नई दिल्ली। आम चुनावों के बाद केंद्र में मजबूत व स्थायी सरकार बनने की उम्मीद में शेयर बाजार की तेजी रिजर्व बैंक (आरबीआइ) के लिए दिक्कत बन रही है। बाजार में भारी मात्रा में आ रहे विदेशी संस्थागत निवेश ने डॉलर के मुकाबले रुपये को मजबूत कर दिया है। रुपये की इस मजबूत स्थिति ने केंद्रीय बैंक की परेशानी बढ़ा दी है, जो एक डॉलर की आदर्श कीमत साठ रुपये मानता है। शेयर बाजार की तेजी डॉलर की कीमत को इससे नीचे ला रही है।
दो कारोबारी सत्रों में सेंसेक्स ने एक हजार अंक से ज्यादा की छलांग लगाई है। आम चुनावों के नतीजे 16 मई को आने हैं, मगर शेयर बाजार में स्थायी सरकार बनने की धारणा बेहद मजबूत है। इसे देखते हुए विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआइआइ) का प्रवाह भी काफी अधिक हो गया है। एफआइआइ के पास उभरते बाजारों के लिए एक बड़ा फंड है। इन बाजारों में चीन के बैकफुट पर चले जाने की वजह से भारत इन निवेशकों के लिए सबसे आकर्षक बना हुआ है। एफआइआइ की ओर से तेजी से आ रहा निवेश ही विदेशी मुद्रा बाजार में डॉलर के मुकाबले रुपये की स्थिति को मजबूत कर रहा है।
सोमवार को एक डॉलर की कीमत कारोबार के दौरान एक समय 59.1 रुपये तक जा पहुंची। हालांकि बाद में वह वापस 60 रुपये से अधिक हो गई। जानकारों का मानना है कि अभी आगे भी घरेलू मुद्रा में मजबूती की स्थिति बनी रहेगी। ऐसे में रुपया डॉलर के मुकाबले और दमदार हो सकता है। रिजर्व बैंक मानता है कि आदर्श स्थिति में एक डॉलर की कीमत 60 रुपये के आसपास रहनी चाहिए। डॉलर की कीमत इससे ज्यादा होना पहले से मंदी से जूझ रहे निर्यातकों के लिए परेशानी बन सकता है। लेकिन जिस तेजी से देश में विदेशी मुद्रा का प्रवाह बढ़ रहा है वह डॉलर की कीमत पर लगातार दबाव बनाए हुए है। वैसे भी चालू खाते के घाटे व राजकोषीय घाटे के उम्मीद से भी नीचे रहने से डॉलर पर पहले ही दबाव बना हुआ है। व्यापार घाटा भी काबू में है।
इन स्थितियों ने भी रुपये को मजबूती दी है। ऐसे में मुद्रा बाजार में ये सवाल उठने लगे हैं कि क्या आरबीआइ एक डॉलर की कीमत 60 रुपये के आसपास बनाए रखने के लिए बाजार में हस्तक्षेप करेगा?