लालकृष्ण आडवाणी को खुद को खुशकिस्मत समझना चाहिए कि वो भाजपा जैसी पार्टी से जुड़े हैं….इतने नाटक करने पर तो दूसरा कोई क्षेत्रीय दल तक इनको बाहर का रास्ता दिखा चुका होता..कहा जाता है कि घर के बड़े बूढ़े पेड़ की जड़ की तरह होते हैं जो पूरे कुनबे को सम्बल देते हैं लेकिन आडवाणी वो बरगद है जो अपनी ही शाखाओं से मटका थामे अपनी ही जड़ों में मट्ठा डाल रहा हो….
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इस बार अगर एन डी ए की सरकार नहीं आयी तो उसका आधा कलंक आडवाणी के माथे पर लगना चाहिए……
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ये भाजपा के अन्दर केजरीवाल वाली नौटंकी दिखा रहे हैं बाकी कुछ नहीं…
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और आडवाणी जी आपकी ये सब नौटंकियाँ पार्टीविरोधी गतिविधियाँ ही हैं और कुछ नहीं……
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साला बना बनाया माहौल खराब किया जा रहा है….
राजेश भट्ट