जानबूझकर कर्ज नहीं चुकाने वालों को अब शर्मिंदगी झेलनी पड़ सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने बड़े स्तर पर जनहित को ध्यान में रखते हुए बैंकों को ऐसे डिफाल्टरों की फोटो अखबारों में छपवाने की अनुमति प्रदान कर दी है।
ताकि कर्ज लेने वाले सावधानी बरतें और जागरूकता आए। हालांकि अदालत ने फोटो छपवाने का कदम उठाने का निर्णय लेने का अधिकार वरिष्ठ स्तर के अधिकारियों को ही दिया है, जो बैंक के महाप्रबंधक से नीचे स्तर का अधिकारी नहीं होगा।
जस्टिस एफएम इब्राहिम कलीफुल्ला की अध्यक्षता वाली पीठ ने इस मामले में बांबे हाईकोर्ट के आदेश को जारी रखते हुए स्टेट बैंक आफ इंडिया को डिफाल्टरों के फोटोग्राफ छपवाने की अनुमति दी है।
अब बैंक की ओर से मुंबई की कर्ज नहीं चुकाने वाली फर्म डीजे एग्जिम (इंडिया) प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक और गारंटरों की फोटो अखबारों में प्रकाशित कराई जाएगी।पीठ ने यह अनुमति सिक्योरिटेशन एक्ट की धारा 8 के आधार पर प्रदान की है, जिसमें बैंकों को जानबूझकर पैसा नहीं लौटाने वाले कर्जदारों के नाम और पता अखबारों में प्रकाशित करने अधिकार मिला है और इसमें फोटो छपवाने पर भी कोई कानूनी प्रतिबंध या रोक नहीं है।
पीठ ने बैंक के इस तर्क को स्वीकार किया कि ऐसी कार्रवाई डिफाल्टर की निजता के अधिकार का उल्लंघन नहीं करती। ऐसे ही कुछ समान मुद्दों पर बांबे, मद्रास और मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की ओर से पहले ही डिफाल्टरों के फोटो प्रकाशित कराने की मंजूरी बैंकों को दी गई है।
जबकि कलकत्ता और केरल हाईकोर्ट की ओर से इसे असंवैधानिक और कानून में अनुमति नहीं दिए जाने योग्य करार दिया गया था। इसके चलते एसबीआई की ओर से सर्वोच्च अदालत का दरवाजा खटखटाया गया।
गौरतलब है कि निजी फर्म की ओर से ब्याज समेत 53.18 करोड़ रुपये कई निवेदनों के बाद नहीं चुकाए गए। इसके बाद गत वर्ष 10 अक्टूबर को बैंक ने फर्म को चेतावनी जारी कर पैसा नहीं चुकाने की स्थिति में फोटो प्रकाशित कराने का नोटिस भेजा।
इसके खिलाफ कंपनी ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया, लेकिन हाईकोर्ट ने जनहित का हवाला देते हुए बैंक को फोटो प्रकाशित कराने की मंजूरी प्रदान कर दी।