‘इन-उन सेना’ वाले आजकल ‘लव जेहादियों’ के साथ जो भी कर रहे हैं बढ़िया कर रहे हैं। गली-गली चुन-चुन कर सबकी खबर ले रहे हैं। कमबख्तों ने भी आफत जोत के रखा हुआ है। अम्मा-अब्बा कॉलेज-युनिवर्सिटी भेजते हैं कि आदमी बनेंगे, बाप-दादा का नाम रौशन करेंगे लेकिन साहबज़ादे हैं कि ‘जिहाद’ करते फिरते हैं। मैं तो कहती हूं कि ‘इन-उन सेना’ वालों को थोड़ी और आसानी होगी अगर वो ‘इन लव जिहादियों’ को पकड़ने और उनकी कुटाई करने से पहले उनकी दूर-पास की कज़िनों, पड़ोसिनों और क्लासमेट्स वगैरह पर भी थोड़ी रिसर्च कर लें।
उन्हें सैकड़ों ‘दिलजलियां’ मिल जाएंगी। मेरा दावा है कि दिल ही दिल में बदले की आग में जलती ये ‘दिलजलियां’ ‘लव जेहादियों’ की ठुकाई और कुटाई दोनों में पूरी मदद करेंगी। साथ ही ‘लव जेहादियों’ के तार कब किस सन में ‘कहां-कहां’ और ‘किन-किन’ से जुड़े रहे हैं उन का पूरा ब्योरा भी दे देंगी। दरअसल ये ‘लव जेहादियों’ और उनकी अम्मा बहनों की प्रत्यक्ष और परोक्ष पीड़िता रह चुकी हैं। बिचारियों ने कब से इंतजार किया हुआ था कि साहबज़ादे डॉक्टर बने,इंजीनियर बने,ऑफिसर बनें खैर से रोजगार से लगे तो हम भी उनकी मिसेज बनने का शर्फ हासिल करें हसीन वादियों में उनके साथ डुएट गाएं। इस एक हसीन उम्मीद में ‘दिलजलियों’ ने क्या-क्या नहीं किया? तरह-तरह के मुग़लई, चीनी, कंटीनेन्टल और जने क्या-क्या नेन्टल डिशेज बनाना सीखा( जिनके नाम ठीक से पुकारने में भी जबान बिचारी को योगा करना पड़ जाए) और इन नहंजार लव जिहादियों की अम्माओं, बहनों यहां तक दादियों को इतना चखाया कि उनका हाजमा बिगड़ गया। लेकिन ये रूकी नहीं पूरी लगन से जुट रहीं तुरपाई करनी नहीं आती थी लेकिन दादी जान को इंप्रेस करने के चक्कर में पूरी दुलाई ही सी डाली, अपने साथ क्लास में पढ़ने वाली साहबजादे की बहन के नोट्स रात में जाग-जाग कर तैयार किए। लेकिन इतनी कोशिशों का सिला क्या मिला ? साहबज़ादे नौकरी में आते ही ‘लव जेहाद’ कर बैठे।
और अब बिचारी ‘लव जेहाद की मारियां’ वेल सेटेल्ड जेहादियों को झेलते हुए वक्त-बेवक्त मसूरी और गोवा के टूर पर रहती हैं। और इधर ‘दिलजलियां’ जगजीत की सैड गज़लों के नंबर सुन-सुन के गुजारा करती हैं। अब आप ही इंसाफ करें कि सारी मेहनत ये बिचारियां करें, साहबज़ादे की अम्मा के दुप्टटे में जाग-जाग कर गोटे ये टांके, दादी के पानदान ये धोएं, उनके कुर्ते पर सिंधी स्टीच वाली कढ़ाई ये करें और साहबज़ादे को ले उड़ें ‘लव जेहाद की मारियां’। ऐसे में इन दिलजलियों की ओर से मेरी ‘इन-उन सेना’ वालों से खास अपील है कि लिल्लाह आप इन बहनों पर भी अपनी नज़र-ए-करम डालिए। ये भी कम विक्टिम नहीं हैं। ज़रा इनके इंसाफ में भी खड़े हों। यूं भी इस ‘लव जिहाद’ ने तो हमारी सोसायटी में कम आफत नहीं मचाया हुआ है। कितनी मांए‘हाफ हार्ट अटैक’ ‘हवल दिल’ ‘ब्लड में फ़्लक्चुएशन’ जैसी बीमारियों का शिकार हो रही हैं।
