लखनऊ, उम्मीद की जिस ‘साइकिल’ को अवाम ने दो साल पहले ही प्रचंड बहुमत से राज्य की सत्ता पर सवार किया था, उसी के पहिये लोकसभा चुनाव में ‘घर’ के अंदर ही थम गए। पिछड़े मतों के बिखराव व सवर्णो की बेरुखी ने सपा को खुद की अंकतालिका में सबसे निचले पायदान पर ला दिया। पार्टी की ताकत भी अब सवालों के सलीब पर रहेगी। उत्तर प्रदेश में सरकार की कार्यप्रणाली भी अब नई चुनौतियों से मुकाबिल होगी।
वर्ष 1992 में गठन के बाद समाजवादी पार्टी पहली बार 1996 में लोकसभा के चुनावी मैदान में कूदी, तब उसके खाते में 13 सीटें आई थीं, दो दर्जन से सीटों पर वह दूसरे नंबर रही थी। वक्त के साथ समाजवादी पार्टी का जनाधार तेजी से बढ़ा। 1998 के चुनाव में सपा खाते में 20 सीटें आई। 1999 में उसने 26 सीटें जीतीं। 2004 के चुनाव में 35 सीटें उसके हिस्से में आई थीं। उप चुनाव की सीटें भी उसने जीत ली थीं। जनाधार बढ़ाती जा रही समाजवादी पार्टी ने 2009 के लोकसभा चुनाव से पहले जब भाजपा के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण ंिसह से हाथ मिलाया। तब उसे राज्य में 23 सीटें मिली थीं और राज्य में वह सबसे बड़ा दल थी।
वर्ष 2012 में हुए राज्य विधानसभा के चुनाव में समाजवादी पार्टी ने युवा चेहरे अखिलेश यादव को आगे कर चौसर बिछायी और आवाम ने प्रचंड बहुमत से साइकिल को सत्ता तक पहुंचा दिया। राज्य की सत्ता पर काबिज होने के बाद समाजवादी पार्टी की कार्यप्रणाली सवालों के घेरे में आ गयी। बेशुमार दंगे, समाजवादी पार्टी के नेताओं की गुंडई, एक-दूसरे को नीचे दिखाने की होड़ ने पार्टी के साथ राज्य सरकार को भी कटघरे में खड़ा कर दिया। हालांकि सरकार ने इस दौरान बेरोजगारी भत्ता, लैपटॉप योजना, कन्या विद्या धन जैसी लोकलुभावन योजनाएं चलाईं। समाजवादी पेंशन योजना शुरू की। 17 अति पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति का दर्जा देने का अभियान छेड़ा और लोकसभा चुनाव से काफी पहले अति पिछड़े वर्ग नेताओं को कैबिनेट मंत्री, राज्यमंत्री बनाकर उन्हें अति पिछड़ों सपा के पक्ष में गोलबंद करने का जिम्मा सौंपा, लेकिन वह इस मिशन में कामयाब नहीं सके, परिणाम से ये बातें साफ हैं। पिछड़े वर्ग का जनाधार हाथ से खिसकर भाजपा के पक्ष में खड़ा गया। मुस्लिम जनाधार भी बिखरा-बिखरा रहा। मुख्यमंत्री की पत्नी और डिंपल यादव कन्नौज से महज 29 हजार वोटों से ही विजयश्री हासिल कर सकी हैं। जबकि सपा मुखिया मुलायम ंिसह यादव मैनपुरी व आजमगढ़ से, उनके भतीजे धर्मेंद्र यादव बदायूं से व दूसरे भतीजे अक्षय यादव फीरोजाबाद से जीत का परचम फहरा सके। समाजवादी पार्टी के लिए कुछ सियासी सुकून की बात है तो सिर्फ इतनी कि उसके 31 प्रत्याशी दूसरे नंबर पर रहे।