घाटी में उतरते पानी के साथ घाटी के चरित्र की परतें भी उतर रही हैं. पानी उतर रहा है और उतरते -उतरते कुछ चेहरों से नकाब भी उतार रहा है. वो नकाब जो पाकिस्तान में पहनाए जाते हैं.
सही समझे आप. मै हुर्रियत की बात कर रहा हूँ.
वही हुर्रियत और वही हुर्रियत के नेता. जी हाँ, ४८ घंटे पहले पानी से घिरे हुर्रियत नेता यासीन मलिक को सेना के जवानो ने जान दांव पर लगाकर बचाया था. और अगली ही सुबह मलिक के सुर बदल गये. इससे पहले की पानी नीचे उतरे , यासीन मालिक अपने ज़मीर से ज्यादा नीचे उतर गये थे. उन्ही जवानों पर उन्होंने हजरतबल इलाके में पत्थर बरसवाय जो एक रात पहले पत्थर मारने वालों की जान बचा रहे थे. आजादी के नाम पर हिन्दोस्तान को तोड़ने बांटने की ये एक और घिनोनी साज़िश थी.
मित्रों बाढ़ में डूबे घाटी के सभी मुसलमान हुर्रियत के साथ नही है. लेकिन कुछ ख़ास इलाकों में पथराव कराकर हुर्रियत ने आंसुओं के इस सैलाब में भी अलगाव की आग को हवा दी है. ये मौके की वो राजनीती है जो लाशों के ढेर पर की जा रही है. मुझे उम्मीद है की पानी उतरने के बाद घाटी के मुसलमानों को हुर्रियत की इस सियासत का अहसास होगा.
हुर्रियत का मतलब आजादी है. पर यासीन मालिक और उनके साथियों ने अपने मोर्चे का नाम हुर्रियत रखकर ज़िन्दगी की सबसे बड़ी गलती की है. यासीन साहब जान लीजिये कि ये आजादी आपको कभी नही मिल सकती …और हाँ इस आजादी को अगर पाना है तो पहले आपको १२५ करोड़ लाशें बिछानी होगी. तैयार है आप ?
दीपक शर्मा (आज तक )