तो हो गई फिल्म की बात….कुछ बातें गौर की जो कि वास्तव में अफ़सोसजनक हैं…..
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ये फिल्म एक ऐसे व्यक्तित्व पर बनी है जो कि सभी बच्चे-बच्चिओं के लिए प्रेरणा दायक है सो ऐसी फिल्म को सरकार को टैक्स फ्री कर देना चाहिए था…ताकि हर गरीब-अमीर व्यक्ति देख सके….
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केवल दो ही दिन पहले रिलीज हुई फिल्म को गिनती के लोग देखने आये थे…जबकि उसी मल्टीप्लेक्स की दूसरी स्क्रीन पर चल रही हॉलीवुड की डब की हुई फिल्म “मौत का खिलाड़ी” हाउसफुल थी….कारण शायद ये रहा हो कि “”मैरी कॉम”” में वो मसाले ना हों जो “मौत का खिलाड़ी” में हों…..फिल्म के पोस्टर पर दिख रही अधनंगी अन्ग्रेजनें ज्यादा अपील करती हों हमारे दर्शक वर्ग को….शायद……
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फिल्म के अंत में राष्ट्र गान की धुन बजती हैं….मैं और मेरी बेटी सहित कुछ लोग खड़े हो गए….एक सज्जन जो पीछे बैठे थे वो बोले—भाई बैठ जा कुछ दिखाई नहीं दे रहा है…राष्ट्रगान ख़त्म होने के बाद मैंने पीछे मुड़कर देखा एक बुजुर्ग सज्जन थे अपने नाती पोतों को फिल्म दिखाने आये थे…मैंने उन्हें कहा —– अगर आपको राष्ट्रगान का सम्मान ही नहीं है तो फिर इन बच्चों को यहाँ क्या दिखाने लाये हो ???? सुनकर शर्मिंदगी के भाव से उन्होंने चेहरा झुका लिया…… मतलब देशभक्ति के लिए हमारे मन में ५२ सेकण्ड की भी सहनशक्ति नहीं…..
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सिनेमा हॉल से बाहर निकलते समय दो बाजू से गुजरने वालों की बात कान में पड़ी —बकवास मूवी थी यार….कुछ भी नहीं था इसमें…..अब वो “””कुछ”””क्या हो सकता था अपने को भी समझ में नहीं आया…..शायद हिंदी फिल्म के लिए हमारा मानसिक स्तर मात्र दो चार पेड़ों के इर्द गिर्द नाचते हुए गाने,स्विट्ज़रलैंड की लोकेशन और एक आध गरमा गरम सीन्स तक ही सीमित होकर रह गया है………
राजेश भट्ट