राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली। 16 मई की तारीख बेहद करीब आ गई है। आगामी शुक्रवार को प्रधानमंत्री की कुर्सी को लेकर जनादेश सामने आ जाएगा। जाहिर तौर पर राजधानी में सियासी हलचल तेज हो गई है। लेकिन सूबे के नेताओं की नजर केंद्र में बनने वाली नई सरकार के साथ-साथ दिल्ली के राजनीतिक भविष्य पर भी टिकी हुई है। चर्चाओं का बाजार गर्म है। सबसे बड़ा सवाल यह पूछा जा रहा है कि यदि प्रदेश भाजपा अध्यक्ष डॉ. हर्षवर्धन सहित लोकसभा चुनाव में प्रत्याशी रहे पार्टी के तीन विधायक सांसद बनने में सफल रहे और दिल्ली में सरकार बनाने की नौबत आई तो मुख्यमंत्री की कुर्सी कौन संभालेगा?
दिल्ली में अपनी सरकार बनाने के मामले में भाजपा ने अभी अपने पत्ते नहीं खोले हैं। लेकिन इतना तय है कि लोकसभा चुनाव परिणाम आने के बाद दिल्ली की सियासत को लेकर भी गतिविधियां तेज होंगी।
विधानसभा चुनाव कराने पर जोर दे रही अरविंद केजरीवाल की अगुवाई वाली आम आदमी पार्टी (आप) इस मुद्दे को जरूर आगे बढ़ाएगी। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि क्या भाजपा दिल्ली में अपनी सरकार बनाएगी और यदि ऐसा होता है तो सरकार का नेतृत्व करने की जिम्मेदारी किसे सौंपी जाएगी।
पूर्व केंद्रीय मंत्री विजय गोयल के प्रदेश अध्यक्ष रहते दिल्ली विधानसभा चुनाव में उतरी पार्टी ने अंतिम समय में डॉ. हर्षवर्धन को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया था। अब स्थिति यह है कि गोयल राच्यसभा के सदस्य बनाए जा चुके हैं और डॉ. हर्षवर्धन लोकसभा चुनाव में किस्मत आजमाकर सांसद बनने की आास लगाए हुए हैं। ऐसे में दिल्ली में सरकार बनने पर मुख्यमंत्री पद के स्वाभाविक उम्मीदवार दिल्ली के पूर्व वित्त मंत्री प्रो. जगदीश मुखी हो सकते हैं। लगातार पांच जीत दर्ज कर चुके मुखी बाकी तमाम विधायकों में वरिष्ठ व अनुभवी हैं।
दूसरी ओर जानकारों का कहना है कि यदि भाजपा के पास पूरा बहुमत होता तो मुखी के लिए रास्ता आसान होता। लेकिन यदि पार्टी के तीनों विधायक लोकसभा का चुनाव जीत जाते हैं तो पार्टी को विधानसभा में बहुमत के लिए कम से कम सात विधायकों की जरूरत पड़ेगी। आप अथवा कांग्रेस में बगैर तोड़फोड़ किए यह काम संभव नहीं है। ऐसे में नेतृत्व संभालने वाले के लिए विधायक जुटाना एक बड़ी चुनौती होगी। सियासी जानकारों का कहना है कि पार्टी ऐसी स्थिति में बदरपुर के कद्दावर गुर्जर नेता रामवीर सिंह बिधूड़ी पर भी दांव लगा सकती है। ग्रामीण पृष्ठभूमि से आने वाले बिधूड़ी को राजनीतिक प्रबंधन में महारत हासिल है और ऐसा कहा जा रहा है कि मौका मिलने पर वे सूबे में पार्टी की सरकार बना भी सकते हैं। हालांकि ठीक विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा में शामिल हुए बिधूड़ी की राह भी आसान नहीं है। सूत्रों की मानें तो दिल्ली में कांग्रेस की हालत कमजोर होने के मद्देनजर भाजपा की अब सीधी लड़ाई आप से है। ऐसे में पार्टी के रणनीतिकार यह देख रहे हैं कि यदि लोकसभा चुनाव में आप 25 फीसद से ज्यादा वोट लाती है तो भाजपा के लिए सियासी चुनौती तगड़ी हो जाएगी। ऐसे में विधानसभा चुनाव की तरफदारी करना भाजपा के लिए महंगा सौदा साबित हो सकता है। लोकसभा चुनाव में आप का बेहतर प्रदर्शन यह साबित कर देगा कि यदि तत्काल विधानसभा के चुनाव हुए तो पार्टी ज्यादा बेहतर प्रदर्शन करेगी और भाजपा के हाथ आई बाजी निकल जाएगी। यदि आप का प्रदर्शन बहुत अच्छा नहीं हुआ तो निश्चित रूप से भाजपा विधानसभा चुनाव की वकालत करेगी। इस पूरे मामले में केंद्र की नई सरकार की भूमिका भी बेहद अहम होगी।