सबसे ज्यादा दुःख तब होता है जब आपको लगे कि दो-तीन साल से आपके साथ जुड़े मित्र भी आपकी विचारधारा को ना समझ पाए….
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मुझे खासकर अत्यंत दुःख होता है ये देखकर…..कई बार लगता है कि शायद या तो मैं अपनी बात को ठीक से प्रस्तुत नहीं कर पाता हूँ या फिर सामने वाला समझने के काबिल ही नहीं है….
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अगर आप मोदी समर्थक हैं तो क्या इसका मतलब यही है कि आप रात दिन केवल मोदी चालीसा पढ़ते रहें..ज़रा सा इधर हुए तो बस गाली खाने को तैयार रहो..समालोचना और व्यंग्य भी कोई चीज है…जीवन में…….मैं जीवन अपनी शर्तों पर जीने वाला इंसान हूँ…मुझे जब जो सही लगता है लिखता हूँ……..अगर आप ये उम्मीद करते हैं कि मैं दिन रात एक ही तपस्या में लीन रहूँ तो माफ़ कीजिये ऐसा फेस्बुकिया-विधवा जीवन मुझे मंजूर नहीं…..
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जिसे मैं समझ में आता हूँ तो ठीक वरना आप्शन सभी दिए हैं जुकरबर्ग ने…..कहीं से कोई जबरदस्ती नहीं है मित्रता का बोझ बर्दाश्त करने की….निकाल फेंकिये मुझे अपनी लिस्ट से….
राजेश भट्ट