राजा विक्रम को नौवीं बार आते देख बेताल सोचने लगा कि आज कौन सा सवाल पूछूँ ताकि यह जिद्दी राजा मौन न रह पाये। इधर बेताल को सवाल सूझा और उधर विक्रम मुर्दे को कंधे पर उठाये चलने लगा। बेताल बोला, ” हे विक्रम, पिछले साल तुम्हें याद होगा कि उत्तराखंड की केदार घाटी में अतिवृष्टि हुई। मूसलाधार पानी बरसने से वहां जान – माल के अलावा सारी सड़कें और पुल बह गए। इसमें ऐसे पुल भी थे जो भारी धन राशि खर्च करके सिर्फ कुछ वर्ष पहले बनाए गए थे। ताज्जुब की बात यह थी कि अंग्रेजों के ज़माने में बने पुलों को उतना नुकसान न पहुंचा था। विक्रम, क्या तुम बता सकते हो कि ऐसा क्यों हुआ ? ” विक्रम केदार घाटी से बहुत प्यार करते थे । बेताल के सवाल ने उनके दिल पर लगे घाव को कुरेद दिया। विक्रम दुखी स्वर में बोले, ” जो ठेकेदार अंग्रेजों के ज़माने में पुलों, सड़कों और भवनों का निर्माण करते थे, उन्हें ठेका पाने से लेकर ठेका पूरा होने तक हर कदम पर रिश्वत नहीं देनी पड़ती थी। इसलिए उनका निर्माण कार्य उत्तम कोटि का होता था। लेकिन आज तो जो भी सड़क, पुल या भवन बनता है, उसे बनाने वाले ठेकेदार को मंत्री से लेकर संतरी तक, सबकी जेबें गरम करनी पड़ती हैं। फलस्वरूप, वह घटिया सामग्री का इस्तेमाल कर अपना निर्माण कार्य पूरा करता है। ” विक्रम का जवाब सुनकर बेताल हंसते हुए बोला,” राजन, मैं तो चला लेकिन कभी बारिश हो रही हो तो ऐसे नए पुलों पर संभल कर चलना !”
सुभाष लखेड़ा