पिछले हफ्ते की ही बात है कि हमारी मुंहबोली फूफी की ननद की देवरानी को ‘हॉफ हार्ट अटैक’ आ गया। हलांकि बिचारी बड़ी हेल्थ कांशस है सुबह की सैर करती हैं, जिम जाती हैं। लेकिन ये भी ‘लव जेहाद’ की शिकार हो गई। दरअसल इनकी नज़र कई बरसों से अपनी छोटी बेटी के लिए पड़ोसिन के साहबज़ादे पर थी। मन ही मन दामाद भी मान चुकी थीं। साहबजादे काफी जीनीयस थे आईआईटी निकाल चुके थे। बस इंतजार था उनके बरसरेरोजगार होने का। मोहतरमा भी दिल मसोसकर अपनी एक आंख ना भाने वाली पड़ोसन से काफी मुह्ब्बत करने लगी थीं। गाहे-बगाहे दावतें करतीं, तोहफे देतीं। पिछले महीने ही पूरे चौदह हजार की महीन जरी के काम वाली फिरोज़ी रंग की बनारसी साड़ी गिफ्ट की थी। लेकिन हाय री किस्मत! एक हफ्ते पहले मालूम हुआ कि साहबजादे ने ‘लव जिहाद’ करते हुए अपनी क्लास मेट से ब्याह रचा लिया है। और ‘लव जेहादी’ के साथ ‘लव जेहाद की विक्टम’ आजकल गोवा के टूर पर हैं। बिचारी इस हादसे से इतनी दिलबर्दाश्ता हुई के ‘हाफ हार्ट आटैक’ आ गया। आजकल गुमसुम हैं रह-रह कर उनकी आंखो के सामने बनारसी साड़ी, तोहफे और दी गई दावतों के सीन आने लगते हैं। फ्लैशबैक में जाते ही खर्चे जोड़ने लगती हैं और बिचारी के दिल में दर्द उठने लगता है। उधर साहबजादे के अम्मा-अब्बा और बहनों का भी बुरा हाल है। बिचारों ने सोचा था कि साहबजादे इंजीनियर बनेंगे तो उनका नाम रौशन होगा समाज में रूतबा बढ़ेगा। पढ़ाई खत्म होते ही पांच-छह जीरो वाली सैलरी वाली नौकरी, महानगर में फ्लैट,फॉरन टूर होगा। हसीन-जमील बहू अपने साथ फोरव्हिलर,डेकोरेटिव फ्लैट के कागजात के साथ-साथ और भी बहुत कुछ लाएगी। लेकिन सारे सपने धरे रह गएं बेटा ‘लव जिहाद’ कर बैठा। बेड़ा गर्क हो इस‘लव जिहाद’ का सबकी जिदंगी का कैलकुलेशन बिगाड़ कर रख देता है।
हमारी जुब्बा खाला जो ‘लव जेहाद’ को ‘मुहब्बत की शादी’(माने की बाकी शादियां शायद नफरत की होती होंगी) मानती हैं उनका मानना है कि इसने तो पूरी सोसायटी का बेड़ा गर्क कर करे रखा हुआ है, कहती हैं कि “ अम्मा-बावा पेट काट-काट कर कालजे यूनीवर्सीटी भेजते हैं और साहबजादे नौकरी मिलते ही पर-पंख निकाल दूसरी कौमों की लड़कियां लिए चले आते हैं। क्या अपने यहां लड़कियों का काल