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नंद के घर आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की

19_08_2014-18upw04मथुरा। नंदबाबा के आंगन में लाला आ चुका था। नंदबाबा को बधाई देने भगवान कृष्ण के सखा और सखी पहुंचने लगे। लाला पाकर नंदबाबा और यशोदा मैया को सारे जहां की खुशियां मिल गई थीं। नंदबाबा जमकर उपहार लुटा रहे थे। द्वारिकाधीश मंदिर और गोकुल के नंदभवन में नंदोत्सव की लीला साकार हुई तो श्रद्धालु कह उठे नंद के घर आनंद भयो, जय कन्हैयालाल की। ग्वाल-बाल झूम उठे। ब्रज का उत्साह चरम पर पहुंच गया।

गोकुल के नंदभवन में कृष्ण, नंदबाबा, यशोदा, गोपी-ग्वाल आदि स्वरूपों की शोभायात्रा निकाली गई। बैंडबाजों की धुन पर लाला के जन्म के बधाई गीत गाए जा रहे थे, जिस पर श्रद्धालु भाव विभोर होकर नृत्य करने लगे। प्रसाद के रूप में लाला की छीछी लुटाई जा रही थी। जो भी इस छीछी के छीटों में भीगा, खुद को धन्य समझ उठा। नाचते-गाते शोभायात्रा नंदचौक पर पहुंच गई। पालने में बैठे लड्डू गोपाल को झूला झुलाने की होड़ लगी रही। ग्वाल-बाल सभी लाला के जन्म की मस्ती में झूम रहे थे। विधायक पूरन प्रकाश भी लाला की छीछी को सिर पर रखकर शोभायात्रा में चले।

द्वारिकाधीश मंदिर में भी नंदोत्सव में श्रद्धालु जमकर झूमे। मंदिर को नंदभवन का रूप दिया गया। प्रसाद के रूप में मेवे आदि लुटाए गए। जिस श्रद्धालु को भी यह प्रसाद मिला, वह धन्य हो उठा। हाथी घोड़ा पालकी, जय कन्हैया लाल की, के जय घोषों से गूंजता रहा। मंदिर में श्रद्धालु सुधबुध खोकर भगवान कृष्ण की भक्ति में झूम रहे थे। वह भगवान के चरणों में पहुंचना चाहते थे।

भव्यता ने जीवंत कर दी ‘द्वापर’ की दिव्यता

लाला के जन्मोत्सव पर द्वापर में कैसा नजारा रहा होगा? पुराणों में इनका उल्लेख पढ़ने को मिलता है। धर्म प्रवक्ता व्यासपीठ से कृष्णगाथा बांच भक्तजनों को सुनाते रहते हैं। ऐसे विलक्षण व्यक्तित्व के जन्मोत्सव की कल्पना मात्र से ही जन-जन प्रफुल्लित हो उठते हैं। जन्माष्टमी पर सोमवार को श्रीकृष्ण जन्मस्थान परिसर की भव्यता ने मानो द्वापर युग की दिव्यता को जीवंत करते हुए इस जिज्ञासा को और उद्वेलित कर दिया।

जन्मोत्सव पर जन्मस्थान परिसर को सजाने की थीम भी इस बार कुछ ऐसी बनाई गई कि भक्तजनों को उसी पौराणिक दृश्य की अनुभूति हो। कान्हा के आसन को श्रीनिकुंज का नाम और रूप देने के पीछे मकसद रहा कि ब्रज अभी भी हरा-भरा है। वन-उपवनों की हरियाली मन मोहती है। पक्षियों का कलरव कर्णप्रिय है। जन्मोत्सव की पोशाक मयूराम्बर धारण कर श्री विग्रह ने मानो मयूर संरक्षण का संदेश दिया। पूरा समां ऐसा था कि मानों पांच हजार वर्षो से ज्यादा पुरानी भगवान के अवतार की लीला आज जीवंत हो रही थी। आस्था की लहरें श्रीकृष्ण जन्मभूमि स्थल पर आकर समा रहीं थीं। जन्मभूमि की दिव्यता इतनी कि मानो तीनों लोक फीके पड़ गए हों।

भागवत भवन के भीतरी भाग में निर्मित ‘श्रीनिकुंज’ बंगला सबके ह्रदय में कौतूहल का भाव पैदा कर रहा था। ब्रज के कलाकारों ने इस पर हरियाली से भरपूर आकृतियां उकेरी थीं। भागवत भवन के प्रवेश और निकास द्वार पर भी ऐसे मयूर बनाए गए थे, जो सजीव प्रतीत हो रहे थे। गर्भगृह, श्री केशवदेव और श्री योगमाया मंदिर की सुंदरता भी देखते बन रही थी।

जन्मोत्सव को जीवंतता देने को लीलामंच ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। सोमवार सुबह पुष्पांजलि कार्यक्रम के बाद इस मंच पर ब्रज के कलाकारों द्वारा देवकी-वासुदेव को कारागार में डालने, कृष्ण जन्म के साथ ही देवकी-वासुदेव की बेड़ियां टूटना, वासुदेव का कान्हा को लेकर यमुना पार करना, नंदोत्सव आदि के मंचन ने द्वापरकालीन इन लीलाओं को जीवंत कर दिया। हजारों लोग इन लीलाओं को देख सुध-बुध खो बैठे।

पुराणों में है ये उल्लेख:

श्रीमद् भागवत समेत कई अन्य पुराणों में उल्लिखित है-श्रीकृष्ण जन्मभूमि पर भगवान श्रीकृष्ण के जन्म महोत्सव के दर्शन का जो पुण्य मिलता है, वह बैकुंठ में भी नहीं। बैकुंठ में बैठे देवता भी इस क्षण का आनंद लेने के लिए तरसते हैं। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के जन्म अभिषेक के दर्शन के लिए 33 करोड़ देवी-देवता भी इस पवित्र भूमि पर उपस्थित रहते हैं। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के दिन श्रीकृष्ण जन्म स्थान पर शामिल होना प्रभु की साक्षात कृपा रूपी अमृत का पान करने के समान है। श्रीकृष्ण के जन्म स्थान के अद्भुत रूप को देखकर बुधवार को लाखों श्रद्धालु भक्ति भाव और आनंद से विभोर हो उ

NCR Khabar News Desk

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