पड़ा हुआ है ” वैसे भी कौम का एक बच्चा इंजीनियरिंग,डॉक्टरी, अफीसरी का इम्तहान पास करता है अच्छा बिजनेस सेट करता है तो पूरी कौम की कितनी बेटियों की अम्माओं की बाँछें खिल जाती हैं, पड़ोसिन की बहन, फूफ्फू की ननदें, चच्ची-ताई की बहने सब की सब मारे खुशी की बेहाल हो जाती हैं, शुक्राने की नमाजें अदा करती हैं। साहबजादे की अम्मा और बहने अलग रूतबे में आ जाती हैं। अचानक ही उनका स्टेटस बढ़ जाता है। महफिलों में वीआईपी ट्रीटमेंट मिलने लगता है। सोचिए जब साहबजादे जाकर जिहाद कर बैठते होंगे तो इन बिचारों का क्या हाल होता होगा ? जुब्बा खाला को अपने पोते-नातियों की बड़ी फिक्र रहती है कि कहीं किसी दिन वो भी जिहाद न कर बैठें। कहती हैं कि बस चले तो इन सारे लव जेहादियों के अम्मा-अब्बा, दूर-पार की पड़ोसिनें, खालाएं और फूफियों और दिलजलियों की एक सेना बनाएं। और ‘इन-उन सेना वालों’ की मदद के लिए भेज दें। सब की सब मिल कर इन नाशुक्रे ‘लव जेहादियों’ की मरम्मत करें तो ही सब की अक्ल ठिकाने आएगी फिर कोई दूसरा सारे कैलकुलेशन को गड़बड़ करते हुए इस किस्म का‘जिहाद’ लाने की हिम्मत भी नहीं करेगा। वैसे जनाब मैं भी यही कहती हूं कि अरे कुछ लाना ही है तो ‘घर में नए ब्रांड की कार लाएं, ब्लैकबेरी लाएं, विदेश की सैर की टिकटें लाएं, खामाख्वाह का पक्ष और विपक्ष दोनों की ओर से ठुकाई, कुटाई, पिटाई के रिस्क वाला जिहाद क्यों लाएं?
थोड़ा प्रैक्टिकल बनिए ! और सेफ्टी का ख्याल रखते हुए कमीटमेंट से दूर रहिए। बहुत शौक है तो कालेज कैंपस में हाथों में हाथ डाल कर घूमिए, रेस्टोरेंट में खाईए, पार्क में टाइम पास कीजिए। इससे न तो धर्म का कुछ बिगड़ेगा न धर्म-संस्कृति के खुदाई फौजदारों को शिकायत होगी। यानी किसी डिस्को में जाएं,किसी रेस्टोरेटं में खाएं, कहीं घूम कर आएं टाईप का ईश्क कीजिए और फिर आखिर में लाखों के खर्च वाला ब्याह किसी सजातिए सहधर्मी के साथ मार्केट रेट के हिसाब से दहेज लेकर शान से कीजिए। मां-बाप,समाज, पड़ोसिनें,रिश्तेदार सब खुश। भले से मुह्ब्बत हो ना हो सोच मिले न मिले क्या फर्क पड़ता है।आने वाली पीढ़ियों के लिए धर्म-समाज-संस्कृति भी बचे रह जाएंगे। सबसे बढ़ कर पक्ष और विपक्ष दोनों को कोई शिकायत भी नही होगी वहीं दूसरी ओर ठुकाई-पिटाई का कोई डर भी नही रहेगा।
अल्लाह-अल्लाह खैर सल्लाह !
सदफ़ नाज़
सदफ़ नाज़ धनबाद में रहती हैं, पत्रकारिता करती हैं. ‘लव जिहाद’ पर सोचने बैठी तो ऐसा व्यंग्य लिख गई कि हँसते हँसते पेट में बल पड़ जाएँ. एकदम उर्दू शैली का व्यंग्य शुद्ध देवनागरी में.